अवसाद, खिन्नता, चिचड़ापन,उदासी,मायूसी,अपने ही ख्यालों में खोये रहना, लोगों से कट कर रहना, रुचि का खत्म हो जाना..ऐसी परिस्थितियों का ज़हन में आगमन होते ही एक ही शब्द सामने आता है, वो है 'डिप्रेशन'। हालांकि कभी-कभी एक साधारण उदासी को भी डिप्रेशन का तमगा दे दिया जाता है। पर लोगों को डिप्रेशन से जुड़े तथ्यों की अमूमन जानकारी नहीं होती है, इसलिए इसके शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज किया जाता है।
आइए एक नज़र डालते हैं डिप्रेशन और उससे जुड़े कारणों पर
जब तनाव, उदासी व नकारात्मता मन पर हावी हो जाती है और सोचने-समझने की क्षमता क्षीण हो जाती है तो इस मानसिक रोग का आगमन होता है। जब यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालती है। जब डिप्रेशन चरम सीमा पर पहुँचता है तो इससे जूझने वाला व्यक्ति आत्महत्या संबंधी विचार भी मन में लाने लगता है। हर साल आत्महत्या की वजह से 80 हज़ार लोग जान गंवा देते हैं। यह जानकारी दुख देने वाली है कि आत्महत्या 15 से 29 वर्षीय किशोरों की मौत का दूसरा मुख्य कारण है।
हाल के एक रिसर्च की मानें तो डिप्रेशन में शरीर में दर्द भी बहुत रहता है।
डिप्रेशन के कुछ बड़े कारण :
* फैमिली हिस्ट्री -
जी हाँ। अगर परिवार में ऐसा पहले हुआ है तो खतरा बढ़ा रहता है डिप्रेशन का।
* कोई दुख या सदमा-
कोई गहरा दुख या सदमा या किसी अपने को खोना डिप्रेशन के खतरे को बढ़ावा देता है। कभी-कभी किसी सगे संबंधी की मृत्यु या असफलता या बिछड़ना भी इसके कारण हो सकते हैं।
*जेंडर
माना जाता है महिलाओं को डिप्रेशन होने का खतरा दोगुना ज्यादा होता है। इसका कोई पुख्ता कारण सामने नहीं आया है। माना जाता है हार्मोनल चेंजेस इसके पीछे एक प्रमुख कारण हो सकते हैं।अगर आप एक महिला हैं और इस नाजुक दौर से गुज़र रहीं हैं तो यह कहना गलत नहीं होगा कि आपको इस बीमारी के साथ ही साथ पारिवारिक व सामाजिक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा। अक्सर लोग महिलाओं से स्नेह व ख्याल की उम्मीद करते हैं परन्तु जब वो मुश्किलों से गुज़र रही होती हैं तो उनके प्रति संवेदना व स्नेह उस स्तर को देखने को नहीं मिलता है।
* शोषण
किसी प्रकार का शोषण या अब्यूज चाहे वो सेक्सुअली किया गया हो या भावनात्मक तरीके से, ये भी डिप्रेशन का एक कारण बन सकता है। ऐसी नकारात्मक परिस्थिति मानस पटल पर बुरा असर देती है।
भारत जैसे देश में डिप्रेशन तेजी से किशोरों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। यह भी एक चिंता का विषय है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जैसे कि:
.शिक्षा का दबाव
.रोजगार की समस्या
.अकेलापन
.रिलेशनशिप से जुड़ी समस्या
.घरवालों की उम्मीदें पूरी करने का दबाव
.अकेलापन
कुछ लक्षण जो अवसाद से गुज़रने वाले लोगों में प्रायः पाए जाते हैं-
अक्सर कहासुनी होना
अकेले में समय व्यतीत करना
कम सोना
कार्यों में अरूचि
भावनात्मक संबंधों में ठेस लगने से दुखी होना या रहना
भूख में कमी
आशा खो देना
कभी-कभी ज्यादा खाने से वजन बढ़ना
देर रात तक नींद न आना
बिना परिश्रम के भी थका रहना
क्रोनिक पेन
कोई निर्णय लेने में असमर्थता
डिप्रेशन का शारीरिक स्तर पर दुष्प्रभाव:
* केवल उदासी व चिड़चिड़ापन ही डिप्रेशन को नहीं झलकाता है। शरीर में दर्द भी इस डिप्रेशन का परिचायक हो सकता है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोध के अनुसार पेट में ऐंठन, पेट फूलना आदि भी इसके संकेत देते हैं।
* सिरदर्द भी इसकी ( डिप्रेशन) देन हो सकता है। तनाव या चिंता से भौंह के पास चुभन जैसा दर्द महसूस कर सकते हैं।
* कमर दर्द भी डिप्रेशन के कारण हो सकता है। डिप्रेशन के कारण शरीर होने वाली सूजन मस्तिष्क के संकेतों के लिए बाधक है।
* सुस्ती व थकान हमेशा महसूस होती है। डिप्रेशन आपकी सक्रियता को बाधित करता है।
डिप्रेशन का उपचार व निदान किस प्रकार हो:
* उपचार का प्रथम कदम एक मानसिक चिकित्सक को संपर्क करना होना चाहिए।
* यह परामर्श मरीज की स्थिति का आकलन कर उसके इलाज को आगे बढ़ाने में मदद करता है।
* नियम व प्रयोग किए जाते हैं और रोगी के परिवार व चिकित्सा से जुड़े इतिहास का अध्ययन किया जाता है।
* मनोचिकित्सा रोगी को डिप्रेशन व इससे जुड़े कारणों से परिचित करवाती है। यह मदद करती है, रोगी को इससे निकलने में।
अब प्रश्न यह है कि आखिर डिप्रेशन जैसी स्थिति को टालने के लिए क्या किया जाए? कुछ लाभकारी बिंदुओं का अवलोकन करते हैं:
जरूरत से ज्यादा किसी विषय पर न सोचना:
अधिक सोचना किसी परेशानी का इलाज नहीं हो सकता अपितु परेशानियों को आमंत्रित कर सकता है। व्यक्तिगत या दफ्तर से जुड़ी किसी समस्या को खुद पर हावी न होने दें।
खानपान का प्रभाव:
'ब्रेन बूस्टर' भोजन लें। जी हाँ, इनके बारे में जानकारी होना आवश्यक है। मेंटल हेल्थ से जुड़ी चीज़ों में हल्दी,ब्रोकली,पंपकिन सीड्स, नट्स, डार्क चॉकलेट, फैटी फिश, ब्लूबेरी आदि अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। मन को दुरुस्त व स्फुरित करने में इनकी भूमिका प्रबल होती है।
मन की बात बांटे:
मनुज एक सामाजिक पशु है। अकेलापन उसकी सोच व व्यक्तित्व के लिए घातक होता है। बिना संकोच किए अपने दोस्तों व घरवालों से बात करें। हमें अपनों से सहारा लेने में कोई शर्म नहीं दिखानी चाहिए। बातें करने से हो सकता है समस्या का समाधान जल्दी मिले।
एकाग्रता को दें प्राथमिकता:
अपने जीवन में छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करें। कार्य के संपन्न होने पर खुद को बधाई दें। खुद का दिया हुआ प्रोत्साहन आत्मविश्वास का जनक होता है। इससे आप अधिक एकाग्र हो पाएंगें। इससे मन शांत रहेगा।
तनाव प्रबंधन को अपनाएं :
व्यायाम,टहलना, ध्यान लगाना इत्यादि तनाव को नियंत्रित करने में काफी कारगर हैं। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में कुछ पल अपनी शांति को आवंटित करें। आपका मन स्वस्थ होगा तो तन भी स्वतः स्फूर्ति का आलिंगन कर पाएगा।
एक सकारात्मक रवैया रखें:
सकारात्मक रवैया किसी का बुरा न सोच कर भी अपनी आदत में शामिल किया जा सकता है। दूसरों की मदद करना एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
सीखने की इच्छा को रखें जीवित:
अपनी रूचि को तवज्जो देने के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व को नए आयामों से भी अवगत करवाते रहना चाहिए। वो कहते हैं 'खाली दिमाग शैतान का घर'। तो कुछ सीखना और उसके व्यवहार में लाना आपका बौद्धिक विकास भी करेगा।
नींद को दे महत्व:
नींद किसी वरदान से कम नहीं। प्रतिरोधक क्षमता के विकास के साथ-साथ मानसिक स्तर पर भी पर्याप्त नींद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चिड़चिड़ापन का स्वभाव में होना व सोचने की क्षमता का क्षीण होना कम नींद लेने से उत्पन्न होते हैं ।
शरीर की करें हिफाज़त:
हमारा शरीर हमारे लिए किसी मंदिर से कम नहीं होना चाहिए। इसको पौष्टिकता से युक्त भोजन और आराम का उपहार अवश्य दें। पानी भी खूब पीएं ताकि शरीर से अनावश्यक तत्व बाहर हों।
सकारात्मक लोगों के साथ समय बिताने की करें कोशिश:
एक सकारात्मक संगति आप पर अच्छा प्रभाव डालती है। आपके नजरिये के साथ-साथ आपको तनाव मुक्ति भी देती है।
हम अक्सर तनाव, डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर आदि शब्दों से रूबरू होते हैं। यह देखने में काफी आम लगते हैं। पर इनके नकारात्मक प्रभाव पर गौर फरमाने की तकलीफ कम ही उठाई जाती है। इनसे लंबे समय तक जूझने वाले इंसान अपनी सोच,भावनाओं, व्यवहार आदि में बदलाव महसूस कर सकता है। मानसिक स्वास्थ्य अपने अंदर 'इमोशनल'(
भावनात्मक),'साइकोलॉजिकल'(मनोवैज्ञानिक) ,'सोशल वेल बीइंग'(सामाजिक खुशहाली) जैसे बिंदुओं का समावेश रखता है। हमेशा महसूस करना या हमारी याददाश्त इससे प्रभावित होती है। मानसिक स्वास्थ्य जीवन के हर पड़ाव पर अपनी महत्ता दर्ज करवाता है। मन स्वस्थ न हो तो स्ट्रोक, टाइप टू डायबिटीज, हृदय रोग आदि का खतरा बढ़ सकता है। चाइल्ड अब्यूज, ट्रॉमा,सेक्सुअल असॉल्ट इत्यादि मनोस्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।