Kya Arrange Marriage achi hoti hai ?- व्यवस्था विवाह (Arrange Marriage) भारतीय महिलाओं की पहली पसंद क्यों?
iChhori Team
व्यवस्था विवाह (Arrange Marriage) भारतीय महिलाओं की पहली पसंद क्यों?
'विवाह' एक ऐसा शब्द है जो जीवन में खुशी के साथ साथ कुछ शंकाएं भी उत्पन्न करता है, और ये शंका एक महिला को पुरुष के मुकाबले अधिक होती है। और न केवल उसे बल्कि उसके परिवार को भी आशंका के बादल आजीवन घेर कर रहते हैं। महिलाएं इस दुविधा में रहती हैं कि जीवनसाथी चुनने के लिए व्यवस्था विवाह यानी "Arrange Marriage" ठीक रहेगी या फिर प्रेम विवाह यानी "Love Marriage".
सह्त्राब्दियों (Millennials) को उनकी सोच और उनके लाइफस्टाइल की वजह से कितना ही दोष दे लें, लेकिन शादी की बात हो तो युवा व्यवस्था विवाह (arrange marriage) करना ही पसंद करते हैं. हाल ही में किया गया एक सर्वे बताता है कि 65% युवा आज भी व्यवस्था विवाह (Arrange marriage) पर ही भरोसा करते हैं.
लोग कहते हैं जमाना बहुत बदल गया है. जाहिर है ऑनलाइन डेटिंग का जमाना है, लिव इन रिलेशनशिप चल रही हैं, लव अफेयर और लव मैरिज भी बहुत आम हैं, यहां तक कि समलैंगिकता को भी अब अपराध नहीं माना जाता. यानी विचार और मानसिकता बदल रही है और समाज आगे बढ़ रहा है.
लेकिन इस बदलते जमाने की एक चीज अभी तक नहीं बदली और वो है व्यवस्था विवाह (arrange marriage)। समय के साथ आ रहे बदलावों ने हैरान तो किया है लेकिन तब भी भारत में 95 प्रतिशत शादियां माता-पिता द्वारा ही व्यवस्थित होती हैं, और यह बात सबसे अधिक हैरानी उत्पन्न करती है। सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार का कहना है कि भारत में आज भी 95% शादियां माता-पिता की मर्जी से ही होती हैं।
सह्त्राब्दियों (Millennials) को उनकी सोच और उनके लाइफस्टाइल की वजह से कितना ही दोष दे लें, लेकिन शादी की बात हो तो युवा व्यवस्था विवाह (arrange marriage) करना ही पसंद करते हैं. और देशभर में 1500 वैवाहिक वेबसाइट (matrimonial websites) बकाया चल रही हैं वो इस बात का सबूत हैं. हाल ही में किया गया एक सर्वे बताता है कि 65% युवा आज भी व्यवस्था विवाह पर ही भरोसा करते हैं।
ऑफिस में काम करने वाली लड़कियों को ही ले लीजिए। वो आजकल की लड़कियां हैं, आत्मनिर्भर हैं, दिल्ली जैसे शहरों में अकेली रहती हैं, अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीती हैं। वो पब में भी जाती हैं और डिजाइनर कपड़े भी पहनती हैं। लेकिन बात शादी की हो तो ये नहीं कहती कि शादी अपनी मर्जी से करेंगी. बल्कि कहती हैं कि लड़का ढूंढने का काम मम्मी-पापा का है।
आखिर क्या वजह है कि आज की आत्मनिर्भर लड़कियां भी शादी अपने माता-पिता की मर्जी से कर रही हैं।
'मम्मी पापा बेहतर समझते हैं'
अपने बच्चे के लिए क्या अच्छा है क्या बुरा ये माता-पिता उसके पैदा होने से पहले ही सोचने लगते हैं। यही उनकी प्राथमिकता होती है। फिर सालों का तजुर्बा, रिश्तों को समझना वो बच्चों से बेहतर जानते हैं। इसलिए बेटियां माता-पिता पर हमेशा भरोसा करती हैं। कई मामलों में तो ये भी होता है कि बेटियां अपने माता-पिता को लेकर इतनी भावुक होती हैं कि उन्हें अपने प्रेम प्रसंग के बारे में बताकर नाराज नहीं करना चाहतीं। इसलिए अगर लड़का शादी के लिए लड़की को आश्वासन नहीं देता है तो वो उसके लिए अपने पेरेंट्स को दुख नहीं देती और माता-पिता की मर्जी से ही शादी करती हैं, इस विश्वास के साथ कि वो उसके लिए जो भी चुनेंगे, अच्छा ही चुनेंगे।
सही समय पर सही लड़का न मिलना
आज के जमाने में लड़कियां अपने करियर पर ज्यादा ध्यान देते हैं और उन्हें अभिभावकों का भी पूरा साथ मिल रहा है। ऐसे में या तो वो अपने करियर को लेकर इतनी गंभीर हो जाती हैं कि खुद को खड़ा करने में उन्हें वक्त लगता है। कुछ लड़कियों के ऊपर परिवार की जिम्मेदारी भी होती है, जिसके चलते वो अपनी शादी टाल देते हैं। आज 30 साल की उम्र में भी लड़कियां कुंवारी रहती हैं। और 30 के बाद अगर वो डेटिंग के बारे में सोचना भी तो उन्हें अपने स्तर और उम्र के लड़के मिलने में दिक्कत आती है। तब लड़कियां शादी के लिए माता-पिता पर ही भरोसा करती हैं कि उनके हिसाब से वो ही अच्छा लड़का खोज सकते हैं।
एक खराब रिश्ता
अब आजकल के जमाने में संबंध होना कोई अनोखी बात तो रही नहीं। लिहाजा अगर लड़की किसी लड़के का साथ संबंध में है, और दोनों के बीच किसी भी वजह से विच्छेद होता है तो बहुत स्वाभाविक है कि लड़की सब छोड़कर शादी अपने माता-पिता की मर्जी से करती है। एक बार प्यार में धोखा खाकर वो किसी और पर भरोसा करने से डरती है, तब माता-पिता पर उसका भरोसा और मजबूत होता है। लड़की को लगता है कि वो अपने लिए अच्छा लड़का चुनने में असफल रही। लेकिन माता-पिता जो भी करेंगे सही करेंगे।
अस्वीकरण पसंद नहीं
भारत में बेटियों के दिमाग में बचपन से ये भरा जाता है कि उन्हें अच्छा लगना है जिससे शादी के लिए अच्छा लड़का मिले। उसे सुंदर दिखना है जिससे कोई भी अच्छा लड़का उसे पसंद कर ले। लेकिन जब किसी भी वजह से एक लड़की को शादी के लिए एक-दो बार अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है तो वो न सिर्फ उस लड़की के लिए बहुत अपमानजनक होता है बल्कि माता-पिता भी दुखी होते हैं कि अच्छा लड़का हाथ से निकल गया। तब लड़की दबाव में आकर किसी के लिए भी हां कर देती है। भले ही वो उसे पसंद हो या न हो।
संस्कारों की दीवार
परवरिश बड़ी चीज है। लड़कों और लड़कियों की परवरिश अलग तरह से होती आई है। लड़कों के लिए कोई बंधन नहीं, लेकिन लड़कियों के लिए बहुत सारे हैं। हमेशा बेटी के लिए फैसला माता-पिता ही करते आए हैं। बेटियों को हिदायत दी जाती है कि लड़कों के साथ घूमना फिरना नहीं है। घर की इज्जत उसके ही हाथों में है। तो लड़कियों को बचपन से पता होता है कि उनकी हदें कितनी है। ऐसे में लड़कियां माता-पिता की इच्छा के खिलाफ कुछ भी नहीं करतीं। वहीं बहुत से परिवारों में सजातीय विवाह का भी बहुत दबाव होता है। घर की इज्जत, मान सम्मान का मामला होता है। यानी लड़कियों को पता होता है कि प्रेम विवाह स्वीकार्य ही नहीं है। बड़े शहरों में तो नहीं लेकिन छोटे शहरों में अब भी ऐसा ही होता है। इसलिए लड़कियां अपने अभिभावकों द्वारा व्यवस्थित विवाह ही करती हैं।
ये अच्छी बात है कि बेटियां अपने माता-पिता को मान देती हैं और व्यवस्थित विवाह को मानते हैं। लेकिन उन्हें भी दोष नहीं दिया जा सकता जो अपनी मर्जी से शादी करने की जिद करती हैं। क्योंकि अगर व्यवस्थित विवाह अच्छा है तो इसके दुष्प्रभाव भी कम नहीं हैं।
विवाह चाहे अभिभावकों द्वारा व्यवस्थित हो या फिर हो प्रेम विवाह, यह तो ऐसी रेल गाड़ी है जिसका इंजन पति-पत्नी होते हैं फिर दोनों पक्ष के अभिभावक मिलकर पहला डिब्बे संग साथ जुड़ते हैं और फिर समाज मिलकर बाकी रेलगाड़ी को पूरा करता है। अतः यह रेलगाड़ी पटरी पर कब तक टिकेगी इसका फैसला सबका सही समीकरण और तालमेल ही तय करता है। जहाँ संतुलन बिगड़ा वहां पटरी से गाड़ी उतर जाती है। कभी कभी सहनशीलता, संयम, अभिभावकों का साथ और सबसे ऊपर विवेक काम आता है। दोनों को एक दुसरे के पूरक बनकर रहना होता है, अगर एक दूसरे से प्रतियोगिता, राग, द्वेष या शक रहेगा तो फिर विवाह व्यवस्थित हो या प्रेम चल नहीं पाता। इसलिए विवाह व्यवस्था कोई भी हो समझदारी से काम लेने में ही भलाई है।