'मानसिक स्वास्थ्य', एक ऐसे विषय के समान है के समान है जिसके बारे में सतही ज्ञान होना एक आम बात है, परन्तु इसकी गहराई तक जानकारी होना दुर्लभ है। मानसिक स्वास्थ्य का संबंध हमारे मस्तिष्क से होता है। मस्तिष्क एक ऐसा जटिल अंग है जो अन्य अंगों की तुलना में ज्यादा परिपक्व होता है। इसका 'स्वास्थ्य' निश्चय ही हमारे व्यक्तित्व में गहरा प्रभाव डालता है। हमारे शरीर की कार्य करने की क्षमता इस पर निर्भर करती है।
कभी-कभी दिमाग की क्षमता बुरी होने लगती है जिसके कारण लोगों को मानसिक रोगों से जूझने पड़ता। यह एक गंभीर विषय बन जाता है। लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस समस्या से बच कर जीवनयापन करना भी एक चुनौती है क्योंकि इस भागदौड़ भरी जिंदगी में जहाँ हम बाह्य चकाचौंध के पीछे भागते हैं वही आंतरिक पीड़ा को नजरअंदाज कर देते हैं जिससे परिणाम अनुकूल नहीं हो पाते।
मानसिक बीमारी क्या होती है?
हम अक्सर तनाव, डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर आदि शब्दों से रूबरू होते हैं। यह देखने में काफी आम लगते हैं। पर इसके नकारात्मक प्रभाव पर गौर फरमाने की तकलीफ कम ही उठाई जाती है। इसे लंबे समय तक जूझने वाले इंसान अपनी सोच,भावनाओं, व्यवहार आदि में बदलाव महसूस कर सकता है। मानसिक स्वास्थ्य अपने अंदर 'इमोशनल'( भावनात्मक), 'साइकोलॉजिकल'(मनोवैज्ञानिक) ,'सोशल वेल बीइंग'(सामाजिक खुशहाली) जैसे बिंदुओं का समावेश होता है। हमेशा महसूस करना या हमारी याददाश्त इससे प्रभावित होती है। मानसिक स्वास्थ्य जीवन के हर पड़ाव पर अपनी महत्ता दर्ज कराया है। मन स्वस्थ न हो तो स्ट्रोक, टाइप टू डायबिटीज, हृदय रोग आदि का खतरा बढ़ सकता है। चाइल्ड अब्यूज, ट्रामा,सेक्सुअल असाल्ट इत्यादि मन स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
आइए अब प्रकाश डालते हैं 'मानसिक स्वास्थ्य परामर्श' यानी मेंटल हेल्थ काउंसलिंग के महत्व के बारे में। आमतौर पर हम साइकेट्रिस्ट या साइकोलोजिस्ट को अपनी संकुचित बुद्धि या ज्ञान के कारण बस 'पागलों के डॉक्टर' के रूप में जानते हैं । हम मेंटल हेल्थ पर खुल कर बात करने से कतराते हैं तो जाहिर है इसके समाधान पर हमारा ध्यान नहीं जाता है। अमूमन मनोचिकित्सक सिर्फ दिमागी बीमारी तक ही सीमित नहीं है। इसका लक्ष्य समाज में सौहार्द्र स्थापित करना भी होता है। इससे चिंता से छुटकारा,नशा मुक्ति, सामाजिक सकारात्मकता, डर, वजन को नियंत्रित करना आदि लक्षणों की भी पूर्ति होती है।
साइकोथेरेपी में मनोचिकित्सक एवं 'क्लाइंट' की भूमिका होती है। फ्लाइट वो होता है जो मनोचिकित्सक लेता है। इसे साधारण भाषा में काउंसलिंग कहा जा सकता है। यह एक बातचीत के समान होता है जहाँ क्लाइंट की बुनियादी समस्याओं का जिक्र होता है। उसके विचारों को समझा जाता है। उसकी सोच को परखा जाता है। इस वार्तालाप को गोपनीय रखा जाता है ताकि उसकी भावनाओं एवं विश्वास को ठेस न पहुंचे। यह कभी किसी तीसरे को बताया नहीं जाता।
मनोचिकित्सक क्लाइंट की जरूरतों के हिसाब से वर्गों में बांट दी गई है। जानते हैं इसके प्रकार के बारे में:
कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी
इस प्रक्रिया के अंतर्गत नकारात्मक विचारों को काबू में लाने की पहल की जाती है। क्लाइंट को बताया जाता है कैसे अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रस्फुटित की जाए। यहाँ डिप्रेशन,तनाव,डिसऑर्डर आदि को ठीक करने की कोशिश की जा सकती है।
1.क्लाइंट सेंटर्ड थेरेपी
यहाँ प्लांट के लिए एक वातावरण बनाया जाता है जिससे उसके व्यक्तित्व का सकारात्मक विकास हो सके। यहां नशे की लत,पर्सनैलिटी डिसऑर्डर पर जोर दिया जाता है।
2.बिहेवियर थेरेपी
इसके अंतर्गत ऐसे व्यवहार या आदतों पर काबू पाने की कोशिश की जाती है जो एक व्यक्तित्व में नकारात्मक प्रभाव को भर सकते हैं। ऐसी आदतों से छुटकारा पाने के तरीके बताए जाते हैं। चिंता,डर,पैनिक अटैक आदि को यहाँ ठीक करने का लक्ष्य लिया जाता है।
3.फैमिली थेरेपी
यह थेरेपी किसी व्यक्ति विशेष पर केन्द्रित न होकर एक पूरे परिवार पर ध्यान देती है। हो सकता है सदस्यों में मनमुटाव हो या एक दूसरे के बीच आपसी सामंजस्य की कमी है या कुछ अनसुलझी समस्या जिस पर बातें न हो पा रही हो। इन परेशानियों के समाधान के लिए यह थेरेपी उपयुक्त है।
4.काउंसलिंग से जुड़े भ्रम:
अक्सर ऐसा माना जाता है कि 'मानसिक समस्या' तो हर दूसरे व्यक्ति को होती है। इससे भागना मुश्किल है। चिंता का कोई निवारण नहीं हो सकता। पर ऐसा नहीं है। हाँ जड़ से चिंता खत्म नहीं की जा सकती परन्तु मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेना इन परिस्थितियों से जूझने के लिए मानसिक रूप से सबल बनाता है। ऐसी ज़रूरी नहीं कि जो इनसे परामर्श ले वो एक 'मानसिक रोगी' ही कहलाए।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए क्या करें:
5.जरूरत से ज्यादा किसी विषय पर न सोचना:
अधिक सोचना किसी परेशानी का इलाज नहीं हो सकता अपितु परेशानियों को आमंत्रित कर सकता है। व्यक्तिगत या दफ्तर से जुड़ी किसी समस्या को खुद पर हावी न होने दें।
6.खानपान का प्रभाव:
'ब्रेन बूस्टर' भोजन लें। जी हाँ, इनके बारे में जानकारी होना आवश्यक है। मेंटल हेल्थ से जुड़ी चीज़ों में हल्दी,ब्रोकली,पंपकिन सीड्स, नट्स, डार्क चॉकलेट, फैटी फिश, ब्लूबेरी आदि अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। मन को दुरुस्त व स्फुरित करने में इनकी भूमिका प्रबल होती है।
7.मन की बात बांटे:
मनुज एक सामाजिक पशु है। अकेलापन उसकी सोच व व्यक्तित्व के लिए घातक होता है। बिना संकोच किए अपने दोस्तों व घरवालों से बात करें। हमें अपनों से सहारा लेने में कोई शर्म नहीं दिखानी चाहिए। बातें करने से हो सकता है समस्या का समाधान जल्दी मिले।
8.एकाग्रता को दें प्राथमिकता:
अपने जीवन में छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करें। कार्य के संपन्न होने पर खुद को बधाई दें। खुद का दिया हुआ प्रोत्साहन आत्मविश्वास का जनक होता है। इससे आप अधिक एकाग्र हो पाएंगे जिससे मन शांत रहेगा।
9.तनाव प्रबंधन को अपनाएं :
व्यायाम,टहलना, ध्यान लगाना इत्यादि तनाव को नियंत्रित करने में काफी कारगर हैं। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में कुछ पल अपनी शांति को आवंटित करें। आपका मन स्वस्थ होगा तो तन भी स्वतः स्फूर्ति का आलिंगन कर पाएगा।
10.एक सकारात्मक रवैया रखें:
सकारात्मक रवैया किसी का बुरा न सोच कर भी अपनी आदत में शामिल किया जा सकता है। दूसरों की मदद करना एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
नया सीखने की इच्छा को रखें जीवित:
अपनी रूचि को तवज्जो देने के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व को नए आयामों से भी अवगत कराते रहना चाहिए। वो कहते हैं 'खाली दिमाग शैतान का घर'। तो कुछ सीखना और उसके व्यवहार में लाना आपका बौद्धिक विकास भी करेगा।
11.नींद को दे महत्व:
नींद किसी वरदान से कम नहीं। प्रतिरोधक क्षमता के विकास के साथ-साथ मानसिक स्तर पर भी पर्याप्त नींद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चिड़चिड़ापन का स्वभाव में होना व सोचने की क्षमता का क्षीण होना कम नींद लेने से उत्पन्न होते हैं ।
12.शरीर की करें हिफाज़त:
हमारा शरीर हमारे लिए किसी मंदिर से कम नहीं होना चाहिए। उसकी पौष्टिकता से युक्त भोजन और आराम का उपहार अवश्य दें। पानी भी खूब पीएं ताकि शरीर से अनावश्यक तत्व बाहर हों।
13.सकारात्मक लोगों के साथ समय बिताने की करें कोशिश:
एक सकारात्मक संगति आप पर अच्छा प्रभाव डालती है। आपके नजरिये के साथ-साथ आपको तनाव मुक्ति भी देती है।
उपर्युक्त दिए गए बिंदुओं पर गौर फरमाने से मानसिक स्वास्थ्य में लाभ मिलता है। वही मनोचिकित्सा या परामर्श लेना कभी भी संकोच का विषय नहीं होना चाहिए। कई बार अपने आसपास इस परेशानी से जूझते लोगों की तकलीफ समझ नहीं पाते। ऐसे लोग कट कर जीने लगते हैं और कभी-कभी उनको हम अनभिज्ञता में खो भी देते हैं। अतः यह आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य को एक गंभीर विषय के रूप में लिया जाए। यह सामाजिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है।