What are the symptoms and treatments of Depression ?-डिप्रेशन के लक्षण और उपचार क्या हैं?
नेहा को पता चला कि उसकी बेस्ट फ्रेंड शिखा 'डिप्रेशन' से जूझ रही है। उसकी शादी शुदा जिंदगी में काफी उथल-पुथल चलने के कारण उसकी स्थिति तनावग्रस्त हो गई है। नेहा ने समझदारी का परिचय देते हुए चिकित्सक से परामर्श लेने की सलाह शिखा को दी। जी हाँ, बेशक डिप्रेशन आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है पर इसके शुरुआती लक्षणों को हम अनभिज्ञता के कारण पकड़ नहीं पाते। कभी-कभी उदासी को भी हम 'डिप्रेशन' का नाम दे देते हैं। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है डिप्रेशन से जुड़े तथ्यों को मौलिक स्तर पर जानना।
डिप्रेशन के मुख्य कारण:
* जब तनाव हमारे भावनात्मक जीवन का हिस्सा बन जाता है तो हमारे विकास के लिए यह बाधक साबित होता है। इसका प्रभाव विचारों में अस्थिरता देता है। एकाग्रता बाधित होने लगती है। इसका कोई निश्चित कारण नहीं होता है क्योंकि हर व्यक्ति के लिए तनाव व उदासी के अपने कारण हो सकते हैं।
* किसी संबंध का टूटना या अपनों से मनमुटाव भी भारी तनाव देता है जो कि डिप्रेशन का कारण बन सकता है।
साइकोटिक डिप्रेशन: ऐसी स्थिति में रोगी को काल्पनिक चीजें प्रभावित करती हैं। शक भी दिमाग पर हावी हो जाता है। निराशा का मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव रहता है।
टिपिकल डिप्रेशन: इससे जूझने वाला मनुष्य अपने मन की बातें किसी से शेयर नहीं कर पाता है।
मैनिया: एग्जाम के परिणाम या ऑफिस में काम मनमुताबिक न होने से मायूसी छा जाती है। वो मायूसी इस परिस्थितियों को जन्म दे सकती है।
डिस्थायमिया: जीवन में जब बिना वजह उदासी, असंतुष्टि या खालीपन लगने लगता है। व्यक्ति अपनी जिंदगी को खुल कर जी नहीं पाता है।
पोस्टपार्टम: महिलाओं में बच्चों को जन्म देने के बाद ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती है।
मनोचिकित्सा को लेकर बहुत सारे भ्रम जुड़े होते हैं। लोग मनोचिकित्सा से मदद लेने में कतराते हैं। मानसिक स्वास्थ्य परामर्श' यानी मेंटल हेल्थ काउंसलिंग के महत्व के बारे में हममें से कई लोग अनभिज्ञ हैं। हम साइकेट्रिस्ट या साइकोलोजिस्ट को अपनी संकुचित ज्ञान के कारण बस 'पागलों के डॉक्टर' के रूप में जानते हैं । हम मेंटल हेल्थ पर खुल कर बात करने से कतराते हैं तो जाहिर है इसके
समाधान पर हमारा ध्यान नहीं जाता है। अमूमन मनोचिकित्सा सिर्फ दिमागी बीमारी तक ही सीमित नहीं है। यह मनुष्य की सोच व व्यवहार का समुचित अध्ययन भी करती है जिससे उसे अवसाद के कारणों व जुड़े समाधान का पता चले।
साइकोथेरेपी में मनोचिकित्सक एवं 'क्लाइंट' की भूमिका होती है। क्लाइंट वो होता है जो मनोचिकित्सा लेता है। इसे साधारण भाषा में काउंसलिंग कहा जा सकता है। यह एक बातचीत के समान होता है जहाँ क्लाइंट की बुनियादी समस्याओं का जिक्र होता है। उसके विचारों को समझा जाता है। उसकी सोच को परखा जाता है। इस वार्तालाप को गोपनीय रखा जाता है ताकि उसकी भावनाओं एवं विश्वास को ठेस न पहुंचे। यह कभी किसी तीसरे को बताया नहीं जाता।
मनोचिकित्सा क्लाइंट की जरूरतों के हिसाब से वर्गों में बांट दी गई है। जानते हैं इसके प्रकार के बारे में:
बिहेवियर थेरेपी
इसके अंतर्गत ऐसे व्यवहार या आदतों पर काबू पाने की कोशिश की जाती है जो एक व्यक्तित्व में नकारात्मक प्रभाव को भर सकते हैं। ऐसी आदतों से छुटकारा पाने के तरीके बताए जाते हैं। चिंता,डर,पैनिक अटैक आदि को यहाँ ठीक करने का लक्ष्य लिया जाता है।
क्लाइंट सेंटर्ड थेरेपी
यहाँ क्लाइंट के लिए एक वातावरण बनाया जाता है जिससे उसके व्यक्तित्व का सकारात्मक विकास हो सके। यहाँ नशे की लत,पर्सनैलिटी डिसऑर्डर पर जोर दिया जाता है।
फैमिली थेरेपी
यह थेरेपी किसी व्यक्ति विशेष पर केन्द्रित न होकर एक पूरे परिवार पर ध्यान देती है। हो सकता है सदस्यों में मनमुटाव हो या एक दूसरे के बीच आपसी सामंजस्य की कमी है या कुछ अनसुलझी समस्या जिस पर बातें न हो पा रही हो। इन परेशानियों के समाधान के लिए यह थेरेपी उपयुक्त है।
डिप्रेशन के लक्षणों को उदासी या रोजमर्रा की जिंदगी में उत्पन्न तनाव से जोड़ने पर बड़ी समस्याओं कि सामना करना पड़ता है। ऐसा सुझाव दिया जाता है कि उदासी हफ्ते भर से अधिक हो या खालीपन का महसूस होना, चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए। भागदौड़ से भरे इस जीवन में सुकून एक दुर्लभ अनुभूति है और मानसिक पीड़ा से बचने का संभव उपाय अवश्य करना चाहिए। मनोचिकित्सा के प्रति हमें अपना रवैया बदलने की आवश्यकता है, कोई इस माध्यम से इलाज़ करवा रहा है तो ज़रूरी नहीं कि वो 'पागल' हो। डिप्रेशन जैसी बीमारी एवं इसके इलाज के प्रति जागरूकता अनिवार्य है।
डिप्रेशन के मुख्य कारण:
* जब तनाव हमारे भावनात्मक जीवन का हिस्सा बन जाता है तो हमारे विकास के लिए यह बाधक साबित होता है। इसका प्रभाव विचारों में अस्थिरता देता है। एकाग्रता बाधित होने लगती है। इसका कोई निश्चित कारण नहीं होता है क्योंकि हर व्यक्ति के लिए तनाव व उदासी के अपने कारण हो सकते हैं।
* किसी संबंध का टूटना या अपनों से मनमुटाव भी भारी तनाव देता है जो कि डिप्रेशन का कारण बन सकता है।
- सेक्सुअली एक्सप्लाइट होने पर भी शारीरिक यातना के साथ-साथ मानसिक स्तर पर काफी चोट पहुंचती है जो डिप्रेशन का रूप धारण कर सकती है।
- बेरोजगारी। आजकल युवाओं में मानसिक तनाव काफी हद तक बढ़ रहा। मन मुताबिक नौकरी का ना होना, जिम्मेदारी का बढ़ना,दबाव इत्यादि डिप्रेशन की ओर अग्रसर कर रहे हैं।
- घरेलू हिंसा से जूझने वाली महिलाएं डिप्रेशन की आसान शिकार बन सकती हैं। बात को मन में रख कर वो सारी यातनाएं झेलती हैं जिसके परिणामस्वरूप मानसिक स्थिति प्रभावित होती है।
- कभी-कभी हार्मोनल बदलाव भी डिप्रेशन का कारण बन सकते हैं।
- डिप्रेशन का अनुवांशिक कारण भी हो सकता है।
- कभी-कभी मेहनत के अनुरूप सफलता नहीं मिलती है, जिसके कारण भी व्यक्ति डिप्रेशन से जूझने लगता है।
- भविष्य जब अनिश्चितता से घिरा हो तब भी मन तनावपूर्ण रहता है।
- अधिक गुस्से का आना। बात-बात पर चिड़चिड़ापन।
- खुद को हमेशा एक 'लूजर' की तरह देखना। स्वयं से ही हर वक्त असंतुष्ट रहना।
- हमेशा विचारों में उलझे रहना।
- अमूमन उदासी से घिरे रहना।
- आत्मविश्वास की कमी।
- किसी भी प्रकार की रुचि का न होना।
- हताशा का होना।
- कम बोलना पर और अकेले रहना।
- एकाग्रता की कमी ।
- आशंका के अधीन रहना।
- चिंता का मन पर हावी होना।
- डॉक्टर बताते हैं कि इसका इलाज केवल दवाओं से संभव नहीं। अपनी दिनचर्या में भी हमें बदलाव लाने की आवश्यकता होती है।
- योग, ध्यान आदि को हमें आदतों में शामिल करना चाहिए।
- जॉगिंग तथा आउटडोर एक्टिविटी में हिस्सा लेना चाहिए।
- अगर उदासी हफ्ते भर से अधिक है तो साइकोलॉजिस्ट या साइकेट्रिस्ट से मिलें। हमें परामर्श लेने में कतराना नहीं चाहिए।
- डायट पर भी ध्यान देने की खास आवश्यकता होती है। हमें अपने भोजन में प्रोटीन, मिनरल्स इत्यादि को शामिल करना आवश्यक है। ओट्स, गेहूं, दूध,दही, हरी सब्जियों को खाने का हिस्सा बनाना चाहिए। मसालेदार एवं फास्ट फूड से दूरी बनाए रखना हितकर है। ओमेगा- थ्री व ऐंटि-ऑक्सिडेंट को खाने में शामिल करना चाहिए।
- किसी भी प्रकार की दवा लेने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लेना चाहिए।
- मनोचिकित्सा अवसाद के इलाज में मदद करता है। इसके अंतर्गत रोगी के व्यवहार और सोचने के तरीके का अध्ययन किया जाता है और उसी के अनुरूप इलाज किया जाता है। मनोचिकित्सा एक अंतर्दृष्टि देती है जिससे यह ज्ञान होता है कि डिप्रेशन का कारण क्या है।
- शराब व सिगरेट का सेवन न करना लाभकारी होता है।
- मेजर डिप्रेशन
- साइकोटिक डिप्रेशन
- टिपिकल डिप्रेशन
- मैनिया
- डिस्थायमिया
- पोस्टपार्टम
साइकोटिक डिप्रेशन: ऐसी स्थिति में रोगी को काल्पनिक चीजें प्रभावित करती हैं। शक भी दिमाग पर हावी हो जाता है। निराशा का मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव रहता है।
टिपिकल डिप्रेशन: इससे जूझने वाला मनुष्य अपने मन की बातें किसी से शेयर नहीं कर पाता है।
मैनिया: एग्जाम के परिणाम या ऑफिस में काम मनमुताबिक न होने से मायूसी छा जाती है। वो मायूसी इस परिस्थितियों को जन्म दे सकती है।
डिस्थायमिया: जीवन में जब बिना वजह उदासी, असंतुष्टि या खालीपन लगने लगता है। व्यक्ति अपनी जिंदगी को खुल कर जी नहीं पाता है।
पोस्टपार्टम: महिलाओं में बच्चों को जन्म देने के बाद ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती है।
मनोचिकित्सा को लेकर बहुत सारे भ्रम जुड़े होते हैं। लोग मनोचिकित्सा से मदद लेने में कतराते हैं। मानसिक स्वास्थ्य परामर्श' यानी मेंटल हेल्थ काउंसलिंग के महत्व के बारे में हममें से कई लोग अनभिज्ञ हैं। हम साइकेट्रिस्ट या साइकोलोजिस्ट को अपनी संकुचित ज्ञान के कारण बस 'पागलों के डॉक्टर' के रूप में जानते हैं । हम मेंटल हेल्थ पर खुल कर बात करने से कतराते हैं तो जाहिर है इसके
समाधान पर हमारा ध्यान नहीं जाता है। अमूमन मनोचिकित्सा सिर्फ दिमागी बीमारी तक ही सीमित नहीं है। यह मनुष्य की सोच व व्यवहार का समुचित अध्ययन भी करती है जिससे उसे अवसाद के कारणों व जुड़े समाधान का पता चले।
साइकोथेरेपी में मनोचिकित्सक एवं 'क्लाइंट' की भूमिका होती है। क्लाइंट वो होता है जो मनोचिकित्सा लेता है। इसे साधारण भाषा में काउंसलिंग कहा जा सकता है। यह एक बातचीत के समान होता है जहाँ क्लाइंट की बुनियादी समस्याओं का जिक्र होता है। उसके विचारों को समझा जाता है। उसकी सोच को परखा जाता है। इस वार्तालाप को गोपनीय रखा जाता है ताकि उसकी भावनाओं एवं विश्वास को ठेस न पहुंचे। यह कभी किसी तीसरे को बताया नहीं जाता।
मनोचिकित्सा क्लाइंट की जरूरतों के हिसाब से वर्गों में बांट दी गई है। जानते हैं इसके प्रकार के बारे में:
बिहेवियर थेरेपी
इसके अंतर्गत ऐसे व्यवहार या आदतों पर काबू पाने की कोशिश की जाती है जो एक व्यक्तित्व में नकारात्मक प्रभाव को भर सकते हैं। ऐसी आदतों से छुटकारा पाने के तरीके बताए जाते हैं। चिंता,डर,पैनिक अटैक आदि को यहाँ ठीक करने का लक्ष्य लिया जाता है।
क्लाइंट सेंटर्ड थेरेपी
यहाँ क्लाइंट के लिए एक वातावरण बनाया जाता है जिससे उसके व्यक्तित्व का सकारात्मक विकास हो सके। यहाँ नशे की लत,पर्सनैलिटी डिसऑर्डर पर जोर दिया जाता है।
फैमिली थेरेपी
यह थेरेपी किसी व्यक्ति विशेष पर केन्द्रित न होकर एक पूरे परिवार पर ध्यान देती है। हो सकता है सदस्यों में मनमुटाव हो या एक दूसरे के बीच आपसी सामंजस्य की कमी है या कुछ अनसुलझी समस्या जिस पर बातें न हो पा रही हो। इन परेशानियों के समाधान के लिए यह थेरेपी उपयुक्त है।
डिप्रेशन के लक्षणों को उदासी या रोजमर्रा की जिंदगी में उत्पन्न तनाव से जोड़ने पर बड़ी समस्याओं कि सामना करना पड़ता है। ऐसा सुझाव दिया जाता है कि उदासी हफ्ते भर से अधिक हो या खालीपन का महसूस होना, चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए। भागदौड़ से भरे इस जीवन में सुकून एक दुर्लभ अनुभूति है और मानसिक पीड़ा से बचने का संभव उपाय अवश्य करना चाहिए। मनोचिकित्सा के प्रति हमें अपना रवैया बदलने की आवश्यकता है, कोई इस माध्यम से इलाज़ करवा रहा है तो ज़रूरी नहीं कि वो 'पागल' हो। डिप्रेशन जैसी बीमारी एवं इसके इलाज के प्रति जागरूकता अनिवार्य है।