पैनिक अटैक एक ऐसी अवस्था है - जो व्यक्ति को बिना किसी सूचना के ही असहज़ बना सकती है और तो और मरीज़ को कैसे संभाला जाए यह भी समझ नहीं आता है।
यह चंद सेकेंड से लेकर एक घंटे तक मरीज़ को चपेट में ले सकती है। इसके बाद थकावट महसूस होने लगती है।
तनावग्रस्त लोग हर बात में नकारात्मक तत्वों को अधिक तवज्जो देते हैं।इससे जूझने वाले छोटी-छोटी बातों से तुरंत ही अत्यधिक चिंतित हो जाते हैं। कभी-कभी मरीजों को बात-बात में एक खतरा नज़र आता है। रोगी को ऐसा महसूस होता है कि सामनेवाले को उसकी कद्र नहीं या वो उसे धोखा दे रहा है। इससे जूझने वाले लोगों को दूसरों से घुलना-मिलना पसंद नहीं होता है। पर सोचने वाली बात यह है कि कैसे पता चले कि मरीज को जो बेचैनी या घबराहट हो रही है वह साधारण सी तनावपूर्ण स्थिति नहीं है?
इसके लक्षण कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं :
- घबराहट होती है।
- हर वक्त शंका से घिरा होना।
- हर वक्त किसी खतरे को महसूस करना ।
- बात न करना।
- बिना गर्मी के भी पसीने का आना।
- हाथ पैर का कांपना।
- डर में जीने की प्रवृत्ति।
- खुद पर से नियंत्रण छूट जाना।
-सीने में अजीब सी बेचैनी।
- अचानक वॉमिटिंग होना।
- पेट खराब हो जाना।
-गले में खिंचाव का महसूस होना।
- छाती में दर्द ।
- बेहोशी।
- हॉट फ़्लैश ( चेहरे, गर्दन इत्यादि में गर्माहट का महसूस होना) ।
इसके पीछे के कारण कुछ ऐसे हो सकते हैं:
* डिप्रेशन, जिसके कुछ कारण/प्रभाव इस प्रकार हैं:
.अक्सर कहासुनी होना
.अकेले में समय व्यतीत करना
.कम सोना
.कार्यों में अरूचि
.भावनात्मक संबंधों में ठेस लगने से दुखी होना या रहना
.भूख में कमी
.आशा खो देना
.देर रात तक नींद न आना
.बिना परिश्रम के भी थका रहना
.क्रोनिक पेन
.कोई निर्णय लेने में असमर्थता
.शिक्षा का दबाव
.रोजगार की समस्या
.अकेलापन
.रिलेशनशिप से जुड़ी समस्या
.घरवालों की उम्मीदें पूरी करने का दबाव
एक दृष्टि इस बात पर डालते हैं कि डिप्रेशन कितने तरीके का हो सकता है:
मेजर डिप्रेशन
साइकॉटिक डिप्रेशन
टिपिकल डिप्रेशन
मैनिया
डिस्थायमिया
पोस्टपार्टम
* कोई अनचाहा पुराना हादसा जो मनःस्थिति को प्रभावित करता है जैसे कि यौन शोषण,किसी प्रिय व्यक्ति को खोना,घेरलू हिंसा इत्यादि।
* जीवन में आया कोई बड़ा बदलाव भी पैनिक डिसऑर्डर का एक कारक बन सकता है।
* बुरी यादें या कोई अनचाहा किस्सा जिसमें शर्मिंदगी उठानी पड़ी हो।
* इसका अनुवांशिक कारण भी हो सकता है
पैनिक अटैक के कितने प्रकार हो सकते हैं :
- अप्रत्याशित पैनिक अटैक :
यह एक ऐसी स्थिति है जो बिना किसी पूर्व चेतावनी या संकेत के उत्पन्न हो जाती है। कोई विशेष परिस्थिति इस प्रकार के अटैक के लिए उत्तरदायी नहीं होती है।
- स्थिति से जुड़ा पैनिक अटैक:
स्थितिगत पैनिक अटैक किसी विशेष स्थिति या व्यक्ति की वजह से उत्पन्न होता है। उदाहरणस्वरूप अगर किसी को सार्वजनिक तौर पर संबोधन के लिए कहा जाए तो वो इंसान इतना घबरा जाए, उसका कंट्रोल बिगड़ने लगे।
- स्थितिगत संवेदनशील पैनिक अटैक:
जब परिस्थिति के तुरंत बाद पैनिक अटैक शुरू न हो कर कुछ वक्त ले कर असर दिखाता है तो उस स्थिति को 'स्थितिगत संवेदनशील पैनिक अटैक ' की श्रेणी में रखते हैं।
उपाए ( मानसिक स्वास्थ्य के इलाज़) :
एंग्जाइटी/तनाव/पैनिक अटैक्स से बचने के लिए साइकोथेरेपी कारगर हो सकती है पर लोग इससे कतराते हैं। हम अक्सर साइकोथेरेपी को केवल 'पागलपन' से जोड़ देते हैं। करीब 90% रोगी उपचार के लिए कभी पहल नहीं करते, यह हमारी इस समस्या को लेकर अनभिज्ञता को दर्शाता है।
मानसिक स्वास्थ्य अपने अंदर 'इमोशनल'( भावनात्मक), 'साइक्लोजिकल'(मनोवैज्ञानिक) ,'सोशलवेल बीइंग'(सामाजिक खुशहाली) जैसे बिंदुओं का समावेश रखता है। हमारा महसूस करना या हमारी यादाश्त इससे प्रभावित होती है। मानसिक स्वास्थ्य जीवन के हर पड़ाव पर अपनी महत्ता दर्ज़ करवाता है। मन स्वस्थ न हो तो स्ट्रोक, टाइप टू डायबटीज, ह्दय रोग आदि का खतरा बढ़ सकता है। चाइल्ड अब्यूज, ट्रॉमा,सेक्सुअल असॉल्ट इत्यादि मनोस्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
इस थेरेपी में मनोचिकित्सक एवं 'क्लाइंट' की भूमिका होती है। क्लाइंट वो होता है जो मनोचिकित्सा लेता है। इसे साधारण भाषा में काउंसिलिंग कहा जा सकता है। यह एक बातचीत के समान होता है जहाँ क्लाइंट की बुनियादी समस्याओं का जिक्र होता है। उसके विचारों को समझा जाता है। उसकी सोच को परखा जाता है। इस वार्तालाप को गोपनीय रखा जाता है ताकि उसकी भावनाओं एवं विश्वास को ठेस न पहुंचे। यह कभी किसी तीसरे को बताया नहीं जाता। एंग्जाइटी से बचाव के लिए साइकोथेरेपी के अंतर्गत कॉगनेटीव बिहेवोरियल थेरेपी की प्रक्रिया को प्रयोग में लाया जाता है जिसमें नकारात्मक विचारों को काबू में लाने की पहल की जाती है। क्लाइंट को बताया जाता है कैसे अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रस्फ़ुटित की जाए। यहाँ डिप्रेशन,तनाव,डिसऑर्डर आदि को ठीक करने की कोशिश की जा सकती है। एंग्जाइटी की वजह का गहनता से अवलोकन किया जाता है। यहाँ यह भी बताया जाता है कि किस प्रकार तनाव को दूर रखना चाहिए। यह थेरेपी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के आधार पर की जाती है।
एंग्जाइटी की समस्या इस भागदौड़ भरी में होना एक आम बात है। पर मनोचिकित्सा या परामर्श लेना कभी भी संकोच का विषय नहीं होना चाहिए। कई बार अपने आसपास इस परेशानी से जुझते लोगों की तकलीफ समझ नहीं पाते। ऐसे लोग कट कर जीने लगते हैं।अतः यह आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य को एक गंभीर विषय के रूप में लिया जाए। यह सामाजिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है। जागरूकता ,जीवनशैली में छोटे-बड़े बदलाव व उचित चिकित्सा एंग्जाइटी से जुड़े दुष्प्रभाव को काफ़ी हद तक दूर रख सकते हैं। रोगी के साथ-साथ उससे जुड़े लोगों को भी इन बातों का ख्याल करना चाहिए।
दवाएं जो आमतौर पर प्रयोग में आती हैं( चिकित्सक से परामर्श के बाद ही लेनी चाहिए):
- फ्ल्युकसेटाइन
- सेरट्रलाइन
- पैरोक्सेटाइन
घरेलू उपचार:
- कैफीन जैसे पदार्थों का प्रयोग न करना।
- नींद को पर्याप्त मात्रा में लेना।
- अनियमित जीवनशैली में बदलाव लाना।
- व्यायाम के लिए वक्त निकालना।
- तनावपूर्ण माहौल से दूर रहना।
- ग्रीन टी का प्रयोग।
- बादाम का प्रयोग।
एंग्जाइटी, अत्यधिक तनाव, चिंता नकारात्मक व अनावश्यक विचारों के मन पर हावी होने से उत्पन्न होती है जो किसी की मानसिक शांति को प्रभावित करती है। इस पर ध्यान न दिए जाने पर खतरा बढ़ सकता है।इस समस्या से जूझने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। उदाहरणस्वरूप एक सर्वे के अनुसार अमेरिका के करीब 40 मिलियन लोग एंग्जाइटी या तनाव की समस्या से पीड़ित हैं। भारत में बात करें तो महानगरों में 15.20% लोग एंग्जाइटी के शिकार हैं ।जाहिर है कि ऐसे अटैक आम चिंता या भय से बड़ी समस्या है तभी निम्नलिखित बिंदुओं को इस समस्या का मुख्य आधार माना गया है:
* चिंता सभी को होती है पर असामान्य तरीके से किसी बात पर चिंतित रहना भय को उत्पन्न करता है।
* स्टडी के अनुसार अपर्याप्त नींद भी एंग्जाइटी/तनाव पैदा करती है। नींद का पूरा न होना 86% रोग को निमंत्रण देता है।
* किसी प्रियजन को खो देने से भी मानसिक स्थिति पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
* किसी प्रकार का फोबिया भी इस परेशानी को जन्म दे सकता है।
* विद्यार्थियों में परीक्षा परिणाम को लेकर भय को जन्म दे सकता है।
* भीड़ या काम के दवाब से होने वाली घबराहट भी पैनिक अटैक उत्पन्न कर सकती है।
* कहा जाता है पुरूष के मुक़ाबले महिलाओं पर इसका ज्यादा असर होता है क्योंकि घेरलू हिंसा या यौन हिंसा का शिकार उन्हें होना पड़ता है।
पैनिक अटैक जैसी समस्या से कुशलता से तभी निपटा जा सकता है जब मरीछ इलाज को बीच में न छोड़े, घरवालों की मदद मिले तथा दवाओं का डॉक्टरी परामर्श से, नियमित सेवन किया जाए। जागरूकता और सजगता अत्यंत ज़रूरी है।