बाइपोलर डिसऑर्डर
बाइपोलर डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है जो 100 में से एक व्यक्ति को कभी न कभी होती ही है, जिसकी शुरुआत किशोरावस्था में ही हो जाती है, एक बार ये बीमारी होने पर ऐसा नहीं है कि इलाज के बाद ये पूरी तरह ठीक हो जाए या फिर से न हो
ये कई किश्तों में भी आपको बार बार दोहरा सकती है, अक्सर ये 13 से 30 तक के लोगों में आम है 40 बाद इसके होने की संभावना कम हो जाती है, बाइपोलर डिसऑर्डर के कई कारण हो सकते हैं
★ अनुवांशिकता
★ रासायनिक असंतुलन के कारण
★ नशे की वजह से
★ मानसिक आघात
★ अत्यधिक मानसिक दबाव
बाइपोलर डिसऑर्डर में रोगी को दो तरह के लक्षण नजर आने लगते है, एक मे रोगी अत्यधिक उन्मांदित हो जाता है, बड़बोला और दूसरे में उसे उदासी के लंबे दौरे पड़ते हैं, जिनमें व्यक्ति में उन्मांद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है उसे मेनिया कहते हैं और दूसरा जिसमें व्यक्ति में उदासी के लक्षण नजर आते हैं उसे डिप्रेशन कहते हैं
बाइपोलर डिसऑर्डर 1
मेनिया/ उन्माद
मेनिया या उन्माद के लक्षण नीचे दिए जा रहे हैं
★ मेनिया के लक्षणों में व्यक्ति अति उत्साही हो जाता है
★ बड़बोला पन उसमे आ जाता है वो बड़ी बड़ी बातें करने लग जाता है
★ उसके विचार जल्दी जल्दी बदलने लगते हैं, कभी खुश है कभी अचानक गुस्सा हो जाना
★ कभी कभी रोगी खुद को भगवान समझने लगता है उसे लगता है संसार उसकी मुट्ठी में है वो जैसे चाहे उसे चला सकता है, बना या बिगाड़ सकता है
★ रोगी जब बोलना शुरू करता है तो लगातार बोलता चला जाता है बिना थके
★ रोगी अपने आस पास मजाकिया माहौल बना कर रखता है, लोगों को हँसाता है, मज़ाक करता है
★ उसे नींद कम आने की दिक्कत हो सकती है
★ रोगी बहुत ज़्यादा पैसे खर्च करने लग जाता है, कभी कभी वो ऐसा दिखाता है कि वो पूरी दुकान ही खरीद लेना, ज़रूरत से ज़्यादा खरीदारी करता है और खर्च ज़्यादा करने लग जाता है
★ रोगी अचानक अध्यात्म की बातें करने लगता है, कभी कभी उसे लगता है कि वो खुद ही कोई देवता या देवी है
★ रोगी सुबह जल्दी उठ जाता है
अत्यधिक ऊर्जा का प्रदर्शन करता है
★ कभी कभी अचानक रोगी किसी बात पर उग्र हो जाता है, सामान तोड़ने फेंकने लगता है, बिला वजह लोगों से लड़ाई झगड़ा मोल लेता है
★ कई बार वो खुदकुशी करने की भी कोशिश करता है
बाइपोलर डिसऑर्डर 2
डिप्रेशन या अवसाद
★ रोगी का मन दुखी हो जाता है और वो लगातार दुखी रहने लगता है, अपने दुख से उबर नहीं पाता, हँसना मुस्कुराना बंद कर देता है
★ किसी भी काम में उसका मन नहीं लगता न ही वो किसी भी शुरू किए गए काम को पूरा कर पाता है, न उसे उस काम को करने की ही इच्छा होती है
★ वो सारे काम जिसे करने में उसे आनंद आता था उससे उसका मन भर जाता है, और वो उनमें रुचि लेना बंद कर देता है
★ रोगी में आत्मविश्वास की कमी होने लगती है, वो किसी के सामने आना पसन्द नहीं करता, अपने आप से उसे नफरत होने लगती है
★ जीवन के प्रति उसकी सोच नकारात्मक हो जाती है, वो किसी भी घटना के नकारात्मक पक्ष को ही सोचता रहता है
★ गुज़री हुई ज़िन्दगी में किसी घटित हुई घटना को लेकर उसके मन मे आत्मग्लानि की भावना उत्पन्न हो जाती है, उसे लगता है उसकी ग़लती से वो घटना घटित हुई इसलिए वो खुद को दोषी समझने लगता है,
★ लगातार सोचने के कारण उसे भूख प्यास नहीं लगती या जितनी उसकी खुराक है उससे कम मात्रा में वो भोजन ले पाता है या बिल्कुल भी खाना बंद कर देता है
★ किसी से बात करने का उनका मन नहीं होता, छोटी छोटी बात पर भी वो रोने लगे जाते हैं, अकेले रहना पसंद करते हैं, कभी कभी खुद को एक कमरे में बंद कर लेते हैं
★ आत्महत्या की प्रवृत्ति इनमें बढ़ने लगती है, ये खुद को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते हैं कई बार ये कोशिश आत्महत्या तक पहुंच जाती है
मेनिया यानी उन्माद और डिप्रेशन यानी अवसाद के लक्षण
इन बीमारियों रोगियों के कुछ लक्षणों को चिन्हित किया जाता है वो ये इस रूप में सामने आते हैं
1 :- नींद से जुड़ी हुई समस्याएँ
जिन लोगों को डिप्रेशन की शिकायत होती है उन्हें नींद न आने की समस्या हो जाती है, वो या तो कम सोते हैं या बिल्कुल भी नहीं सोते, वो ज़रूरत से ज़्यादा चिड़चिड़े हो जाते है, नकारात्मक सोच के कारण उनके दिमाग मे बुरे बुरे खयाल आते रहते हैं जिनके कारण अगर वो रात को सो भी जाएं तो उनके सपने भयानक आते है जो उन्हें और ज़्यादा अवसाद में ले जा सकते हैं, वहीं मेनिया के रोगियों में भी नींद से जुड़ी यही समस्या होती है कि वो जल्दी जग जाते हैं, या उत्तेजना के कारण या उन्मांद के कारण उन्हें नींद नहीं आती
ऐसे में जरूरी है कि ऐसे रोगी भरपूर नींद लें इन्हें नींद की गोलियों से परहेज़ करना चाहिए
2 :- मनःस्थिति का लगातार बदलते रहना
मेनिया यानी उन्मांद के मरीज़ों में देखा गया है कि उनका मिज़ाज अक्सर बड़ी तेजी से बदलता रहता है, अभी वो अच्छे से हँस बोल रहे हैं मज़ाक कर रहें है, अभी वो बिना किसी कारण उत्तेजित हो जाएंगे ये भी हो सकता है कि बिना कारण वो लड़ाई करने लग जाएं , सामान तोड़ना फोड़ना शुरू कर दें, या हिंसक हो उठे, कई बार के भी देखने मे आता है कि मेनिया के मरीज़ बिना कारण ही बहुत ज़्यादा खुश हो जाएं, अचानक वो गाना गाने लग जाएं नाचने लग जाएं, अचानक आप पर प्यार लुटाना शुरू कर दें
जबकि डिप्रेशन में व्यक्ति ज़्यादा देर तक सामान्य नहीं रह पाता, अचानक दुःखी हो जाता है, बिना बात रोने लग जाता है
3 :- काम करने में अक्षम होना
मेनिया से पीड़ित व्यक्ति अति उत्साही हो जाता है वो कोई काम जितने उत्साह से शुरू करता है, उसे पूरा करने में वो रुचि नहीं लेता, अचानक उसका मन उस काम से हट जाता है, इस तरह वो कोई भी काम न ठीक ढंग से कर पाता है न ही किसी काम को पूरा ही कर पाता है
जबकि डिप्रेशन यानी अवसाद से ग्रसित व्यक्ति खुद को ऊर्जा हीन महसूस करता है, किसी काम को करने में न तो वो उत्साह दिखाता है न ही किसी काम को वो पूरा कर पाता है कई बार ऐसा भी होता है कि रोगी कोई काम ही नहीं करना चाहता न ही उसके शरीर में इतनी ऊर्जा होती है कि किसी काम को वो कर सके, न ही उसकी मन स्थिति इस लायक होती है कि उसका किसी भी कम को सही ढंग से करने में मन लगे
4 :- अत्यधिक सोचना
मेनिया और अवसाद से ग्रसित व्यक्ति हद से ज़्यादा सोचने लगता है, वो लगातार अपनी नाकामियों के बारे में सोचता रहता है, अपनी तुलनात्मक सोच को भीतर ही भीतर विकसित करता रहता है, जीवन मे हुए बुरे अनुभवों और घटनाओं को भविष्य से जोड़ कर देखने लगता है कि आगे भविष्य में वो कुछ नहीं कर पाएगा उसका भविष्य अंधकारमय है या उसका कोई भविष्य ही नहीं, वो खुद को बहुत ही लाचार महसूस करने लगता है, उसे लगता है वो नाकारा है और इसी तरह की नकारात्मक सोच उसके दिमाग मे पनपना शुरू हो जाती है, भविष्य को ले कर उसके मन मे डर बैठ जाता है, वो मन ही मन मे एक भयावह परिस्थिति उत्पन्न कर लेता है जिससे निकलना उसे मुश्किल या असम्भव लगता है उसे लगता है ये जीवन जीना उसका सबसे कठिन कार्य है या उसके जीवन का कोई मतलब नहीं है
5 :- अवसाद या डिप्रेशन
अवसाद एक सामान्य समस्या है जो दोनो तरह के बाइपोलर डिसऑर्डर में पाई जाती है जहाँ मेनिया के मरीज अपनी पुरानी यादों से जुड़ी बुरी यादों या अनुभवों से दुखी होते हैं, और लगातार उनके बारे में ही सोचते रहते हैं, उनके बारे में बातें करते रहते हैं, खुद पर उन्हें ग्लानि महसूस होने लगती है
वहीं अवसाद से ग्रस्त मरीज़ भी अपने साथ घटित होने वाली कुछ घटनाओं को भूल नहीं पाते अपने चारों तरफ एक परिधि बना लेते हैं वही उनके लिए सत्य महसूस होता है और वो इस परिधि से निकलने की बजाए और ज़्यादा दुखों में डूबते चले जाते हैं, कम खाना, कम बोलना अत्यधिक सोचना , एक ही जगह पड़े रहना उन्हें और ज़्यादा अवसाद से ग्रसित करता चला जाता है