दीपा को अक्सर ही पेट में दर्द और बेचैनी की शिकायत रहती थी। शुरू में उसने नजरअंदाज किया पर फिर समस्या बढ़ने लगी। चिकित्सक से परामर्श लेने पर पता चला कि उसे ' ओवेरियन सिस्ट' हो चुका है। जी हाँ,ओवेरियन सिस्ट यानि अंडाशय में बनने वाला सिस्ट। सिस्ट दिखने में एक छोटी थैली के समान होता है। इसमें तरल पदार्थ या हवा या कोई पदार्थ भरा हो सकता है। यह समस्या महिलाओं की प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करती है। यह एक आम समस्या है और कई महिलाओं में देखने को
मिलती है। वही जब सिस्ट से ब्लीडिंग होने लगती है तो फिर उसे हेमोरैजिक ओवेरियन सिस्ट कहा जाता है।
किस तरह के लक्षण हो सकते हैं:
- यह सिस्ट एक या दोनों अंडाशय पर हो सकता है जो कि एक गांठ के रूप में उभर के आता है।
- लक्षण आसानी से पकड़ में नहीं आते जब तक सिस्ट का आकार बड़ा न हो जाए।
- जब इनका आकार बड़ा हो जाता है तो फिर तकलीफ बढ़ती है।
- अपच, पेट में सूजन।
- सेक्स के दौरान दर्द।
-ब्रेस्ट में दर्द।
- पेलविक वाले हिस्से में दर्द।
-कमर के निचले हिस्से में दर्द।
-बिना खाए भी पेट का भरा महसूस होना।
-ब्लॉटिंग।
- मितली, उल्टी का महसूस होना।
- अनियमित माहवारी का होना।
- मुहांसे का आना।
- वजन का बढ़ना।
- बांझपन
- अनियमित तरीके से शरीर के बालों का बढ़ना।
- सिर के बालों का गिरना।
आइए अब एक नजर डालते हैं, सिस्ट के प्रकार पर:
यह कहा जाता है कि सिस्ट के दो प्रकार होते हैं:
- फंक्शनल : यह मासिक धर्म के समय होने वाले सिस्ट हैं।
- पैथोलॉजीकल: इस प्रकार के सिस्ट कैंसर के कारण भी बन सकते हैं।
डॉक्टरों की मानें तो सिस्ट कुछ महीनों में खुद ही ठीक हो जाता है मगर अगर यह दस सेंटीमीटर तक का हो गया तो पेलविस वाले क्षेत्र में भारीपन लगेगा और फिर इसको ऑपरेशन के द्वारा निकालने की सलाह दी जाती है। हालांकि ज्यादातर सिस्ट कैंसरस नहीं होते हैं। यह सिस्ट जब शरीर के भीतर 'रप्चर' कर जाता है तो बहुत कष्टप्रद होता है साथ में इंटरनल ब्लीडींग भी होती है।आइए अब एक नज़र विभिन्न प्रकार के सिस्ट और उनके 'नेचर' पर:
-फॉलीक्युलर सिस्ट
फॉलीक्युलर सिस्ट सबसे कॉमन प्रकार सिस्ट है जो एक फॉलीकल के ग्रोथ से जुड़ा हुआ है। यह माहवारी के दौरान ऐग्स रिलीज़ नहीं करते हैं और आमतौर पर खुद ही खत्म हो जाते हैं। जब फॉलीक्युलर सिस्ट में खून होते हैं तो ये हेमोरैजिक सिस्ट कहलाते हैं।
- कॉर्पस ल्यूटियम सिस्ट:
कॉर्पस ल्यूटियम सिस्ट फ्ल्यूड या खून से भरा होता है। अगर यह एक ओर ही हो तो इससे कोई खतरा नहीं होता। यह बिना कोई लक्षण दिखाए ही खुद ही खत्म हो जाता है।
- चॉकलेट सिस्ट:
एण्डोमेट्रिओसिस वो अवस्था है जब यूटेरस की लाइनिंग पर सेल ना बढ़ के यूटरेस के बाहर बढ़ने लगता है। यहाँ एक खून से भरा सिस्ट बनने लगता है जिसमें लाल और भूरे रंग के तत्व पाए जाते हैं, इसलिए इसको 'चॉकलेट' सिस्ट भी कहा जाता है।
- पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम:
पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम में बहुत सारे सिस्ट दोनों ओवरीज़ में हो जाते हैं। यह बहुत सारे हॉर्मोनल प्रॉब्लम को उत्पन्न करता है। इससे जूझनेवाली महिलाओं में 'इनफर्टिलिटी' उत्पन्न हो सकती है।
- डरमॉयड सिस्ट:
सिस्ट जिनमें असमान्य टिश्यूज़ होते हैं उन्हें डरमॉयड सिस्ट की संज्ञा मिलती है।
- ट्यूबो ओवेरियन एब्सेज़:
जब पेल्विक ऑर्गन्स यानि ओवरीज़ और फेलोपियन ट्यूब्स में इन्फेक्शन फैलता है। पस से भरे सिस्ट ओवरी और ट्यूब्स पर फैले होते हैं।
अक्सर हमारे मन में इस बात का ख्याल आता है कि गर्भावस्था में सिस्ट संबंधी स्थिति क्या हो सकती है या क्या गर्भधारण करने पर भी सिस्ट उत्पन्न होता है क्या? एक नज़र गर्भावस्था से जुड़ी स्थिति में सिस्ट के प्रभाव पर:
कभी-कभी ओवेरियन सिस्ट प्रेग्नेंसी में भी हो सकता है। प्री-नेटल अल्ट्रासाउंड में इसका पता चल सकता है। बहुत सारे ओवेरियन सिस्ट जो गर्भावस्था में मिलते हैं 'बेनाइन' स्टेज में मिलते हैं। पर तकलीफ ज्यादा बढ़ने से सर्जिकल मदद लाने की सलाह मिलती है।
क्या सिस्ट मेनोपाॅज के बाद भी हो सकता है?
ओवेरियन सिस्ट एक महिला के जीवन में कभी भी हो सकता है चाहे वो गर्भावस्था हो या मेन्सट्रुअल साइकिल के खत्म होने के बाद भी सिस्ट के होने की संभावना रहती है।
अब आप सोच रहे होंगे कि किस प्रकार सिस्ट को डायग्नोज़ किया जाता होगा। तो आइए रूबरू होते हैं इन पहलुओं से:
- कभी-कभी सिस्ट डाक्टरों के द्वारा बाइमैन्युअल इक्ज़ामिनेशन से पता लगाया जा सकता है।
- इमेजिंग टेक्निक्स भी प्रयोग में लाए जा सकते हैं।
- ट्रांसवेजायनल अल्ट्रासाउंड टेकनीक भी एक कारगर तरीका है सिस्ट के नेचर को पता लगाने का।
- सिस्ट सीटी स्कैन या एम.आर.आई स्कैन के द्वारा भी इसका पता लगाया जा सकता है।
अब तक के आर्टिकल को पढ़ कर हम ये समझ चुके हैं कि महिलाओं में ऐसी समस्या होना अब एक आम बात है। गर्भधारण करने योग्य महिलाओं से लेकर रजोनिवृत्ति की ओर बढ़ चली महिलाओं तक को अपनी चपेट में ये परेशानी ले सकती है। उनकी ओवरी से जुड़े हॉर्मोन्स में असंतुलन पैदा होता है जिससे उन्हें बड़ी मुसीबतों से गुज़रना पड़ जाता है। महिलाओं की प्रजनन क्षमता से लेकर, उनकी ओवरी को कमज़ोर कर के कैंसर की भी संभावना को उत्पन्न कर सकता है। तो सवाल यह है कि किस तरीके से शरीर का ध्यान रखा जाए जिससे इस तकलीफ से गुज़रना न पड़े। आइए एक नज़र इस पहलू पर:
- शारीरिक क्षमता को बढ़ाने के लिए व्यायाम करना चाहिए।
- महिलाओं को अपनी डायट का पूरा ख्याल रखना चाहिए।
- जीवनशैली में बदलाव लाना चाहिए। समय पर सोना और जागना शरीर को दुरुस्त रखता है।
- पीड़ित को अपने वज़न नियंत्रण पर ध्यान देना चाहिए।
- एक शोध के अनुसार जब मोटापे से ग्रसित महिलाएं जब अपना वज़न नियंत्रण कर पाईं तो उनमें से 75% को बांझपन की समस्या से छुटकारा मिल गया।
- वज़न घटाने पर कुछ महिलाओं की ओवरीज़ में अंडे फिर से बनने लग सकते हैं।
- तैलीय और जंक फूड से दूरी बनाना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
- वसायुक्त व्यंजनों का प्रयोग न करना चाहिए।
- हरी-पत्तेदार सब्जियों का प्रयोग करना लाभकारी है।
- मौसमी फल खाने चाहिए।
तो इससे हमें कब खतरा हो सकता है?
कहा जाता है कि यह आठ हफ्तों में यूं तो ठीक किया जा सकता है परंतु सिस्ट कबसे है और कितना गहरा है और रेडियोग्राफ़ीक फिचर्स सिस्ट की साइज़ और उम्र पर भी निर्भर करता है।ज्यादा तर यह कैंसरकारी नहीं होता. सही और समय पर दी गई चिकित्सा से ठीक हो जाता है।
साइज़ की बात अगर करें तो, दो सेंटीमीटर तक का सिस्ट सही उपचार व दवाई से ठीक हो जाते हैं. दूसरी तरफ चार सेंटीमीटर अगर साइज़ है, तो सर्जरी की मदद से यह ठीक किया जाता है. वैसे तो साइज़ दो से पांच सेंटीमीटर तक का हो सकता है, पर कभी कभी यह - आठ से पंद्रह सेंटीमीटर भी हो सकता है, इसलिए कौन से केस में सर्जरी की जरुरत होगी, यह डॉक्टर ही अपने जाँच के जरिए बता सकते हैं।
उपरोक्त दी गई जानकारी हमें यह दर्शाती है कि किसी प्रकार के दर्द को नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए। खासकर महिलाओं को अपना ख्याल रखना चाहिए जिनके लिए शारीरिक एवं सामाजिक चुनौतियों की भरमार है।हमारे समाज में जहाँ हर छोटी-बड़ी बातों पर एक औरत को आलोचना की कसौटी से गुज़रना पड़ता है वहाँ इस रोग से लड़ने की चुनौती सुरसा के मुख के समान विराट है। इसका 'श्रेय' कुछ सड़ी-गली मानसिकता को जाता है तो कुछ अनभिज्ञता को। हम अगर संवेदनशील रवैया अपना कर पीड़ितों में उर्जा का संचार करेंगे तो रास्ते उनके लिए थोड़े कम पथरीले होंगे।
जागरूकता छोटी-छोटी आदतों से झलकती है और भोजन प्रणाली की ओर सजगता एक जानलेवा बीमारी को टालने में कारगर है। संवेदनशील मन और पौष्टिक 'थाली' एक स्वस्थ शरीर के मेरुदंड हैं जिनके सहारे इन बीमारियों से दूरी बनाई जा सकती है।