कोरोना वायरस की महामारी समूचे विश्व में अपनी भयाभयता के नए नए रूप दिन प्रतिदिन दिखा रही है।जिसमें क्या अमीर क्या गरीब क्या महिला क्या पुरुष सभी पर समान रूप से प्रभाव डाल रही हैं ऐसे में एक प्रश्न उठता है कि क्या यह सत्य है कि महिलाओ के साथ इसमे समानता है?एक सर्वे के अनुसार दुनिया की सभी आपदाएं चाहे वे महामारी के रूप में हो या अकाल या वित्तीय संकट महिलाओ पर सदैव दोहरा भार होता है।
कोरोना वायरस के साथ साथ महिलाओं के प्रजनन तंत्र की समस्याएं भी बढ़ रही हैं।
1.बायोलॉजिकल समस्याएं,बीमारी के रूप में- A. एंडोमेट्रियोसिस- इसमे महिला के यूट्रस की लाइनिंग बनाने वाले टिसू यूट्रस की गुहा के बाहर विकसित होने लगते है।
B. एड्स/HIV -एड्स से प्रभावित महिलाओं के वजन में कमी,तनाव आदि।
C.पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम-जिसे आम बोल चाल में PCOS के नाम से जानते है इस बीमारी में महिलाओं के हार्मोनल समस्या के चलते एग को रिलीज करने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है। अगर एग/ovulation नहीं होगा तो फर्टिलिटी नही हो सकती।
D.सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज-इसके पीछे कारण वायरस, बैक्टीरिया,पैरासाइट होते है जो किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ सेक्स/इंटरकोर्स करने से होती है।
E.इंट्रस्टीशियल सिस्टाइटिस-इससे ब्लैडर कैंसर होने के संभावना होती है जिसके कारण फर्टिलिटी ओर प्रभाव पड़ता है।
F. गायनोलोजिक कैंसर-इसमे मुख्यता सर्वाइकल,ओवेरियन,यूटरीयन,वजाइनल कैंसर आदि।
G.भारत मे लगभग 50% महिलायें मासिक धर्म की अनियमितता से प्रभावित हैं जिसमे पीरियडस का कम आना या अधिक आना या अचानक बंद या चालू हो जाना है।
2.प्रजनन तंत्र को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य कारण जैसे महिलाओ में व्यापत एनीमिया;नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4 कस अनुसार 53%महिलाये एनीमिया से ग्रसित हैं।जिसके पीछे अनेक कारण कैसे भारतीय समाज मे व्याप्त लैंगिक विभेद अर्थात आज भी महिलाये परिवार में सबके भोजन करने के पश्चात ही खाना खाती है एवं जो बचा है उसी में गुजारा करती है अपने लिए कम हो रहे खाने, पोषण पर ध्यान नही देती।
समाज की एक और विसंगती 'सन मेटा प्रेफरेंस' भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार पुत्र के लालच के चक्कर में अनेक बच्चों को जन्म देना हैं। अभी कुल प्रजनन दर 2.3 है।
3.कुपोषण -कम उम्र में विवाह,कम उम्र में बच्चे को जन्म देना,स्टंटिंग एवं वेस्टिंग आदि के कारण आने वाली पीढ़ी भी अनेक फर्टिलिटी की समस्याओं के साथ जन्म लेती है।
4.वैश्वीकरण-वर्ष 1991 के पश्चात हमने सम्पूर्ण विश्व के लिए भारत का बाज़ार खोल दिया जिसके प्रभाव महिलाओं की जीवन शैली पर भी पड़ा। जिसमे खाद्य आदतें, मादक द्रव्यों का सेवन (अल्कोहल,ड्रग) कॉर्पोरेट वर्ल्ड ।
हालांकि जहा शिक्षा एवं जॉब कल्चर ने महिलाओं को सशक्त किया वहीं भारतीय समाज की प्रथा महिला नौकरी करे या नहीं उसे घर के काम तो करने ही पड़ेगे अतः उन पर दोहरे कार्यभार के चलते स्यास्थ्य प्रभावित हुआ।
5.आज कल के समाचारों,न्यूज़ चैनलों, सोशल मीडिया न्यूज़ रूम आदि सभी जगह एक खबर तो अवश्य ही छाई रहती है बलात्कार।और हममे से प्रत्येक व्यक्ति डेली एक ऐसी न्यूज़ ज़रूर सुन या पढ़ ज़रूर लेता है और निर्भय गैंग रेप हो या उन्नाव की बच्ची का रेप। इसके कारण होने वाली वजाइनल क्षति भी प्रजनन को प्रभावित करती है।
6. लगभग 8 अरब की जनसंख्या वाली दुनिया को खाद्यान्न उपलब्ध करने के लिए कृषको द्वारा उपयोग किये जाने वाले कीटनाशकों एवं खाद का कृषि भूमि एवं उत्पन्न अनाज पर प्रभाव पड़ता है, इससे खाधान्न की गुणवत्ता में कमी,उसके पोषण खनिज,विटामिन, प्रोटीन में कमी आ जाती है परिणामस्वरूप उसका उपभोग बीमारियों को भी जन्म देता है।
7.आज सम्पूर्ण दुनिया ग्लोवल वॉर्मिंग, क्लाइमेट चेंज जैसे सतत आपदा से जूझ रही है । जिसका कारण पर्यावरणीय प्रदूषण है पर्यावरण में प्रदूषण ई-वेस्ट(मोबाइल,लैपटॉप) एलॉट्रॉनिक एवं इलेक्ट्रिकल उत्पादों के उपयोग में वृद्धि है। साथ ही प्लास्टिक प्रदूषण को नकारा नही जा सकता इसी श्रृंखला में कार्बन उत्सर्जन की महती भूमिका है। इन
: 9.आज विज्ञान की प्रगति मंगल,शनि,शुक्र आदि ग्रहो पर पहुचने की गति देखकर महिला वर्ग की स्वास्थ्य की गिरती हालात देख कर हृदय अनायास ही विलख पड़ता है कि वो नारी जो कि दुनिया की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती है उसके स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही क्यों? क्यो महिला को समर्पण,त्याग की मूर्ति के रूप में प्रस्तुत करके उसे उसके हिस्से की सुविधाओं से मरहूम रखा जाता है।
सरकारी नीतियों,चुनावी वादों में क्यो महिला स्वास्थ्य एक अहम मुद्दा नहीं है 21 वी सदी में भी यौन शिक्षा आज विद्यालयी पाठ्यक्रम का भाग नहीं है आज भी माहवारी के लिए स्वच्छ उत्पादो का मुफ्त वितरण नही है टैम्पोन से होने वाला बैक्टीरियल इन्फेक्शन,असुरक्षित सेक्स,असुरक्षित एबॉर्शन आदि महिला प्रजनन की मुखर चुनौती बन रही ह
: इस पर्यावरणीय विपदा के लिये मानव और उसकी सुविधाओं के लिए नित नए होने वाले अविष्कार जिससे निकलती ग्रीन हाउस गैस जिम्मेदार है।जिससे प्रजनन क्षमता एवं उसके साथ प्रतिरोधक तंत्र का कमज़ोर होना शामिल है।
इस चुनौती पर ध्यान देना इसलिए आवश्यक है क्योंकि इसके प्रत्यक्ष के साथ साथ अप्रत्यक्ष प्रभाव अधिक है महिलाओ में बढ़ता अवसाद,तनाव बीमारी की प्रतिशतता को 80 गुना बढ़ा देता है
8.बढ़ती भौतिक एवं चकाचौंध वाली दुनिया और प्रतिस्पर्धा के युग में आज कल के बच्चे जो आने वाला भविष्य है बचपन से ही अनावश्यक मानसिक दवाब का सामना करते है एक सर्वे के परिणाम द्वारा संज्ञान में आया कि जैविक,शारीरिक के अलावा मनोवैज्ञानिक कारण किसी भी रोग के लिए अधिक जिम्मेदार होते है। ताजा उदाहरण कोरोना के काल में होने वाली हृदयाघात(heart attack) के कारण होने वाली मौतों की तादाद में वृद्धि होना हैं।: उपर्युक्त समस्यायों के निदान के लिए महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के लिए सजग होना चाहिए आवश्यकता है उचित पोषण आहार लें,शरीर में छोटे से छोटे बदलाव आने पर चिकित्सक से समपर्क करें। साथ कि अपने मानसिक स्तर,मनोवैज्ञानिक स्तर से खुद को खुश रखें अनावश्यक दवाब न झेले एवं स्वयं को ईश्वर का अमूल्य तोहफा समझ कर खुद की कद्र करे साथ भी नियमित योगा, जुम्बा पोषण युक्त आहार,स्लीपिंग पैटर्न आदि का ख़्याल रखे।
क्योकि कहा भी गया है स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है।