Ladakiyon mein Depression ke lakshan kya hain?- लड़कियों में अवसाद के लक्षण क्या हैं?

 

'माँ! मुझे खाने की इच्छा नहीं। मैं अपने खराब रिजल्ट के कारण डिप्रेस्ड हूँ।' रिया ने खुद को 'डिप्रेस्ड' संबोधित किया। पर क्या रिया सच में डिप्रेशन से जूझ रही थी या उसने खराब रिजल्ट से हुई 'उदासी' को उसने डिप्रेशन समझने की गलती की है? रिया जैसे किशोरों में यह शब्द काफी प्रचलित है, परन्तु इससे जुड़े तथ्यों की जानकारी पर्याप्त नहीं है। किशोर ही नहीं उनके माता-पिता भी डिप्रेशन से जुड़े पहलुओं से अनभिज्ञ होते हैं। आइए, जानते हैं डिप्रेशन है क्या? 


डिप्रेशन एक ऐसी अवस्था है जहाँ हम तनाव या निराशा से घिरे रहते हैं।  अक्सर तनाव, डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर आदि शब्दों से हम रूबरू होते हैं। यह देखने में काफी आम लगते हैं। पर इसके नकारात्मक प्रभाव पर गौर फरमाने की तकलीफ कम ही उठाई जाती है। इनसे लंबे समय तक जूझने वाले इंसान अपनी सोच,भावनाओं, व्यवहार आदि में बदलाव या उतार-चढ़ाव महसूस कर सकता है।




किशोरावस्था पर डिप्रेशन का प्रभाव:

किशोरावस्था शारीरिक के साथ-साथ मानसिक स्तर पर भी बदलाव लाती है। इस उम्र में अपने साथी संगी से प्रतिस्पर्धा होती है, रिश्तों में उतार चढ़ाव आते हैं, दुनियादारी से साझा होने का समय शुरू होता है। लंबे समय तक दुखी रहना, बुरा महसूस करना,बात बात पर चिढ़ ना,नींद पूरी न कर पाना आदि प्रमुख लक्षणों में आते हैं। किशोरावस्था ऐसा समय होता है जिसमें परिवार का भरपूर सहयोग अनिवार्य है अन्यथा अकेलापन विकसित हो रहे एक व्यक्तित्व को हानि पहुंचा सकता है।

वैसे तो डिप्रेशन किसी भी आयु या लिंग को प्रभावित करता है परन्तु आजकल महिलाओं में पनप रहे डिप्रेशन, खासकर किशोरियां इससे जूझ रही हैं जो कि चिंता का विषय है। आइए देखते हैं एक विवेचना  निहित कारणों की:

वैसे तो बायोलॉजिकल कारक जैसे हार्मोनल बदलाव कभी वंशानुगत कारण या निजी समस्याओं से डिप्रेशन जैसी समस्या पनपने लगती है। कहा जाता है जीवन में चार में से एक महिला इससे जूझती है। यह एक गंभीर मूड डिसऑर्डर है। किशोरावस्था में इमर्जिंग सेक्शुअलिटी और आइडेंटिटी इश्यू की समस्या होना भी डिप्रेशन से जुड़ा होता है। कुछ और लक्षण ऐस प्रकार हैं:

अक्सर कहासुनी होना

अकेले में समय व्यतीत करना

कम सोना

कार्यों में अरूचि

भावनात्मक संबंधों में ठेस लगने से दुखी होना या रहना

भूख में कमी

आशा खो देना

कभी-कभी ज्यादा खाने से वजन बढ़ना

देर रात तक नींद न आना

बिना परिश्रम के भी थका रहना

क्रोनिक पेन

कोई निर्णय लेने में असमर्थता


डिप्रेशन में की जाने वाली काउंसलिंग:

इस थेरेपी में मनोचिकित्सक एवं 'क्लाइंट' की भूमिका होती है। क्लाइंट वो होता है जो मनोचिकित्सक लेता है। इसे साधारण भाषा में काउंसलिंग कहा जा सकता है। यह एक बातचीत के समान होता है जहाँ क्लाइंट की बुनियादी समस्याओं का जिक्र होता है। उसके विचारों को समझा जाता है। उसकी सोच को परखा जाता है। इस वार्तालाप को गोपनीय रखा जाता है ताकि उसकी भावनाओं एवं विश्वास को ठेस न पहुंचे। यह कभी किसी तीसरे को बताया नहीं जाता।

मनोचिकित्सा क्लाइंट की जरूरतों के हिसाब से वर्गों में बांट दी गई है। जानते हैं इसके प्रकार के बारे में:

 कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी

इस प्रक्रिया के अंतर्गत नकारात्मक विचारों को काबू में लाने की पहल की जाती है। क्लाइंट को बताया जाता है कैसे अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रस्फुटित की जाए। यहाँ डिप्रेशन,तनाव,डिसऑर्डर आदि को ठीक करने की कोशिश की जा सकती है।


क्लाइंट सेंटर्ड थेरेपी 

यहाँ क्लाइंट के लिए एक वातावरण बनाया जाता है जिससे उसके व्यक्तित्व का सकारात्मक विकास हो सके। यहां नशे की लत,पर्सनैलिटी डिसऑर्डर पर जोर दिया जाता है।


बिहेवियर थेरेपी

इसके अंतर्गत ऐसे व्यवहार या आदतों पर काबू पाने की कोशिश की जाती है जो एक व्यक्तित्व में नकारात्मक प्रभाव को भर सकते हैं। ऐसी आदतों से छुटकारा पाने के तरीके बताए जाते हैं। चिंता,डर,पैनिक अटैक आदि को यहाँ ठीक करने का लक्ष्य लिया जाता है। 



फैमली थेरेपी

यह थेरेपी किसी व्यक्ति विशेष पर केन्द्रित न होकर एक पूरे परिवार पर ध्यान देती है। हो सकता है सदस्यों में मनमुटाव हो या एक दूसरे के बीच आपसी सामंजस्य की कमी है या कुछ अनसुलझी समस्या जिस पर बातें न हो पा रही हो। इन परेशानियों के समाधान के लिए यह थेरेपी उपयुक्त है।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि लगभग 40% किशोर किसी न किसी रूप में डिप्रेशन के शिकार हैं। वही 3.7% किशोर डिप्रेशन की गंभीर स्थिति से जूझ रहे हैं। डिप्रेशन की वजह भी बदलती रहती है। घरेलू झंझट, तिरस्कार,मतभेद आदि किशोरियों में तनाव की स्थिति अधिक उत्पन्न करते हैं । एकाग्रता की कमी व कभी-कभी आत्महत्या के विचार भी प्रबल होने लगते हैं। चाइल्ड माइंड इंस्टीट्यूट के मुताबिक़  डिप्रेशन का शिकार हो रहे लोगों में 13 से 17 वर्ष के किशोरों की तादाद 14.3% है। एक शोध के मुताबिक किशोरियों को सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग भी डिप्रेशन देता है। लंदन की यूनिवर्सिटी के शोध से पता चला 14 साल की लड़कियां सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय है।टीनएज लड़कियों की उपस्थिति सोशल मीडिया पर अधिक है और लड़कों से तीन घंटे अधिक सक्रिय रहती हैं। इसका असर भी मानसिक स्वास्थ्य पर होता है।



कुछ बातों का ध्यान देने से किशोरियों को डिप्रेशन से बचाया जा सकता है:

जरूरत से ज्यादा किसी विषय पर न सोचना:

अधिक सोचना किसी परेशानी का इलाज नहीं हो सकता अपितु परेशानियों को आमंत्रित कर सकता है। व्यक्तिगत या 

दफ्तर से जुड़ी किसी समस्या को खुद पर हावी न होने दें।


खानपान का प्रभाव:

'ब्रेन बूस्टर' भोजन लें। जी हाँ, इनके बारे में जानकारी होना आवश्यक है। मेंटल हेल्थ से जुड़ी चीज़ों में  हल्दी,ब्रोकली,पंपकिन सीड्स, नट्स, डार्क चॉकलेट, फैटी फिश, ब्लूबेरी आदि अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। मन को दुरुस्त करने में उनकी भूमिका प्रबल होती है।


मन की बात बांटे:

मनुज एक सामाजिक पशु है। अकेलापन उसकी सोच व व्यक्तित्व के लिए घातक होता है। बिना संकोच किए अपने दोस्तों व घरवालों से बात करें। हमें अपनों से सहारा लेने में कोई शर्म नहीं दिखानी चाहिए। बातें करने से हो सकता है समस्या का समाधान जल्दी मिले। 


एकाग्रता को दें प्राथमिकता:

अपने जीवन में छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करें। कार्य के संपन्न होने पर खुद को बधाई दें। खुद का दिया हुआ प्रोत्साहन आत्मविश्वास का जनक होता है। इससे आप अधिक एकाग्र हो पाएंगे जिससे मन शांत रहेगा।

तनाव प्रबंधन को अपनाएं : 

व्यायाम,टहलना, ध्यान लगाना इत्यादि तनाव को नियंत्रित करने में काफी कारगर हैं। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में कुछ पल अपनी शांति को आवंटित करें। आपका मन स्वस्थ होगा तो तन भी स्वतः स्फूर्ति का आलिंगन कर पाएगा।

 

एक सकारात्मक रवैया रखें:

सकारात्मक रवैया किसी का बुरा न सोच कर भी अपनी आदत में शामिल किया जा सकता है। दूसरों की मदद करना एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। 


नया सीखने की इच्छा को रखें जीवित:

अपनी रूचि को तवज्जो देने के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व को नए आयामों से भी अवगत कराते रहना चाहिए। वो कहते हैं 'खाली दिमाग शैतान का घर'। तो कुछ सीखना और उसे व्यवहार में लाना आपका बौद्धिक विकास भी करेगा। 


नींद को दे महत्व:

नींद किसी वरदान से कम नहीं। प्रतिरोधक क्षमता के विकास के साथ-साथ मानसिक स्तर पर भी पर्याप्त नींद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चिड़चिड़ापन का स्वभाव में  होना व सोचने की क्षमता का क्षीण होना कम नींद लेने से उत्पन्न होते हैं ।


शरीर की करें हिफाज़त:

हमारा शरीर हमारे लिए किसी मंदिर से कम नहीं होना चाहिए। इसको पौष्टिकता से युक्त भोजन और आराम का उपहार अवश्य दें। पानी भी खूब पीएं ताकि शरीर से अनावश्यक तत्व बाहर हों।


सकारात्मक लोगों के साथ समय बिताने की करें कोशिश:

एक सकारात्मक संगति आप पर अच्छा प्रभाव डालती है। आपके नजरिये के साथ-साथ आपको तनाव मुक्ति भी देती है। 


उपर्युक्त दिए गए बिंदुओं पर गौर फरमाने से मानसिक स्वास्थ्य में लाभ मिलता है। वही मनोचिकित्सा या परामर्श लेना कभी भी संकोच का विषय नहीं होना चाहिए। कई बार अपने आसपास इस परेशानी से जूझते लोगों की तकलीफ समझ नहीं पाते। खासकर किशोरियां जिन्हें मानसिक व शारीरिक बदलाव के साथ एक चुनौतीपूर्ण समाज का भी सामना करना पड़ता है, डिप्रेशन के चंगुल में न फंसने के लिए उन्हें एक सकारात्मक वातावरण की आवश्यकता होती है।

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