Anxiety attack ke kya lakshan hai? - एंग्जाइटी अटैक के लक्षण व इलाज़ ?

राधिका की शादी एक बड़े संयुक्त परिवार में हुई। छोटी बहु होने के नाते उसे सबकी सुननी पड़ती थी। हर बात में उसे 'जज' किया जाने लगा। एक दिन घर के किसी फन्शन की जिम्मेदारी उसे मिली और साथ में कई नसीहतें भी। उसे पता था लोगों की उम्मीदें जितनी बड़ी है उनका सहयोग उतना ही कम। राधिका इस 'प्रेशर' में आ गई की वो जिम्मेदारियों को निभा पाएगी या नहीं और एक दिन वो अचानक बेहोश हो कर गिर पड़ी। अस्पताल में बताया गया कि मानसिक परेशानी के कारण राधिका की ये हालत हुई। राधिका की तरह हम भी अक्सर सहजता से काम करने के बजाए दबाव में आकर काम करते हैं, जिसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर होता है। लक्षण गंभीर हो तो फिर 'एंग्जाइटी अटैक' जैसी परेशानी हो सकती है।




'एंग्जाइटी' नकारात्मक व अनावश्यक विचारों के मन पर हावी होने से उत्पन्न होती है जो किसी की मानसिक शांति को प्रभावित करती है। इस पर ध्यान न दिए जाने पर खतरा बढ़ सकता है।इस समस्या से जूझने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। उदाहरणस्वरूप एक सर्वे के अनुसार अमेरिका के करीब 40 मिलियन लोग एंग्जाइटी की समस्या से पीड़ित हैं। भारत में बात करें तो महानगरों में 15.20% लोग एंग्जाइटी के शिकार हैं ।जाहिर है कि एंग्जाइटी अटैक आम चिंता या भय से बड़ी समस्या है।


आइए 'एंग्जाइटी अटैक' से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में जानें:


* चिंता सभी को होती है पर असामान्य तरीके से किसी बात पर चिंतित रहना भय को उत्पन्न करता है। 


* स्टडी के अनुसार अपर्याप्त नींद भी एंग्जाइटी पैदा करती है। नींद का पूरा न होना 86% रोग को निमंत्रण देता है। 


* किसी प्रियजन को खो देने से भी मानसिक स्थिति पर दुष्प्रभाव पड़ता है। एंग्जाइटी इस कारण से भी हो सकता है


* किसी प्रकार का फोबिया भी इस परेशानी को जन्म दे सकता है।


* विद्यार्थियों में परीक्षा परिणाम को लेकर भय को जन्म दे सकता है।


* भीड़ से होने वाली घबराहट भी एंग्जाइटी उत्पन्न करती है।


* कहा जाता है पुरूष के मुक़ाबले महिलाओं पर इसका ज्यादा असर होता है।


अब एक नज़र एंग्जाइटी के सामान्य लक्षणों पर जिनको आम ज़िंदगी में नजरअंदाज किया जाता है।


*सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम किसी के परेशान होने पर बहुत तेज़ी से काम करने लगता है। इसके कारण मुंह सूखना, पसीना आना, ह्रदय गति का तीव्र होना,कांपने जैसी समस्या होने लगती है। 


* अत्यधिक चिंतित रहना एंग्जाइटी अटैक की ओर इशारा है। हर छोटी बात अगर आपको परेशान कर रही तो यह एक समस्या को जन्म दे सकता है।


* किसी बात पर बेचैनी का होना। असहजता का महसूस होना एंग्जाइटी की निशानी है।


* सोने में समस्या का होना या नींद की कमी भी इस परिस्थिति को बढ़ावा दे सकती है।


* एकाग्रता में कमी का होना भी एंग्जाइटी की ओर इंगित करता है।


* अकेले में समय व्यतीत करने की इच्छा का होना। मानसिक परेशानी से जूझने वाले लोगों से दूरी बनाते हैं उन्हें ऐसा लगता है जैसे कोई उन्हें समझता नहीं। वह सोशलाईज़ नहीं होना चाहते।


* मांस पेशियों में तनाव का होना भी एंग्जाइटी की ओर इशारा कर सकता है। 


* हाथ पैर का ठंडा पड़ना।


* शारीरिक कमजोरी ।


* पेट में हलचल का होना।


* यादाश्त कमज़ोर होना ।


*छाती में खिंचाव लगना है।


*अनावश्यक आग्रह करने की आदत।


* किसी व्यक्ति या चीज़ से अत्यधिक लगाव।


एंग्जाइटी एक लाइलाज मर्ज़ कतई नहीं है। इसका घरेलू व चिकित्सा के द्वारा इलाज़ ( दवा, साइकोथेरेपी इत्यादि) किया जा सकता है। 

घरेलू उपाय:


* आप ग्रीन टी का सेवन कर सकते हैं। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट व पॉलीफिनॉल मानसिक तनाव को कम करने में कारगर है। ग्रीन टी में मोनोमाइन है जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को दुरुस्त करता है।


* बादाम खाना भी लाभकारी है। बादाम में पोटेशियम,कैल्शियम,मैग्नीशियम जैसे गुणकारी तत्वों का समावेश होता है। इसमें मिनरल भी बड़ी मात्रा में है।यह हमें मानसिक स्वास्थ्य देता है।


* संतरे का प्रयोग करना हितकारी है। यह रक्तचाप को संतुलित बनाता है और एंग्जाइटी को कम करने में मदद करता है। न्यूरॉन्स को एंग्जाइटी अटैक में शांत करता है।


* संगीत सुनना भी मदद करता है। यह तनाव को घटाने में मदद करता है। ऐसी सलाह दी जाती है कि एंग्जाइटी या डिप्रेशन में संगीत सुनना चाहिए उससे सुकून मिलता है।


* अपनी दिनचर्या में व्यायाम आधे घंटे भी शामिल ज़रूर करना चाहिए। कम से कम सैर पर जाना चाहिए। 


* इस भागदौड़ भरे जीवन में एकाग्रता की कमी होना आम बात है। इसलिए हम योग का सहारा ले सकते हैं। कुछ योगाभ्यास जो मन को तंदरुस्ती देते हैं:


- कैमल पोज, ऊंट जैसी मुद्रा। 

-बद्ध कोणासन करना भी मदद करता है।

- पश्चिमोत्तानासन।

-दंडासन

( आसनों की शुरुआत किसी एक्सपर्ट की देखरेख में करें ।)

* अल्कोहोल का सेवन न करें ।

* कैफीन से दूर रहें।

* हल्दी का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

* केले का सेवन एंग्जाइटी को दूर करता है।


बात करें मानसिक स्वास्थ्य की तो हम इसे नजरअंदाज कर देते हैं पर यह हमारे व्यक्तित्व को गढ़ने में मदद करता है। एंग्जाइटी से बचने के लिए साइकोथेरेपी कारगर हो सकती है पर लोग इससे कतराते हैं। हम अक्सर साइकोथेरेपी को केवल 'पागलपन' से जोड़ देते हैं। करीब 90% रोगी उपचार के लिए कभी पहल नहीं करते, यह हमारी इस समस्या को लेकर अनभिज्ञता को दर्शाता है।


मानसिक स्वास्थ्य अपने अंदर 'इमोशनल'( भावनात्मक), 'साइक्लोजिकल'(मनोवैज्ञानिक) ,'सोशलवेल बीइंग'(सामाजिक खुशहाली) जैसे बिंदुओं का समावेश रखता है। हमारा महसूस करना या हमारी यादाश्त इससे प्रभावित होती है। मानसिक स्वास्थ्य जीवन के हर पड़ाव पर अपनी महत्ता दर्ज़ करवाता है। मन स्वस्थ न हो तो स्ट्रोक, टाइप टू डायबटीज, ह्दय रोग आदि का खतरा बढ़ सकता है। चाइल्ड अब्यूज, ट्रॉमा,सेक्सुअल असॉल्ट इत्यादि मनोस्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।


इस थेरेपी में मनोचिकित्सक एवं 'क्लाइंट' की भूमिका होती है। क्लाइंट वो होता है जो मनोचिकित्सा लेता है। इसे साधारण भाषा में काउंसिलिंग कहा जा सकता है। यह एक बातचीत के समान होता है जहाँ क्लाइंट की बुनियादी समस्याओं का जिक्र होता है। उसके विचारों को समझा जाता है। उसकी सोच को परखा जाता है। इस वार्तालाप को गोपनीय रखा जाता है ताकि उसकी भावनाओं एवं विश्वास को ठेस न पहुंचे। यह कभी किसी तीसरे को बताया नहीं जाता। एंग्जाइटी से बचाव के लिए साइकोथेरेपी के अंतर्गत कॉगनेटीव बिहेवोरियल थेरेपी की प्रक्रिया को प्रयोग में लाया जाता है जिसमें नकारात्मक विचारों को काबू में लाने की पहल की जाती है। क्लाइंट को बताया जाता है कैसे अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रस्फ़ुटित की जाए। यहाँ डिप्रेशन,तनाव,डिसऑर्डर आदि को ठीक करने की कोशिश की जा सकती है। एंग्जाइटी की वजह का गहनता से अवलोकन किया जाता है। यहाँ यह भी बताया जाता है कि किस प्रकार तनाव को दूर रखना चाहिए। यह थेरेपी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के आधार पर की जाती है।


एंग्जाइटी की समस्या इस भागदौड़ भरी में होना एक आम बात है। पर मनोचिकित्सा या परामर्श लेना कभी भी संकोच का विषय नहीं होना चाहिए। कई बार अपने आसपास इस परेशानी से जुझते लोगों की तकलीफ समझ नहीं पाते। ऐसे लोग कट कर जीने लगते हैं।अतः यह आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य को एक गंभीर  विषय के रूप में लिया जाए। यह सामाजिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है। जागरूकता ,जीवनशैली में छोटे-बड़े बदलाव व उचित चिकित्सा एंग्जाइटी से जुड़े दुष्प्रभाव को काफ़ी हद तक दूर रख सकते हैं। रोगी के साथ-साथ उससे जुड़े लोगों को भी इन बातों का ख्याल करना चाहिए।

“NO STRESS LEADS TO NO ANXIETY”

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