मानसिक स्वास्थ्य
किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य को तीन भागों में बांटा गया है। मानसिक,शारीरिक और सामाजिक। इन तीनों में से किसी एक भाग में कमजोर होने पर हमें पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं कहा जा सकता ।स्वास्थ्य के ये तीनों ही पिलर एक दूसरे से जुड़े है। यदि किसी एक रूप से आप अस्वस्थ है तो उस अस्वस्थता का प्रभाव बाकी दो भागों पर भी पड़ता है।जैसे आप शारीरिक तौर पर चाहे पूरी तरह स्वस्थ हो लेकिन अगर आप मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है। तो शारीरिक और सामाजिक रूप से भी आपका पूरी तरह स्वस्थ होना बेहद मुश्किल है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, स्वास्थ्य सिर्फ रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति ही नहीं बल्कि एक पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक खुशहाली की स्थिति है।
मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति और आसपास की दुनिया के बीच संतुलन की स्थिति है। स्वयं और दूसरों के बीच सामंजस्य की स्थिति। स्वयं और अन्य लोगों और पर्यावरण की वास्तविकताओं के बीच सह-अस्तित्व की स्थिति।
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ हमारे भावनात्मक और आध्यात्मिक लचीलेपन से है जो हमें अपने जीवन में दर्द, निराशा और उदासी की स्थितियों में जीवित रहने के लिए सक्षम बनाती है। मानसिक स्वास्थ्य हमारी भावनाओं को व्यक्त करने और जीवन की ढेर सारी माँगों के प्रति अनुकूलन की क्षमता है। इसे अच्छा बनाए रखने के निम्नलिखित कुछ तरीके हैं-
1.प्रसन्नता, शांति व व्यवहार में प्रफुल्लता
2.आत्म-संतुष्टि (आत्म-भर्त्सना या आत्म-दया की स्थिति न हो।)
3.भीतर ही भीतर कोई भावात्मक संघर्ष न हो (सदैव स्वयं से युद्धरत होने का भाव न हो।)
4.मन की संतुलित अवस्था।
5.डर, क्रोध, इर्ष्या, का अभाव हो।
6.मनसिक तनाव एवं अवसाद ना हो।
7.वाणी में संयम और मधुरता हो।
8.कुशल व्यवहारी हो।
9.स्वार्थी ना हों
10.संतोषी जीवन की प्रवृति का वाला हो।
11.परोपकार एवं समाज सेवी की भावना वाला हो।
12.जीव मात्र के प्रति दया की भावना वाला हो।
12.परिस्थितियों के साथ संघर्ष करने की सहनशक्ति वाला हो।
13.विकट परिस्थितियों में सामंजस्य बनाने वाला हो।
14.सकारात्मक सोच हो।
मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा
मानसिक स्वास्थ्य की अलग अलग समय पर कई वैज्ञानिकों ने अलग अलग परिभाषा दी है।
कार्ल मेनिंगिंगर (1947) मानसिक स्वास्थ्य को "दुनिया के लिए मनुष्यों के समायोजन और अधिकतम प्रभावशीलता और खुशी के साथ" के रूप में परिभाषित करता है।
अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन (APA, 1980) मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करता है: "वृत्ति, विवेक, अन्य महत्वपूर्ण लोगों और वास्तविकता के बीच संघर्ष के परिपक्व और लचीले संकल्प की क्षमता के साथ काम करने, प्यार करने और बनाने में एक साथ सफलता
हैडफील्ड के मतानुसार, ‘‘सम्पूर्ण व्यक्तित्व की पूर्ण एवं सन्तुलित क्रियाशीलता को मानसिक स्वास्थ्य कहते हैं।
क्रो व क्रो के शब्दों में, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की वह विज्ञान है जिसका संबंध मानव कल्याण से है और इसी से मानव संबंधों का संपूर्ण क्षेत्र प्रभावित होता है।
लैडेल के अनुसार, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है वास्तविकता के धरातल पर वातावरण से पर्याप्त समायोजन करने की योग्यता’’।
के.ए.मेनिंगर के शब्दों में, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य, मनुष्यों का आपस में तथा मानव जगत के साथ समायोजन है’’।
आर.सी.कुल्हन के मतानुसार, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य एक उत्तम समायोजन है जो भग्नाशा से उत्पन्न तनाव को कम करता है तथा भग्नाशा को उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में रचनात्मक परिवर्तन करता है’’।
मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
मानसिक स्वास्थ्य को एक कारक प्रभावित नहीं करता वरन् इसको प्रभावित करने वाले अनेक कारण हैं,
1.जैविक कारक (Biological Factor)
2.मनौवैज्ञानिक कारक (Psychological Factor)
3.बहु-तत्व कारक (Multiple Factor)
4.वंशानुगत कारक (Hereditary Factor)
5.वातावरणीय कारक (Environmental Factor)
6.आर्थिक कारक (Economic Factor)
7.सामाजिक कारक (Social Factor)
(1) जैविक कारक (Biological Factor) -
आइजनेक कहते हैं कि, जो मजबूत केन्द्रीय स्नायुमण्डल रखते हैं वे संघर्षपूर्ण स्थितियों पर आसानी से विजय प्राप्त कर लेते हैं और जो कमजोर तंत्र के होते हैं वे जरा सी परेशानी से घबरा जाते हैं। अत: बहुत सी बीमारियों का शिकार संतुलित भोजन के अभाव में हो जाता है। व्यक्ति के शरीर में दो प्रकार की ग्रंथियाँ पायी जाती हैं : (अ) नलिका युक्त ग्रंथियां, एवं (ब) नलिका विहीन ग्रंथियां।
नलिका युक्त ग्रंथियों में एक नलिका होती है जो कि आवश्यकता पड़ने पर ही कार्य करती है। नलिका विहीन ग्रंथियों का शारीरिक विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ये ग्रंथियाँ सदैव क्रियाशील रहती है। शारीरिक विकास की दृष्टि से इसका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। ये ग्रंथियाँ सदैव क्रियाशील रहती हैं शारीरिक विकास, रक्त की शुद्धता, रासायनिक पदार्थों का मिश्रण बुद्धि, व्यक्तित्व संगठन, आदि सभी बातों को निर्धारित करने में इन ग्रंथियों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इसलिए इन ग्रंथियों की अधिक क्रियाशीलता या शिथिलता अनेक मानसिक रोगों को जन्म देती है।
इसी प्रकार हमारा संपूर्ण स्नायुमण्डल भी व्यक्ति के व्यवहारों एवं अनुभवों का नियंत्रण व निर्धारक होता है। इनके माध्यम से ही व्यक्ति बाहरी वातावरण से समायोजन स्थापित करता है।
(2) मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factor) -
मनोवैज्ञानिक कारणों में आत्म मूल्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। भावनायें भी उसके समायोजन को किसी सीमा तक प्रभावित करती हैं। यदि इन व्यक्तियों को स्नेह व सहमति मिलती है तो उसे संतोष मिलता है और वह अपने जीवन को सार्थक महसूस करता है। इसके विपरीत यदि उसे तिरस्कार मिलता है तो उसे असंतोष मिलता है। आत्म स्वीकृति के अंतर्गत कुछ मानक आदर्श तनाव से दूर रखते हैं। कुछ स्वयं को बहुत नीचा आंकते हैं, जिन्हें मानसिक द्वन्द्वों में उलझा देती है और उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।
(3) बहुतत्व सिद्धांत (Multiple Factor Theory) -
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बहुत सी मानसिक तत्वों को परेशानी का कारण माना है प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक तनाव को झेलने की एक सीमा होती है कमजोर इच्छाशक्ति वाले जरा सी मुसीबत से घबरा जाते और असफलता के भय से किसी कार्य को प्रारंभ ही नहीं करते लेकिन इसके विपरीत जो व्यक्ति दृढ़ इच्छाशक्ति वाले होते हैं वे जटिल से जटिल समस्याओं से भी नहीं घबराते और निरंतर उनसे जूझते रहते हैं और अंत में अपने उद्देश्य की प्राप्ति करते हैं।
(4) वंशानुगत कारक (Hereditary Factor) -
वंशानुक्रम के आधार पर ही संतानों में विभिन्न गुणों का विकास होता है। पैतृक के द्वारा संक्रमित इन गुणों के आधार पर ही किसी जीव में विभिन्न मानसिक व शारीरिक योग्यताएँ निर्धारित होती हैं। कुछ शोधों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि अनेक मानसिक रोगों का संबंध मानसिकता से भी होता है। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य को एक स्टील वायर ही समझना चाहिए।
(5) वातावरणीय कारक (Environmental Factors) -
मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने में वातावरण का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है। जब किसी कारणवश परिवर्तन करना होता है, ऐसी परिस्थितियों में सांवेगिक उथल-पुथल मचा देती है।
(6) आर्थिक कारक (Economic Factor) -
व्यवसाय तथा घर की आर्थिक स्थिति संगी-साथियों में अपने स्थान का आभास दिलाती है। आर्थिक स्थिति न केवल हमारे मानसिक स्वास्थ्य को ही प्रभावित करती है बल्कि यह हमारे सामान्य स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनमें आर्थिक पहलू विशेष महत्व रखता है और अगर ऐसे समय में बालक स्वयं को प्रतिभागी नहीं बनता वो उसे अपमानित होना पड़ता है ऐसी स्थिति में बालक किसी पर बोझ भी नहीं बनना चाहता और आर्थिक स्वतंत्रता भी चाहता है। परिणामत: उसका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।
(7) सामाजिक कारक (Social Factor) -
(अ) घर (Home) : औद्योगिक प्रगति ने परिवार के संगठन को छिन्न-भिन्न कर दिया है। जिन घरों में माता-पिता दोनों ही नौकरी करते हैं वहाँ बालकों की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। आधुनिकता की दौड़ में अलगाव और तलाक बढ़ते जा रहे हैं। इन सभी बातों का प्रभाव बालकों के मस्तिष्क पर पड़ना स्वाभाविक ही है। माता-पिता का पक्षपातपूर्ण व्यवहार भी बालक को पलायनवादी, एकाकी, विद्रोही, चोरी करने वाला बना देता है।
(स) समाज (Society) : समाज सामाजिक संबंधों का ताना-बाना है। समाज के रीति रिवाज, परम्पराओं एवं सामाजिक नियमों का व्यक्ति की जीवन शैली पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। आज के संघर्षमय जीवन में पग-पग पर व्यक्ति अपने को असुरक्षित महसूस करता है। वह समाज में अपना पद प्रतिष्ठा बनाए रखने की कोशिश करता है। असफल होने की स्थिति में उसे तनाव होता है। वह मानसिक द्वन्द्व में फँस जाता है।
मानसिक रोग के प्रकार (Types of mental illness):
जब हम अपने मानसिक स्वास्थ्य पर पूरी तरह ध्यान नहीं देते तब मानसिक अस्वस्थता बढ़ते बढ़ते एक मनोरोग का रूप धारण कर लेती है। और कभी कभी ये समस्या बहुत अधिक बढ़ जाती है।
मानसिक रोग से पीड़ित होने पर प्रभावी व्यक्ति का जीवन बदल जाता है। मानसिक रोगी होने पर व्यक्ति की मनोदशा, याददाश्त, स्वभाव और जीवनशैली की अन्य प्रक्रियाओं पर काफ़ी असर पड़ता है। इस स्थित में व्यक्ति अपने भावों में कंट्रोल नहीं कर पाता है। मानसिक रोग को मनोविकार या मानसिक स्वास्थ्य विकार भी कहते हैं।
आइये जानते है मानसिक रोग के प्रकार के बारे में।
साइकोसोमेटिक और सोमेटिक डिसऑर्डर: आज के समय में कुछ बीमारियां बहुत सामान्य बन चुकी हैं जैसे लो ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज आदि। हालांकि, यह सभी शारीरिक समस्या हैं लेकिन यह मनोवैज्ञानिक कारणों जैसे स्ट्रेस और एंग्जायटी से उत्पन्न होती हैं।
इसलिए साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर अर्ताथ मनोदैहिक विकार वह मानसिक समस्याएं हैं जो शारीरिक लक्षण दर्शातीं हैं, लेकिन इसके कारण साइकोलॉजिकल होते है। वह इसके विपरीत सोमेटिक डिसऑर्डर है, वह विकार हैं जिसके लक्षण शारीरिक है परंतु इनके बायोलॉजिकल कारण सामने नहीं आते है।
यदि कोई व्यक्ति पेट दर्द की शिकायत कर रहा है लेकिन तब भी व्यक्ति के पेट में कोई समस्या नहीं होती है तो यह सोमेटिक डिसऑर्डर में आता है।
चाइल्डहुड डिसऑर्डर: बच्चे भी मेंटल डिसऑर्डर के शिकार हो रहे है। यह डिसऑर्डर पहली बार बच्चों में और फिर किशोरावस्था में भी हो सकता है। इन में से कुछ अटेंशन डेफेसिट-हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर पाए जाते हैं जिसमें बच्चा सावधान या फोक्सड नहीं रह पाता या वह हाइपर एक्टिविटी व्यवहार करता है और स्वलीन विकार जिसमें बच्चा अंतर्मुखी हो जाता है, बिलकुल हंसना छोड़ देता है और बोलना भी देर से सीखता है।
साइकोएनालिसिस और मेंटल डिसऑर्डर: आपने अक्सर सड़क पर चलते हुए कभी किसी व्यक्ति को गंदे कपड़ों में, कूड़े के आसपास पड़े गंदे भोजन को खाते देखा होगा या फिर अजीब तरीके से बातचीत करते हुए देखा होगा। ऐसे व्यक्तियों में व्यक्ति, जगह और समय के विषय में कमजोर जानकारी होती है। हम अक्सर उन्हें पागल कह देते है, लेकिन वैसे मेन्टल डिसऑर्डर कहते है।
यह मेंटल डिसऑर्डर की गंभीर स्थिति होती है, जो अशांत विचारों, मनोभावों और व्यवहार से होते हैं। साइकोएनालिसिस डिसऑर्डर में असंगत मानसिकता (Incompatible Mentality), दोषपूर्ण अभिज्ञा (faulty perception), संचालक कार्यकलापों में बाधा (Hindrance of operator Activity), नीरस (monotonous) और अनुपयुक्त भाव(inappropriate emotions) होते हैं।
डिफ्रेनशीएशन का अर्थ किसी ऐसी चीज को देखना है जो वास्तव में फिजिकल रूप से वहाँ नहीं होती, कुछ ऐसी आवाजें सुनाई देना जो वास्तव में वहाँ नहीं है।
एंग्जायटी डिसऑर्डर: यदि कोई व्यक्ति बिना किसी विशेष कारण के डरा हुआ, भयभीत या चिंतित महसूस करता है तो कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति एंग्जायटी डिसऑर्डर से ग्रसित है। एंग्जायटी डिसऑर्डर के विभिन्न प्रकार होते हैं जिसमें चिंता की भावना विभिन्न रूपों में दिखाई देती है। इनमें से कुछ विचार किसी चीज से अत्यन्त और तर्कहीन डर के कारण होते हैं।
मूड डिसऑर्डर: वह व्यक्ति जो मूड डिसऑर्डर से ग्रसित होते हैं उनके मनोभाव लंबे समय तक रहते है, वह व्यक्ति किसी एक मनोभाव पर स्थिर हो जाते हैं या इन भावों की श्रेणियों में बदलते रहते हैं।
उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति कुछ दिनों तक उदास रहे या किसी एक दिन उदास रहे और दूसरे दिन खुश रहे, उस के व्यवहार का परिस्थिति से कुछ संबंध ना हो। इस तरह मूड डिसऑर्डर के दो प्रकार होते है।
डिप्रेशन: डिप्रेशन ऐसी मेंटल स्टेज है जो उदासी, रूचि का अभाव और प्रतिदिन की क्रियाओं में प्रसन्नता का अभाव, नींद कम आना, भूख में कमी, वजन कम होना या ज्यादा भूख लगना और वजन बढ़ना, आलस, दोषी महसूस करना, अयोग्यता, असहायता, निराशा, एकाग्रता स्थापित करने में परेशानी और अपने व दूसरों के प्रति नकारात्मक विचारधारा के लक्षणों को दर्शाती है।
बाइपोलर डिसऑर्डर: बाइपोलर डिसऑर्डर एक गंभीर मानसिक रोग है, जिसमें बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की मनोदशा असामान्य होती है। इस बीमारी में वह कभी बहुत खुश, सक्रिय, रह सकते हैं।
विघटनशील विकार (Disruptive Disorder): किसी-किसी अभिघात (Trauma) घटना के बाद व्यक्ति अपना पिछला अस्तित्व, और आस-पास के लोगों को पहचानने में असमर्थ हो जाता है। इसी को ही विघटनशील विकार कहते है, जिसमें किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व समाज च्युत (Isolation) व समाज से पृथक (Isolated from society) हो जाता है
विघटनशील स्मृतिलोप (Disruptive Amnesia), विघटनशील मनोविकार का एक वर्ग है, जिसमें व्यक्ति आमतौर पर किसी तनावपूर्ण घटना के बाद महत्वपूर्ण व्यक्तिगत सूचना को याद रखने में असमर्थ हो जाता है। विघटन की
स्थिति में व्यक्ति अपने नये अस्तित्व को महसूस करता है। दूसरा वर्ग विघटनशील पहचान विकार है जिसमें व्यक्ति अपनी याददाश्त खो ही देता है और नए अस्तित्व की कल्पना करने लगता है।
अन्य वर्ग व्यक्तित्वलोप विकार (Personification Disorder) है, जिसमें व्यक्ति अचानक बदलाव या भिन्न प्रकार से अलग महसूस करता है। व्यक्ति इस प्रकार महसूस करता है जैसे उसने अपने शरीर को त्याग दिया है या फिर उस की गतिविधियां अचानक से स्वप्न (Dream) के जैसी हो जाती है।
पर्सनालिटी डिसऑर्डर: पर्सनालिटी डिसऑर्डर की जड़ें किसी व्यक्ति के शैशव काल (Infancy) से जुड़ी होती हैं, जहाँ कुछ बच्चे अशुद्व विचारधारा विकसित कर लेते हैं। यह विभिन्न पर्सनालिटी डिसऑर्डर व्यक्ति में हानिरहित अलगाव से ले कर भावनाहीन क्रमिक हत्यारे के रूप में सामने आते हैं। पर्सनालिटी डिसऑर्डर की श्रेणियों को तीन समूहों में बांटा जा सकता है। पहले, समूह की विशेषता सनकी व्यवहार है. चिंता और शक दूसरे समूह की विशेषता है और तीसरे समूह की विशेषता है नाटकीय, भावपूर्ण और अनियमित व्यवहार।
मानसिक रूप से स्वास्थ्य कैसे रहें
1.प्राणायाम,योग या सांस संबंधी आसन सीखें
योग करना जीवन का एक अहम हिस्सा है और अगर आप योग को जीवन का हिस्सा बना लेते हैं तो उससे आपकी सेहत अच्छी होगी। इससे मानसिक सेहत भी बेहतर होगी जो एक बड़ी महत्वपूर्ण बात है।
जब कभी तनाव में हों, लंबी और गहरी सांस लें! “सजग श्वसन प्रक्रिया” को आसानी से सीखा जा सकता है। सामान्य गति से सांस लें और अपनी हर आती-जाती सांस के साथ शरीर में होने वाली संवेदना को महसूस करें। प्राणायाम या सजग श्वसन प्रक्रिया पर शोध कर हम अपनी भावनाओं और तनाव पर काबू रख सकते हैं। सजग श्वसन का एक अहम तरीका विकेंद्रीकरण भी है। इसमें हम अपने मस्तिष्क में चल रहे नकारात्मक विचारों को महसूस करना सीखते हैं और उस दौरान हम उसको ले कर कोई निष्कर्ष नहीं निकालते। इस तरह हम नकारात्मक भावों से खुद अपने आप को अलग रख पाने में कामयाब हो पाते हैं।
2.ध्यान लगाएं
ध्यान बहुत आसान प्रक्रिया है और इसके लिए सिर्फ कुछ मिनट ही चाहिए होते हैं! इससे शांति मिलती है, नकारात्मक भावनाएं कम होती हैं, तनाव से निपटने की शक्ति मिलती है और सहनशक्ति बढ़ती है। सजग ध्यान में आप अपने शरीर, सांस और विचारों को ले कर सजग रहते हैं, लेकिन कोई नकारात्मक भाव आए तो बिना उससे किसी निष्कर्ष पर पहुंचे ही आगे बढ़ जाते हैं और उसका प्रभाव स्वयं पर नहीं होने देते।
3.खुलकर बात करें - अगर आप चीजों को मन में दबा लेंगे तो वो आपको कष्ट ही देंगे। इसलिए ये जरूरी है कि आप स्पष्ट रूप से अपनी बात को रखें। जिस भी व्यक्ति या किसी कारण से जो समस्या है उसे अपने करीबी लोगों से बात करके समझने की कोशिश करें।
4.व्यायाम करें - शारीरिक वर्जिश आपके शरीर को फिट और दिमाग को तंदुरुस्त बनाए रखने के लिए काफी है। सेहत में होने वाले बदलाव का दिमाग पर एक गहरा असर होता है।व्यायाम करने से आप मानसिक एवं शारीरिक दोनो तरह से स्वस्थ रहते है।
5.एक सही दिनचर्या रखें - मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए अपनी दिनचर्या को सही रखें। एक सही दिनचर्या एक अच्छे जीवन की कुंजी है। सही दिनचर्या होने से आप में आत्मविश्वास आता है कि आप अपने जीवन में क्या क्या कर रहे है और आगे क्या कर सकते है।
6.मेडिकल हेल्थ चेकअप का ध्यान रखे
हाइपरटेंशन, ओबेसिटी, डायबिटीज, डिप्रेशन, हायर कोलेस्ट्रॉल, धूम्रपान इन सब से Dementia का खतरा बढ़ जाता है, आप इसको कंट्रोल में रख सकते है, रेगुलर चेकअप से आप इस खतरे से बच सकते है, अपने डॉक्टर के सुझाव मने और दिए हुए सुझाव और दवा ले अगर आवश्यक हो |
7.आराम अवश्य करे
आपके दिमाग की सेहत के लिए आराम भी बहुत आवश्यक है, ये आपके इम्यून सिस्टम को भी सही रखने में मदद करता है, साथ ही दिमाग में असामान्य प्रोटीन के निर्माण से भी बचाता है, जो की है बीटा अमीलॉइड प्लाइके, जिसका की जुड़ाव है अल्ज़्हेइमेर नमक बीमारी से है | ध्यान करने से और तनाव से बचने से भी आपको नकारात्मक प्रभाव से बचने में मदद मिलेगी, सकारात्मक रहें और स्वस्थ रहे |
8.सोशल एक्टिव नेस बनाये रखे
जो व्यक्ति समाज से जुड़ा रहता है, वह Memory loss से भी बचा रहता है, लोगो के साथ समय बिताये उनके बीच में रहे ये सब आपके मानसिक स्वास्थ्य पे सकारात्मक प्रभाव बनाते है और आपको mental peace भी मिलती है | अध्ययन में पाया गया है की जो लोग समाज में एक्टिव रहते है उनमे मेमोरी लोस्स और मेन्टल प्रोब्लेम्स कम पाए गए है
9.नई गतिविधि में मन लगाएं
मानसिक रूप में स्वस्थ रहना है तो सबसे पहले ये जरूर ध्यान रखें कि आप अक्सर ही कुछ नया काम करें या फिर वह काम करें जिसे करके आपको खुशी महसूस हो। ऐसा करने से नई- नई चीजों को सीखने का अवसर मिलता है। मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए अपने शौक और पसंद को भी जिंदा रखें। सप्ताह या महीने में एक या दो बार कहीं न कहीं घूमने जाएं
10.खुद को व्यक्त करें
कभी कभी ऐसा होता है कि अपने मन की बात मन में रखने से घुटन महसूस होता है तो ऐसे में वो धीरे- धीरे मन में बैठ जाता है। इस वजह से कहीं न कहीं हम मानसिक रूप से परेशान रहने लगते हैं और ये हम धीरे धीरे कब मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैं इसका पता भी नहीं चल पाता। ऐसे में अगर आपको जब भी ऐसा लगे कि अपनी बात दूसरों के सामने रखनी चाहिए तो बात करें और आप क्या सोचते हैं, यह भी बताएं।
11.अपने आप को स्वीकार करें और विश्वास रखें
हम सब अलग हैं, और हम सब में अपनी खूबियाँ और कमजोरियाँ हैं। अपनी खूबियों की पहचान करना तथा मानना और अपनी कमजोरियों को स्वीकार करने से आप को खुद में विश्वास करने का साहस और आगे बढ़ने का बल मिलता है। हर एक में कमजोरियाँ होती हैं, और आप में भी हैं; कोई पूर्ण नहीं है। आप खुद उन कमजोरियों को बदलने के लिए चुन सकते हैं जो कि आप को पसंद नहीं है या उन कमजोरियों को स्वीकार करने के लिए चुन सकते हैं जिनके साथ आप रह सकते हैं। लेकिन यह स्वीकार करना कि आपमें कुछ कमजोरियाँ हैं जैसे हर किसी में होती हैं और यह ठीक है कि आप उत्तम से कुछ कम हैं, यह अपकी मानसिक और भावनात्मक भलाई का एक महत्वपूर्ण घटक है। यथार्थवादी लक्ष्य निर्धारित करें। अपनी क्षमताओं को जानने का प्रयास करें और तदनुसार सीमाएं बनाएं। प्राथमिकताएं और अभिभूत होने पर 'नहीं' कहना जानें। जान लें कि आप ठीक है और आप लायक हैं।
12.भरपूर नींद लें (Enough Sleep)
सोने का आपके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब हम अच्छी और पर्याप्त नींद लेते हैं तो हम तनाव पर अच्छी तरह काबू पा सकते हैं, कन्सन्ट्रेट कर पाते हैं और सकारात्मक सोच पाते हैं।
आपको कितनी नींद चाहिए यह आपके अपने शरीर पर निर्भर करता है। यदि आप दिनभर में नींद महसूस नहीं करते हैं तो समझ लीजिए कि आपने पूरी नींद ली है। यदि आपको बेहतर नींद न आती हो तो-
सोने जाने से पहले व्यायाम न करें।
भारी खाना, अल्कोहल, सिगरेट और चाय-कॉफी या कोई अन्य पेय जिसमें कैफीन हो न पीएं।
सोने से पहले कुछ अच्छा पढ़ें।
सोने के लिए नींद की गोलियां कभी न लें।
13- सकारात्मक सोचें (Think Positive)
अच्छे मानसिक स्वास्थ्य का मतलब यह नहीं है कि सिर्फ अच्छे विचार ही सोचने हैं। जीवन में उतार चढ़ाव लगे रहते हैं ऐसे में समस्या का निदान सकारात्मक रूप से करना और सोचना ही अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को दर्शाती हैं। सकारात्मक सोचने के लिए कुछ यूं करें-
अपने साथ हुए किसी बुरे हादसे या घटना को हमेशा सोचते रहने से बचें।
किसी भी कार्य को लेकर यह न सोचें कि केवल बुरा ही होगा न ही यह कि केवल अच्छा होगा। सकारात्मक सोचते हुए जो भी होगा उसे स्वीकारने की प्रवृत्ति रखें।
आप कैसे दिखते हैं, या कोई आपको पसंद करता है या नहीं, इन सब बातों की परवाह न करें। लोग सूरत से नहीं सीरत से प्रभावित होते हैं।
14- जल्दबाजी न करें (Have Patience)
किसी भी कार्य को जल्दबाजी में न करें। न ही किसी भी कार्य को बोझ समझें। ऐसा करने से आप अनावश्यक दबाव में आते हैं जिसका प्रभाव आपके मस्तिष्क पर भी पड़ता है। बेहतर होगा कार्य को करने के लिए पर्याप्त समय रखें और तनाव रहित होकर कार्य करें।