Ovarian Cyst kitne prakar ke hote hai?- ओवेरिअन सिस्ट के प्रकार

 


ओवेरिअन सिस्ट के प्रकार

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ओओवेरियन सिस्ट अंडाशय के ऊपर तरल पदार्थ से भरी थैली होती है |आमतौर पर सिस्ट छोटे या कम आकर के अक्सर  कम नुकसानदायक ओर दर्दनाक नहीं होते हैं| मेंस्ट्रूअल साइकिल के दौरान इनका निर्माण होता है और जैसे ही पीरियड खत्म होते हैं तब या अगले पीरियड के पहले यह स्वता ही खत्म हो जाती है| लेकिन जब यह समय के साथ बड़े होने लगते हैं या स्थाई हो जाते हैं तो यह ओवरी के अल्सर का रूप ले सकते हैं| जिससे कि पेट में दर्द ओर सूजन के साथ-साथ पीठ के निचले हिस्से में दर्द का अनुभव होता है| कई बार इन गाठो  के कारण ऑपरेशन तक की नौबत आ जाती है |यदि आप ओवरी में या पेल्विक एरिया में दर्द ,सूजन ,भारीपन इनमें से किसी भी लक्षण का अनुभव करते हैं, तो आपको चिकित्सकिय सलाह लेना आवश्यक होता है, क्योंकि यदि शुरुआत में ध्यान नहीं दिया गया तो यह ओवरी अल्सर समय के साथ पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम में बदल जाता है |

डॉक्टर के अनुसार इन सिस्ट के होने का सबसे महत्वपूर्ण कारण हार्मोनल इंबैलेंस होता है| हार्मोनल इंबैलेंस को कम करने के लिए डॉक्टर के द्वारा सुझाए गए अनुसार अपने आहार में आवश्यक बदलाव करें| अपने ओवेरियन सिस्ट के लक्षणों को कम करने के लिए अपने आहार में हाई फाइबर लेना चाहिए| जिससे कि फाइबर आपके हार्मोन को संतुलन करने में मदद करता है और इसकी समस्या को काफी हद तक कम करता है| क्योंकि फाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे की नाशपाती ,संतरे ,दाल और मटर आदि  जिसमे की फाइटोकेमिकल्स होते हैं ,जो शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन के अवशोषण को रोकते हैं| अपने आहार को बदलने के साथ-साथ फिजिकल एक्टिविटी पर ध्यान देने और नियमित रूप से व्यायाम करने की आवश्यकता होती है | डॉक्टर नियमित रूप से भरपूर पानी पीने की सलाह भी देते हैं |

जिन महिलाओं को सिस्ट की समस्या है ,उन्हें अपने शरीर का वजन कम रखना जरूरी होता है| इसलिए सिस्ट  के उपचार के लिए लीन प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाना चाहिए |इस प्रकार के खाद्य पदार्थों में मछली और चिकन आदि का सेवन किया जा सकता है| इन खाद्य पदार्थों से प्राप्त होने वाला लीन प्रोटीन बहुत ही पोस्टीक  होता है और हार्मोन के बैलेंस को बनाए रखता है| हार्मोनल बैलेंस ठीक रहने से प्रभावित क्षेत्र की सूजन कम हो जाती है|

क्या ओवेरियन सिस्ट के दौरान गर्भावस्था संभव है-

ओवेरियन सिस्ट होने के बाद भी महिला गर्भवती हो सकती है| लेकिन सिस्ट के साथ प्रेगनेंसी कंटिन्यू करना यह सिस्ट के आकार पर निर्भर करता है |सिस्ट का आकार छोटा होने पर प्रेगनेंसी हो सकती है |लेकिन कई बार प्रेगनेंसी के दौरान सिस्ट का आकार बढ़ने लगता है, इसलिए डॉक्टर यदि प्रेगनेंसी के दौरान सिस्ट डिडक्ट करते हैं तो डिलीवरी के समय आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए डॉक्टर सर्जरी कर कर सिस्ट को आसानी से निकाल देते हैं|

ओवेरियन सिस्ट के प्रकार-

1- फंक्शनल सिस्ट- यह एक सामान्य स्थिति है जिसमें अंडाशय में जिस प्रणाली से अंडा बनता उसी के दौरान पानी की रसौली बन जाती है |एक या 2 महीने बाद अपने आप ठीक हो जाती है| कभी-कभी हारमोनल इनबैलेंस के कारण यदि यह नष्ट नहीं होती है या ज्यादा बड़ी है, जो ज्यादा समय के लिए रहती है इसका इलाज दवाओं  के द्वारा संभव है|

2- फॉलिकल्स सिस्ट- पीरियड्स के दौरान महिलाओं की  फॉलिकल नामक थेली में 1 एग बढ़ता है |यह थेली अंडाशय के अंदर स्थित होती है| ज्यादातर मामलों में पीरियड्स के बाद फॉलिकल खुल जाता है और एग रिलीज करता है ,लेकिन यदि किसी कारणवश फॉलिकल नहीं टूटता है तो फॉलिकल के अंदर का द्रव सिस्ट का निर्माण करता है|

3- कार्पस लुटियम सिस्ट- फॉलिकल थेलिया आमतौर पर अंडे छोड़ने के बाद खत्म हो जाती है| लेकिन यदि यह थेलिया खत्म नहीं होती है ओर एग रिलीज करने के बाद इनका मुंह बंद हो जाता है तो इनके अंदर मौजूद तरल पदार्थ से कार्पस लुटियम सिस्ट बन जाता है|

4- सिस्टाडेनोमास सिस्ट- यह ओवरि की बाहरी सतह पर विकसित होता है |यह पानी या फिर म्यूकस मैटेरियल से भरा हो सकता है|

5- एंडोमेट्रियमोमास सिस्ट- जब कोई सिस्ट गर्भाशय के अंदर बनने के साथ-साथ गर्भाशय के बाहर भी विकसित होने लगता है और अंडाशय से जुड़ जाता है तो उसे एंडोमेट्रियमोमास सिस्ट कहते हैं| 

6- पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम- जब हार्मोनल इनबैलेंस के कारण ओवरी के अंदर छोटी-छोटी सिस्ट डिवेलप होने लगे, तो उस स्थिति को पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम कहते हैं|

7- डरमोइड सिस्ट- डरमोइड सिस्ट वो सिस्ट है जिनका विकास बहुत ही असामान्य तरीके से होता है| इन सिस्ट में थेली के भीतर बाल, चमड़ी ,वसा और दांत जैसे टिशू होते हैं |यह बहुत ही खतरनाक समस्या होती है |यदि इसका सही समय पर इलाज नहीं किया जाए तो बांझपन का कारण भी बन सकती है|

8- सिम्पटोमेटिक सिस्ट- कई बार अंडाशय में सिस्ट होने के कोई भी लक्षण नजर नहीं आते हैं |मगर पेट के निचले हिस्से में दबाव के कारण पेशाब की बार-बार आवृत्ति बढ़ जाती है |भारीपन और योनि क्षेत्र में दर्द का अनुभव होता है| साथ ही हार्मोनल इंबैलेंस के  कारण पीरियड्स के टाइमिंग में भी अंतर आ जाता है|

9- रैप्चर सिस्ट- कई बार बहुत ज्यादा सिस्ट होने पर या सिस्ट का आकार बड़े होने पर दबाव के कारण वह फट जाता है |ऐसी स्थिति में उसमें मौजूद द्रव पेल्विक एरिया में फैल जाता है ऐसी स्थिति मैं महिला की हालत गंभीर हो जाती है और सर्जरी की जरूरत महसूस होती है|

10- कॉन्प्लेक्स सिस्ट- कॉन्प्लेक्स सिस्ट सामान्य नहीं होते हैं और इनका मेंस्ट्रूअल साइकिल से कोई संबंध नहीं होता है |मगर इनकी मौजूदगी महिला के लिए परेशानी का सबब बन जाती है|

11- चॉकलेट सिस्ट- चॉकलेट सिस्ट द्रव के कारण नहीं बल्कि ब्लड के कारण बनता है| एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित महिलाओं को मासिक चक्र के दौरान ओवरी में कुछ खून जमा होने लगता है जो आगे चलकर चॉकलेट सिस्ट कारण बनता है |चॉकलेट सिस्ट से पीड़ित महिलाओं को पीरियड के दौरान काफी दर्द का सामना करना पड़ता है और गर्भधारण करने में भी समस्या होती है| इस सिस्ट का एकमात्र इलाज लेप्रोस्कोपिक सर्जरी है|

ओवेरियन सिस्ट का इलाज

सिस्ट  महिलाओं के शरीर में बनने वाली एक आम गाठ है वैसे तो कई बार ओवेरियन सिस्ट स्वयं बनकर कुछ समय के बाद स्वतः ही खत्म हो जाते हैं और ओवरी पूरी तरह सामान्य हो जाती है | इसलिए सिस्ट डिडक्ट होने पर यदि सिस्ट का आकार छोटा रहता है तो डॉक्टर पेल्विक अल्ट्रासाउंड की सलाह देकर कुछ महीने इंतजार कर सकते हैं |पेल्विक अल्ट्रासाउंड कराने से सिस्ट के आकार में होने वाले परिवर्तन का आसानी से पता चल जाता है यदि जांच में ये आकार मैं बड़े होते हैं तो डॉक्टर दो तरह से इसका इलाज कर सकते हैं|

1- हार्मोनल पिल्स- यदि सिस्ट का आकार छोटा हो और संख्या में कम हो ,तो डॉक्टर हार्मोनल पिल्स लेने की सलाह देते हैं |यह दवाइयां सिस्ट के आकार को कम तो नहीं करती है वरन इनके सेवन से हार्मोन बैलेंस होने लगते हैं जिसके कारण यह दवाई नये सिस्ट का निर्माण रोकती है| ओर इसके नियमित सेवन से हार्मोन इन बैलेंस के कारण होने वाली दूसरी बीमारियां भी नहीं होती है|

2- सर्जरी -यदि सिस्ट का आकार बड़ा होता है और सर्जरी के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं होता है तो डॉक्टर दो तरह से सर्जरी कर सकते हैं|

• लेप्रोस्कोपिक सर्जरी

• लेप्रोटोमी सर्जरी या ओपन सर्जरी


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