Pregnant hone ke tareeke- मैं गर्भ धारण करने में सक्षम नहीं हूं कि मेरे पास बच्चा पैदा करने के लिए और क्या विकल्प हैं?


मातृत्व का सुख वह सुख है जिसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है। यह एक और के जीवन का सबसे सुनहरा पल होता है।एक मां को प्रसव के दौरान जितनी पीड़ा दर्द होता है उतना दर्द को सह नही कर सकता लेकिन अपनी आन वाली संतान के लिए एक मां वो असहनी दर्द भी सह जाती है मां की जगह हमारे जीवन में को नहीं ले सकता

मां होना जीवन की एक चुनौतीपूर्ण भूमिका है। कई बार महिला चाह कर भी मातृत्व सुख प्राप्त नहीं कर पाती हर व्यक्ति अपने जीवन में एक समय के बाद अपना परिवार पूरा करने की सोचता है। अपने घर में बच्चे की किलकारी सुनने की इच्छा कई लोगों की अधूरी रह जाती है।


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इसके कई कारण है-

  •  इसमें मुख्य रूप से स्त्रियों के नालियों में रुकावट व अन्य खराबी, स्त्रियों के अंडों का न बनना तथा माहवारी अनियमित होना,
  •  स्त्रियों के अंडों का न बढ़ना व समय पर नहीं फूटना,
  •  पुरुष के वीर्य में शुक्राणु की मात्रा की कमी, 
  • कृत्रिम गर्भधारण के बाद भी सफलता नहीं मिलना
  • मानसिक तनाव एवं काम में व्यस्तता आदि के कारण भी बड़ी संख्या में महिलायें गर्भधारण नहीं कर पा रही हैं।


 इस समस्या के समाधान के लिए विज्ञान व अनुसंधान तथा नयी तकनीक का इस्तेमाल पर जोर दिया गया।

और आ विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि इस समस्या का भी समाधान मिल गया है कई ऐसी तकनी आ चुकी है जिससे ज्यादातर महिलाएं जो गर्भ धारण करने में असफल होती है वो भी मातृत्व सुख की प्राप्ति कर सकती है

यदि आप निःसन्तानता से जूझ रहे हैं तो आप अपने डॉक्टर से विचार विमर्श करके, किसी भी फर्टिलिटी इलाज को चुन सकते हैं।

इनमें प्रमुख है,

1. IVF

2. IUI

3. ICSI


1. IVF



IVF क्या होता है?

IVF  का फूल फॉर्म इन विट्रो फर्टिलाइजेशन है। पहले इसे “टेस्ट-ट्यूब बेबी” के नाम से जाना जाता था। इस प्रक्रिया का प्रयोग पहली बार 1978 में इंग्लैंड में किया गया था। 

आईवीएफ ट्रीटमेंट में प्रयोगशाला में कुछ नियंत्रित परिस्थितियों में महिला के एग्स और पुरुष के स्पर्म को मिलाया जाता है। जब संयोजन से भ्रूण बन जाता है तब उसे वापस महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है। हालाँकि आईवीएफ एक जटिल और महंगी प्रक्रिया है, किन्तु यह प्रक्रिया उन दम्पतियों के लिए बहुत सहायक होती है जो बहुत समय से गर्भधारण की तैयारी कर रहे हैं या किसी कारणवश अन्य फर्टिलिटी ट्रीटमेंट असफल हो गए हैं। आइये जानते हैं  IVF प्रक्रिया।


IVF प्रक्रिया क्यों की जाती है?

 यदि आपका डॉक्टर आपको IVF कराने की सलाह देता है तो उसके लिए निम्न कारण हो सकते हैं:

1. स्पर्म कम होने की स्थति में 

2. PCOD जैसी स्थितियों के कारण ओव्यूलेशन में समस्या

3. फैलोपियन ट्यूब के साथ समस्याएं

4. यदि दम्पति में से किसी ने नसबंदी कराई है 

5.एंडोमेट्रोसिस 

6. अन्य फर्टिलिटी इलाजों के असफल हो जाने पर 

आई वी एफ प्रकिया में क्या होता है? (IVF Process in Hindi)



इसके अलावा IVF प्रक्रिया (IVF process in Hindi) के लिए आप डोनर स्पर्म या डोनर एग का प्रयोग भी कर सकते हैं। इस प्रकार की प्रक्रिया उन दम्पतियों के लिए लाभकारी होती है जो किसी प्रकार के गंभीर आनुवंशिक विकार से पीड़ित हैं और अपने बच्चो में उस विकार को नहीं चाहते हैं।


साथ ही यदि कोई महिला या पुरुष कम आयु में कैंसर से पीड़ित हो जाते हैं, उस स्थिति में भी वे अपने स्वस्थ अंडे या शुक्राणु को IVF की सहायता से भविष्य के लिए बचा सकते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी का प्रयोग किया जाता है जो प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है। कैंसर के इलाज के बाद इन एग्स या स्पर्म को IVF प्रक्रिया के लिए प्रयोग किया जा सकता है।


आई वी एफ प्रकिया में क्या होता है?

इस प्रक्रिया में महिला और पुरुष की जाँच की जाती हैं, उसके बाद परिणाम के अनुसार प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं।


1.पुरुष के सीमेन को लैब में साफ़ किया जाता है। फिर सक्रिय (अच्छे) और असक्रिय (बेकार) शुक्राणुओं को अलग किया जाता हैं।

2.महिला के शरीर में से इंजेक्शन के ज़रिए अंडे को बाहर निकालकर फ्रीज किया जाता है।

3.फिर लैब में पेट्री-डिश में अंडे के ऊपर सक्रिय शुक्राणु को रखा जाता है और प्राकृतिक रूप से प्रजनन के लिए छोड़ दिया जाता है।

4.प्रजनन के तीसरे दिन तक भ्रूण तैयार हो जाता है।

5.कैथिटर (Catheter) जो एक विशेष लचकदार नली की तरह दिखता है, उसकी मदद से महिला के गर्भाशय में ट्रासंफर किया जाता है।

कई बार भ्रूण को 5 दिन तक की निगरानी के बाद महिला के गर्भाशय में रखा जाता है।

5 दिन वाले भ्रूण में प्रेगन्नसी की सफलता दर अधिक बढ़ जाती है।





2. IUI

जब दवा और ओवुलेशन के समय पर सेक्स करने पर कंसीव नहीं हो पाता है तो आईयूआई की मदद ली जाती है। यदि स्पर्म काउंट या इनकी गतिशीलता में हल्की सी कमी हो या एंडोमेट्रियोसिस के हल्के मामलों में आईयूआई की सलाह दी जाती है।


जो महिलाएं नियमित रूप से ओवुलेट नहीं कर पाती हैं, उन्हें आईयूआई के साथ ओवुलेशन शुरू करवाया जा सकता है। वहीं जिन कपल्स में इनफर्टिलिटी का कारण समझ नहीं आता है, उन्हें भी आईयूआई की सलाह दी जा सकती है।

IUI मतलब इंट्रा यूटेराईन इन्सेमिनेशन। इसमें एक पतली नली के सहायता से धुले हुए शुक्राणुओं को बच्चेदनी के मुँह द्वारा बच्चेदानी में डाले जाते हैं ।


आईयूआई एक फर्टिलिटी ट्रीटमेंट है जिसमें स्पर्म को महिला के गर्भाशय में सीधा डाला जाता है। नॉर्मल कंसीव करने की प्रक्रिया में स्पर्म  गर्भाशय ग्रीवा के जरिए योनि में पहुंचता है और फिर फैलोपियन ट्यूबों की मदद से गर्भाशय तक आता है।


लेकिन नैचुरली यह प्रक्रिया नहीं हो पाती है तो इस स्थिति में आईयूआई की मदद से स्पर्म   को सीधा एग के नजदीक गर्भाशय में डाला जाता है। इस प्रक्रिया से महिला के मां बनने की संभावना बढ़ जाती है।



IUI की प्रक्रिया कैसे की जाती है ?


1.मासिक धर्म से 2 या तीन दिन में 5 से 10 दिन के लिए महिलाओं को गोनाडोट्रोपिन दवा या इंजेक्शन दिए जाते हैं। इसके बाद हर तीसरे या चौथे दिन पर सोनोग्राफी की मदद से मॉनिटर किया जाता है।


2.फॉलिकल्स के सही साइज में होने पर एचसीजी के इंजेक्शन से ओवुलेशन की प्रक्रिया को ट्रिगर किया जाता है और लगभग 36 घंटे के अंदर आईयूआई प्रक्रिया की जाती है।


3.आईयूआई ट्रीटमेंट के दिन मेल पार्टनर को अपने वीर्य का सैंपल देना होता है। वीर्य के सैंपल को लैब में प्रोसेस किया जाता है और फिर महिला के गर्भाशय में इसे डाल दिया जाता है।


4.इसके बाद 14 दिनों तक महिला को दवा दी जा सकती है जिसके बाद एचसीजी टेस्ट से प्रेग्नेंसी को कंफर्म किया जाता है।


3. ICSI


आईसीएसआई का संपूर्ण नाम इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन है। जिसे मुख्य रूप से पुरूष के बांझपन का इलाज करने के लिए किया जाता है। हालांकि, आईसीएसआई को आईवीएफ की भांति किया जाता है, लेकिन जिन पुरूषों में शुक्राणों  की कमी होती है, उनके लिए आईवीएफ अत्याधिक लाभदायक नहीं होता है। इस स्थिति में उनके लिए सबसे उपयुक्त तरीका आईसीएसआई ही होता है।


आईसीएसआई में पुरूष के शुक्राणु को अंडाणु में इंजेक्ट किया जाता है, ताकि उससे अंडाणु फर्टिलाइज हो सके, जिसकी मदद से इस समस्या को हल किया जा सकता है।


आईसीएसआई कराने के कौन-कौन से कारण होते हैं? 

हालांकि, कुछ क्लीनिक आईसीएसआई सर्जरी कराने की सलाह ऐसे दंपत्तियों को देते हैं, जिनमें पुरूष साथी में मेल इनफर्टिलिटी की समस्या होती है, लेकिन कुछ क्लीनिकों में आईसीएसआई सर्जरी को आईवीएफ चक्र के दौरान भी किया जाता है।


जो पुरूष निम्नलिखित समस्या से जूझ रहे होते हैं, उन्हें डॉक्टर आईसीएसआई सर्जरी कराने की सलाह देते हैं-


शुक्राणु (स्पर्म) का नहीं होना- जिस पुरूष के वीर्य (सीमेन) में शुक्राणु (स्पर्म) बिल्कुल मौजूद नहीं होते हैं, उस स्थिति को एज़ूस्पर्मिए (आशुक्राणुता) कहा जाता है।

इस स्थिति में उसे आईसीएसआई सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है क्योंकि उसके लिए आईवीएफ प्रक्रिया उपयोगी नहीं होती है।

शुक्राणु (स्पर्म) का कम मात्रा में होना-  अक्सर ऐसा देखा गया है कि कुछ पुरूषों के वीर्य (सीमेन) में पर्याप्त मात्रा में शुक्राणु उपलब्ध नहीं होते हैं, इस स्थिति को ओलिगोस्पर्मिया कहा जाता है।

इस समस्या के कारण पुरूष बच्चे के जन्म में अपना योग्यदान नहीं दे पाता है। तब उसके लिए डॉक्टर आईसीएसआई सर्जरी कराने की सलाह देते हैं।

शुक्राणु की गतिशीलता का कम होना- यदि कोई पुरूष तमाम कोशिशों के बावजूद भी पिता नहीं बन पा रहा है, तो इसका कारण यह हो सकता है कि उसके शुक्राणु की गतिशीलता काफी कम हो, जिसकी वजह से वह अंडाणु की दीवार (एग वॉल) तक जाने में असमर्थ हो।

इस स्थिति को लॉ स्पर्म मोटिलिटी कहा जाता है। जो पुरूष इस समस्या से पीड़ित होता है उसे आईसीएसआई सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है।

शुक्राणु की गुणवत्ता का खराब होना- जिस व्यक्ति के शुक्राणु की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है, उसे डॉक्टर आईसीएसआई सर्जरी कराने की सलाह देते हैं।

नसबंदी के बाद पिता बनने की इच्छा का होना- नसबंदी से तात्पर्य ऐसे तरीके से है जिसका उपयोग परिवार नियोजन के तहत किया जाता है।


कैसे किया जाता है ICSI आईवीएफ

आईसीएसआई सर्जरी को मुख्य रूप से प्रयोगशाला में किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 4 से 6 सप्ताह का समय लगता है। आईसीएसआई सर्जरी को करने का मुख्य उद्देश्य पुरूष में पर्याप्त मात्रा शुक्राणु उत्पन्न करना है, ताकि उससे कोई महिला गर्भवती  हो सके। इसके अलावा आईसीएसआई सर्जरी को इनफर्टिलिटी का इलाज  करने के लिए किया जाता है।


ICSI आईवीएफ के करने के लिए निम्न स्टेप लेने पड़ते हैं।


1.मेच्योर एग को पतली नलिका में रखा जाता है।

2.इसके बाद बहुत ही नाजुक, तेज और खोखली सुई को स्पर्म डालने के लिए यूज किया जाता है।

3.इसके बाद सुई को एग के बाहरी भाग से अंदर की डाला जाता है। जब सुई एग के आवरण के अंदर आ जाती है तो स्पर्म को साइटोप्लाज्म में सावधानी से डाल दिया जाता है।

4.स्पर्म को साइटोप्लाज्म में इंजेक्ट किया जाता है और सुई को सावधानी से हटा लिया जाता है।

5.ICSI आईवीएफ की प्रक्रिया एक बार हो जाने पर सुई को सावधानी से बाहर निकाल लिया जाता है।

6.फर्टिलाइजेशन सही से हुआ है या फिर नहीं, इसके लिए एग की जांच अगले दिन की जाती है।

7.एक बार फर्टिलाइजेशन की प्रोसेस सही से हो जाती है तो एब्रियो ट्रांसफर प्रोसेस की हेल्प से एब्रियो को यूट्रस में ट्रांसफर कर दिया जाता है।

8.इसके बाद महिला की प्रेग्नेंसी को कंफर्म करने के लिए महिला का ब्लड टेस्ट किया जाता है। साथ ही अल्ट्रासाउंड भी किया जाता है।


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