एंग्जाइटी अटैक के कितने प्रकार :
एंग्जाइटी के कई प्रकार हो सकते हैं। पर इनमें से प्रमुख प्रकार ये हैं:
1)फोबिया यानि दुर्भीति
फोबिया मूलतः किसी चीज़ या व्यक्ति के प्रति मन में उत्पन्न अनावश्यक व अतार्किक भय होता है। उदाहरण के तौर पर देखें तो कुछ लोगों को पानी से भय होता है तो वह हाइड्रोफोबिक कहलाता है, जिसे भीड़ का भय होता है उसे एगोराफोबिक कहा जाता है।
फोबिया से ग्रसित लोगों को चक्कर आदि आने लगते हैं। इनमें नर्वस होने की भी आदत होती है। इसके पीछे के कारणों कोई ट्रॉमा और हेरिडिटरी (अनुवांशिक) कारण भी हो सकता है। कुछ मेडिकल परेशानियों का इलाज़ करवा रहे लोग भी फोबिया से ग्रसित हो सकते हैं। डिप्रेशन भी फोबिया का एक कारक हो सकता है।
फोबिया का असर काफी तकलीफदेह भी हो सकता है। रोगी कभी-कभी उचित प्रतिक्रिया भी नहीं दे सकता है।
दुर्भीति में जिन चीज़ों या व्यक्ति से भय लगता है वह वास्तविकता में भयानक नहीं होते हैं। मेडिकल साइंस की तरक्की से फोबिया का इलाज़ दवाओं के माध्यम से संभव है।
कुछ मूल लक्षण फोबिया के:
- मुँह सूखना।
- सांस की समस्या का होना ।
- पेट में मरोड़ का होना।
- दिल की धड़कन का बढ़ना।
- पसीने का ज्यादा आना।
- चक्कर का महसूस होना।
-हाथ पैर में कंपन।
- सीने में दर्द।
फोबिया के कुछ प्रकार:
ग्लोसोफोबिया ( परफॉर्मेंस एंग्जाइटी)
एगोरोफोबिया( भीड़ से परेशानी)
सोशल फोबिया (लोगों से भय, समूह से भय)
एक्रोफोबिया( ऊंचाई का भय)
क्लाउस्ट्रोफोबिया( संकरी जगहों से भय)
एवियोफोबिया( हवाई जहाज़ में उड़ने से भय)
डेंटोफोबिया( दांत के इलाज़ की प्रक्रिया से डर)
निक्टोफोबिया( रात/अंधेरे से डर)
2)सोशल एंग्जाइटी
इस प्रकार की एंग्जाइटी सोशल या सामाजिक भय के रूप में जानी जाती है। इस तरह की समस्या से जूझने वाले व्यक्ति को अपमान का भय सताता है। लोग आलोचना के डर में रहते हैं। उनमें आत्मसम्मान की कमी होती है। दिमाग में हमेशा यही चलता है कि अजनबी या हमारे संबंधी क्या सोचेंगे! इससे जूझने वालों को कोई प्रस्तुति देने में भय लगता है। अक्सर ध्यान का केन्द्र बनने पर उन्हें परेशानी महसूस होती है, इससे उनमें व्याग्रता तीव्र हो जाती है।
इसके कुछ मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
पसीना आना ।
हकलाना।
कंपकपी ।
अति आत्मसजगता।
आँखें मिला कर बात करने में समस्या ।
बात-बात पर शर्मिंदगी का महसूस होना।
इसके पीछे के कारण क्या हैं :
- अतीत के अनुभव
- पारिवारिक इतिहास
- व्यक्ति का स्वयं का शर्मीलापन।
कैसे करें इस समस्या के बीच देखभाल:
- रोगी को किसी पेशेवर विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
-परिवार में अगर कोई व्यक्ति इस समस्या से जूझ रहा हो तो उन्हें अकेला न छोड़ें। उनका मनोबल बढ़ाने की कोशिश करें।
3) पैनिक डिसऑर्डर
कुछ लोग हर बात में नकारात्मक तत्वों को अधिक तवज्जो देते हैं। छोटी-छोटी बातों से तुरंत ही तनावग्रस्त हो जाते हैं। उन्हें हर बात में एक खतरा नज़र आता है। रोगी को ऐसा महसूस होता है कि सामनेवाले को उसकी कद्र नहीं या वो उसे धोखा दे रहा है। इससे जूझने वाले लोगों को दूसरों से घुलना-मिलना पसंद नहीं होता है।
इसके लक्षण कुछ इस प्रकार हैं:
- घबराहट होती है।
- हर वक्त शंका से घिरा होना।
- हर वक्त किसी खतरे को महसूस करना ।
- बात न करना।
- बिना गर्मी के भी पसीने का आना।
- हाथ पैर का कांपना।
- डर में जीने की प्रवृत्ति।
इसके पीछे के कारण :
* डिप्रेशन, जिसके कुछ कारण/प्रभाव इस प्रकार हैं:
.अक्सर कहासुनी होना
.अकेले में समय व्यतीत करना
.कम सोना
.कार्यों में अरूचि
.भावनात्मक संबंधों में ठेस लगने से दुखी होना या रहना
.भूख में कमी
.आशा खो देना
.देर रात तक नींद न आना
.बिना परिश्रम के भी थका रहना
.क्रोनिक पेन
.कोई निर्णय लेने में असमर्थता
.शिक्षा का दबाव
.रोजगार की समस्या
.अकेलापन
.रिलेशनशिप से जुड़ी समस्या
.घरवालों की उम्मीदें पूरी करने का दबाव
एक दृष्टि इस बात पर डालते हैं कि डिप्रेशन कितने तरीके का हो सकता है:
मेजर डिप्रेशन
साइकॉटिक डिप्रेशन
टिपिकल डिप्रेशन
मैनिया
डिस्थायमिया
पोस्टपार्टम
* कोई अनचाहा पुराना हादसा जो मनःस्थिति को प्रभावित करता है। जैसे कि यौन शोषण,किसी प्रिय व्यक्ति को खोना,घेरलू हिंसा इत्यादि।
* जीवन में आया कोई बड़ा बदलाव भी पैनिक डिसऑर्डर का एक कारक बन सकता है।
4) सामान्यीकृत चिंता विकार
यह एक विकार है जहाँ तनाव या चिंता बेकाबू या तर्क हीन होती है।जब तनाव, उदासी व नकारात्मता मन पर हावी हो जाती है और सोचने-समझने की क्षमता क्षीण हो जाती है तो इस मानसिक रोग का आगमन होता है। जब यह स्थिति लंबे समय तक बनी
रहती है तो स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालती है। जब यह स्थिति चरमसीमा पर पहुँचती है तो इससे जूझने वाला व्यक्ति आत्महत्या संबंधी विचार भी मन में लाने लगता है। हर साल आत्महत्या की वजह से 80 हज़ार लोग जान गंवा देते हैं। यह जानकारी दुख देने वाली है कि आत्महत्या 15 से 29 वर्षीय किशोरों की मौत का दूसरा मुख्य कारण है।
हाल के एक रिसर्च की माने ती डिप्रेशन में शरीर में दर्द भी बहुत रहता है।
इसका आम असर कुछ प्रकार है-
बेचैनी
एकाग्रता में परेशानी
नींद में कठिनाई
मांसपेशियों में तनाव
घबराहट
संकट का अनुभव
सोने में परेशानी
सुन्नपन या झुनझुनी महसूस होना।
सिरदर्द का होना।
भारत में हर साल एक बड़ी संख्या ( 10 मिलियन) में इसके मामले सामने आते हैं।
कुछ सामान्य उपाय:
-कॉगनेटीव बिहेवोरियल थेरेपी
साइकोथेरेपी की इस प्रकिया के अंतर्गत नकारात्मक विचारों को काबू में लाने की पहल की जाती है। क्लाइंट को बताया जाता है कैसे अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रस्फ़ुटित की जाए। यहाँ डिप्रेशन,तनाव,डिसऑर्डर आदि को ठीक करने की कोशिश की जा सकती है। रोगी में नकारात्मक परिस्थिति से निपटने की क्षमता इससे विकसित की जाती है।
-योगा व व्यायामों को आदत में शामिल करना।
- संगीत सुनना।
- ब्रेनबूस्टर वस्तुओं को भोजन में शामिल करना।
- मन की बातें बांटना।
- रूचि को बढ़ावा देना।
- अकेलेपन से दूर रहना।
- तनावपूर्ण स्थिति होने पर दोस्तों या भरोसेमंद से सलाह लेना।
- व्यवहार या हाव भाव में एक हफ्ते से अधिक उतार-चढ़ाव होने पर चिकित्सक से परामर्श लेने की कोशिश।
- दिनचर्या में बदलाव।
- समय पर सोना।
अवसाद, एंग्जाइटी इत्यादि से ग्रसित होने की कोई उम्र नहीं होती है। हाँ हम में अनभिज्ञता अवश्य है इससे जुड़े लक्षणों व कारणों के बारे में ।आजकल ऐसे शब्द सर्वव्यापी हो चले हैंऔर इससे जूझने वालों की तादाद भी बढ़ती जा रही है।
एंग्जाइटी एक ऐसी अवस्था है जहाँ हम तनाव या निराशा से घिरे रहते हैं। इसके अलावा हम अक्सर तनाव, डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर आदि शब्दों से हम रूबरू होते हैं। यह देखने में काफी आम लगते हैं। पर इनके नकारात्मक प्रभाव पर गौर फरमाने की तकलीफ कम ही उठाई जाती है। इनसे लंबे समय तक जूझनेवाला इंसान अपनी सोच,भावनाओं, व्यवहार आदि में बदलाव या उतार-चढ़ाव महसूस कर सकता है। उचित सलाह व इलाज़ के अभाव में रोगी को कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।
मनोचिकित्सा को लेकर भी बहुत सारे भ्रम जुड़े होते हैं। लोग मनोचिकित्सा से मदद लेने में कतराते हैं। मानसिक स्वास्थ्य परामर्श' यानि मेंटल हेल्थ कॉउंसीलिंग के महत्व के बारे में हममें से कई लोग अनभिज्ञ हैं। हम साइकेट्रिस्ट या साइकोलोजिस्ट को अपनी संकुचित ज्ञान के कारण बस 'पागलों के डॉक्टर' के रूप में जानते हैं । हम मेंटल हेल्थ पर खुल कर बात करने से कतराते हैं तो जाहिर है इसके समाधान पर हमारा ध्यान नहीं जाता है। कहा जाता है 90% प्रतिशत रोगी शायद इसीलिए कभी सही इलाज़ तक पहुँच नहीं पाते हैं।
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