Periods kab ruk jaate hai? - किस उम्र में पीरियड्स रुक जाएंगे

 रजोनिवृत्ति की उम्र 


माहवारी महिलाओं में एक ऐसी प्रक्रिया है जो उनकी गर्भधारण की विकसित क्षमता का प्रमुख सूचक होती है। दस से पंद्रह वर्ष की आयु से अमूमन लड़कियों के अण्डाशय में हर महीने एक विकसित डिम्ब उत्पन्न होना शुरू हो जाता है। यदि पुरूष के शुक्राणु से डिम्ब न मिल पाए तो यह योनि से बाहर स्त्राव बन कर बाहर आ जाता है। हर महीने दो से सात दिनों तक माहवारी का सामान्य समय माना गया है। स्त्राव आने की प्रक्रिया को ही मासिक धर्म,रजोधर्म,  पीरियड्स आदि कहा जाता है। प्रतिमाह माहवारी में महिलाओं को ऐंठन,तनाव,रक्त के थक्के,दर्द की समस्या रहती है। यह प्रक्रिया प्रथम माहवारी से रजोनिवृत्ति तक प्रभाव में रहती है तथा इस पूरे काल को प्रजनन काल कहा गया है।




माहवारी चक्र:

सामान्य चक्र 28-29 दिनों का होता है। कुछ महिलाओं में   21 दिनों का छोटा चक्र भी चलता है और कुछ में 35 दिनों का लम्बा चक्र। इस मासिक चक्र के दौरान हाॅर्मोन का स्तर 

बढ़ या घट भी सकता है। यह स्त्राव के गाढ़ेपन का निर्धारण करता है।


माहवारी में रक्तस्त्राव:

कुछ महिलाओं को भारी स्त्राव होता है कुछ में रक्तस्त्राव की कमी होती है। कभी-कभी गर्भाशय में किसी समस्या के कारण भी यह हो सकता है। अतः ऐसी स्थिति में चिकित्सकों से परामर्श लेना चाहिए। 


माहवारी में होनेवाले कष्ट:

.कमर, पैरों में दर्द 

.पेडू में दर्द 

.ऐंठन

.कमजोरी 

.जाँघों में दर्द 

.कभी-कभी कब्ज़ की समस्या 


माहवारी एक परिचित शब्द भले ही हो पर रजोनिवृत्ति यानी मेनोपाॅज पर चर्चा अपेक्षाकृत कम होती है। रजोनिवृत्ति किसी भी महिला के जीवन में होनेवाली महत्वपूर्ण घटना है।रजोनिवृत्ति से गुज़रने के बाद महिलाओं में माँ बनने की क्षमता खत्म हो जाती है। इस दौरान उन्हें कई मानसिक व शारीरिक बदलावों से गुज़रना पड़ता है। उम्र के 40-50 वर्ष के काल में रजोनिवृत्ति आमतौर पर देखने को मिलती है। एक वर्ष तक माहवारी ना होने पर दिए गए आयु वर्ग में महिलाएँ इस प्रक्रिया (रजोनिवृत्ति से) से गुज़रती हैं ।


डिम्ब ग्रंथियों के कार्यक्षमता में कमी के कारण स्थायी रूप से मासिक धर्म रूक जाता है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हाॅर्मोन का उत्पादन डिम्ब ग्रंथियों से कम होने लगता है।इस प्रक्रिया की समुचित जानकारी के लिए कुछ शब्दों से परिचित होना आवश्यक है:

1. डिम्बग्रंथियां :

यौन ग्रंथियों का जोड़ा जहाँ यौन हाॅर्मोन व ओवम यानि डिम्ब बनते हैं। महिलाओं में एस्ट्रोजन,प्रोजेस्टेरोन,एंड्रोजन यहाँ से निकलते हैं।

2.मुख्य जननांग:

गर्भाशय 

योनिद्वार

डिम्बवाही नली

3. एस्ट्रोजन 

जननांगों के विकास में सक्रिय भूमिका निभाता है। यह योनिद्वार को रोग संक्रमण से भी बचाता है।


रजोनिवृत्ति होने की आयु:

रजोनिवृत्ति से गुज़रने की कोई तय हुई आयु नहीं। अमूमन महिलाओं को इसका सामना 40-50 वर्ष की आयु के बीच करना पड़ता है। भारत में रजोनिवृत्ति की औसत आयु 46 वर्ष के आसपास है। जबकि पश्चिमी देशों में औसतन आयु 51 वर्ष के आसपास है। रजोनिवृत्ति प्राप्त करने की उम्र पृष्ठभूमि पर भी निर्भर करती है। जिनका मासिक चक्र छोटा होता है उनकी रजोनिवृत्ति लम्बे चक्र वाली महिलाओं के मुकाबले पहले हो जाती है।


प्रथम माहवारी से लेकर रजोनिवृत्ति तक का सफर किसी महिला के लिए शायद ही आसान हो। शारीरिक कष्टों के साथ मानसिक बदलावों का जमघट इस कालखण्ड देखा जा सकता है। रजोनिवृत्ति से एक महिला के शरीर में आनेवाले परिवर्तन कुछ इस प्रकार हैं:


1.गर्भाशय का अस्तर घुलने लगता है।

2. स्तनों में ढ़ीलापन महसूस किया जा सकता।

3.त्वचा में झुर्रियों का आना एस्ट्रोजन की कमी के कारण ।

4.गर्भाशय व सर्विक्स में सिकुड़न।

5. योनि-छिद्र का छोटा होना जिससे कभी-कभी यौन कार्य करना कष्टप्रद हो जाता है।

6.बालों का सफेद होना।

7.डिम्बग्रंथियों में सिकुड़न।

8. कमर के आकार में बदलाव ।

9.हड्डियों का घनत्व कम होना।

10. मधुमेह व ह्रदय रोग की संभावना में वृद्धि।

11. बालों का रूखापन।


रजोनिवृत्ति वयस्कता से दूर हो रही तथा वृद्धावस्था का आलिंगन करने की दहलीज़ पर खड़ी स्त्री के साथ होती एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इस संदर्भ में उन्हें अपने खानपान व मानसिक शांति का खास ख्याल रखना चाहिए। भावनात्मक तौर पर उन्हें मजबूत होने की भी आवश्यकता होती है।

अपने खानपान में इन तत्वों को शामिल करें:

1. फाइटोएस्ट्रोजन

फाइटोएस्ट्रोजन सोयाबीन, फ्लैक्स सीड, सेम, बंधा गोभी,फलियां आदि में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है। इनके पास एस्ट्रोजन के समान रसायनिक तत्व हैं।

2. फाइबर

सब्जियों, साबुत अनाज आदि में पाय जानेवाले फाइबर महिलाओं के लिए उपयोगी साबित होते हैं।

3. डेयरी उत्पाद

कैल्शियम फोर्टिफाइड सोया दूध, बादाम दूध, पनीर, धही आदि का प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है। हड्डियों की देखभाल के लिए कैल्शियम का सेवन जरूरी हो जाता है। डेयरी उत्पाद का सेवन अच्छी नींद भी सुनिश्चित करता है। एक शोध के अनुसार इन उत्पादों का सेवन करने वाली महिलाओं के हड्डियों का घनत्व सेवन न करनेवाली महिलाओं के मुक़ाबले ज्यादा अच्छा रहता है।

4. फल और सब्जियां 

खासकर ब्रोकोली, अंगूर आदि का सेवन एक अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने में कारगर है।

5. प्रोटीन 

कहा गया है 50 से उपर की महिलाओं को अनिवार्य रूप से प्रोटीन की 0.45-0.55 ग्राम प्रोटीन अपने वजन के पर पाउण्ड के हिसाब से लेना चाहिए। अण्डे,मीट,मछली,दाल आदि इस ज़रूरत को पूरा करने में कारगर हैं।

6. पानी

प्रतिदिन 8-10 गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए।


रजोनिवृत्ति के साथ उत्पन्न समस्याएँ:

1. नींद की कमी

आइसोमीनिया या नींद की कमी एक आम समस्या है। कैफीन युक्त पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

2.गर्म पसीने आने की समस्या 

तंग कपड़े, चाय-काॅफी का सेवन, शराब का सेवन, सिगरेट पीना,तला हुआ आहार इसके कारक हो सकते हैं। सोयाबीन का प्रयोग इसमें लाभकारी सिद्ध होता है।

3.यौन संबंधी समस्या

योनि की शुष्कता संभोग के दौरान समस्या उत्पन्न कर सकती है। 

4. स्वभाव में चिड़चिड़ापन

रजोनिवृत्ति से गुज़र रही महिला के स्वभाव में अकस्मात परिवर्तन यानि कभी-कभी चिड़चिड़ापन या कभी हीन भावना का घर हो जाता है। तनाव व कमजोर स्मरणशक्ति भी उनमें देखी जा सकती है।


व्यायाम जो मददगार हैं-

1. ध्यान लगाना (मेडिटेशन) मानसिक स्वास्थ्य के लिए उत्तम उपाय है।

2. माँस- पेशियों की देखभाल के लिए पैदल चलने से लेकर तैराकी  की जा सकती है।

3. योनि की पेशियों को सिकोड़ने वाली कसरत भी की जा सकती है।

4. योगाभ्यास करना हितकारी होता है। जैसे: 

धनुरासन

मालासन

अधोमुख श्वानासन

शशांकासन आदि


( अगर किसी महिला का कोई ऑपरेशन हुआ हो या कोई कमजोरी से जुड़ी समस्या होतो परामर्श ले लें।) 


परिवार की भूमिका:

परिवर्तन संसार का नियम है। बदलाव हमेशा सुखद या सहज नहीं होता खासकर जब शारीरिक हो। रजोनिवृत्ति से गुज़रने वाली महिला को परिवार का भावनात्मक समर्थन चाहिए होता है जिससे मानसिक स्तर पर वह मजबूत रहे।


एक महिला अपने जीवनकाल में शारीरिक व मानसिक कष्टों की विकट चुनौतियों से गुज़रती है। यह चीज़ें अमूमन गौण लगती हैं किन्तु इनका अनुभव करना, पीड़ा को आत्मसात करना, इससे जुझते हुए सुचारू जीवन सुनिश्चित करना जो कि महिला व उसके परिवार के लिए हितकारी हो, इन प्रयासों को फलीभूत करना स्त्री जीवन की एक चुनौती है। छोटी सी उम्र में प्रजनन के लायक बनने पर उन्हें कई बदलावों से गुज़रना होता है। फिर जीवन का एक लंबा हिस्सा मासिक धर्म जैसी प्रक्रिया को अपना कर गुजारतीं हैं। प्रौढ़ावस्था की दहलीज पर उन्हें रजोनिवृत्ति को पार करना होता है जो उनके लिए दोबारा से मानसिक व शारीरिक बदलाव लाता है। इस तरह एक महिला का जीवन प्रेरणा का श्रोत बन जाता है, विषमताओं में भी वह सहजता के अनवरत पुष्प खिला देने की क्षमता रखती है। 

अतः परिवार व समाज का दायित्व बनता है कि महिलाओं के जीवन को सहज तथा सुचारू बनाने में प्रयासरत रहे। उनकी छोटी-बड़ी ज़रूरतों एवं उनके स्वास्थ्य को लेकर जागरूक बने।


Source: google search


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