What are the warning signs of mental health disorders in female teens?- किशोरियों में मानसिक स्वास्थ्य विकारों के चेतावनी संकेत क्या हैं?
बचपन को हर एक के जीवन का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है, बेफिक्री, मन मे हर नही चीज के लिए उत्सुकता, उत्साह। खेलते कूदते कब बचपन गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता और अचानक शारीरिक रूप से बदलाव शुरू होने लगते हैं जिनसे मानसिक और सामाजिक रूप से स्वयं को बदलना पड़ता हैं कहाँ बचपन मे आज़ाद पक्षियों की तरह विचरने वाले पैरों को अब आदत डालनी होती है, घर तक महदूद रहने की, या ज़िम्मेदारियों का बोझ धीरे धीरे कंधों पर उठाने की पढ़ाई का बोझ की 90% लाना ही है, या वो शौक जो किशोरों को बचपन से रहा हो पर अब आप पर उसे खत्म करने का दबाव डाला जा रहा हो कि इसमें कोई भविष्य नहीं है, इसे छोड़ो और पढ़ाई करो मान लीजिए एक बच्चा जिसका बचपन से क्रिकेटर बनने का सपना रहा हो जो अच्छा खेलता भी हो और अचानक उससे कहा जाए कि तुम क्रिकेट खेलना छोड़ दो इससे तुम्हारा वक्त बर्बाद होता है पढ़ाई पर ध्यान दो, या कोई बच्चा जो मैथ में कमज़ोर है अचानक उससे कहा जाए कि तुम्हें मैथ ही आगे की क्लास में ले के चलना है मेहनत करो जबकि लाख सर खपाने पर भी बच्चा न उसमे रुचि ले पा रहा है न ही मैथ में उसका प्रदर्शन ही बढ़िया रहा है ऊपर से माँ बाप का दबाव, फेल होने का डर, दोस्तों में इज़्ज़त घट जाने का ख़तरा या इस बात का डर की मैथ में फेल होने के बाद सब उसका मज़ाक उड़ाएँगे ये एक किशोर को मानसिक और शारीरिक रूप से काफी नुकसान पहुंचा सकता है जिसके परिणाम भयानक हो सकते है, कई बार किशोर घर से भाग जाते हैं, या फैल होने के डर से रिजल्ट के पहले ही ख़ुदकुशी भी कर लेते हैं
स्टेनले हाल जो कि एक मनोवैज्ञानिक थे उन्होंने किशोरावस्था की इन शब्दों में परिभाषित किया है "किशोरावस्था बड़े संघर्ष तनाव तूफान तथा विरोध की अवस्था है"
तो कहने का मतलब ये है कि किशोरावस्था में जहाँ शरीर के लिए पोषक तत्वों युक्त भोजन की आवश्यकता होती हैं वहीं उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी एक सुरक्षित और स्वस्थ व शांत परिवेश की भी आवश्यकता पड़ती है जिससे किशोरावस्था में होने वाली मानसिक परेशानियों से बचा जा सके
कई बार हम किशोरों को होने वाली परेशानियों को नज़रंदाज़ करने लगते हैं जो उनमें एक मानसिक बीमारी के रूप में उभर कर सामने आती है और जब तक हम उस पर ध्यान दे पाते हीन वो एक विकराल और स्थायी बीमारी का रूप ले चुकी होती है
किशोरों में होने वाली कुछ मानसिक बीमारियाँ उनके लक्षण और उपचार
एंग्जायटी डिसऑर्डर के कारण
अत्यधिक चिंता जिसकी एक बहुत बड़ी वजह है नींद का पूरा न होना । लगभग 50% लोग ऐसे हैं जो अपनी नींद को पूरा नहीं कर पाते । नींद पूरी न होने से शरीर में 86% रोग बढ़ जाते हैं, जिनमें डिप्रेशन व एंग्जायटी सबसे ज्यादा हैं । लगभग 18% युवा एंग्जाइटी के शिकार हैं । पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की एंग्जायटी में आने की संभावना अधिक होती है
लक्षण
- नौकरी या इम्तिहान से पहले की बेचैनी
- स्टेज फियर यानी लोगों के बीच खड़े होने की घबराहट या चिंता ।
- डर का फोबिया, जैसे ऊंचाई, आवारा कुत्ते से काटे जाने का डर, दुर्घटना का डर आदि ।
- किसी दोस्त या करीबी की मौत से होने वाला दुख या चिंता ।
एंग्जाइटी डिसऑर्डर कई प्रकार के होते हैं, लेकिन उनके कुछ सामान्य लक्षण हैं –
- दिल की धड़कन का बढ़ जाना या सांस फूल जाना
- मांसपेशियों में तनाव का बढ़ जाना
- छाती में खिंचाव महसूस होना
- किसी के लिए बहुत ज्यादा लगाव होना
- किसी चीज के लिए अनावश्यक आग्रह करना
- शराब पीना या नशाखोरी
- वंशानुगत अगर परिवार के किसी सदस्य को ये बीमारी है तो भी हो सकती है
एंग्जायटी डिसऑर्डर का इलाज
एंग्जायटी डिसऑर्डर से निजात पाया जा सकता है । लेकिन इसे बिल्कुल भी हल्के में नहीं लेना चाहिए । अगर कोई लक्षण नजर आए तो फौरन डॉक्टरी सलाह लें और इलाज के लिए किसी प्रोफेशनल डॉक्टर को दिखाए । डिप्रेशन या एंग्जायटी का इलाज दवा, काउंसलिंग या मिले-जुले इस्तेमाल से बेहद आसानी से किया जा सकता है ।
साइकोथेरेपी है कारगर
आप साइकोथेरेपी की मदद ले सकते है । एंग्जायटी को दूर करने में साइकोथेरेपी बहुत कारगर साबित हुई है । इस थेरेपी में मन पर नियंत्रण करना सिखाया जाता है । समय के पाबंद रहें और हर काम मन लगाकर करें ।
पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD)
- चिड़चिड़ापन, व्याकुलता, खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश , दुश्मनी, सामाजिक अलगाव, या ज़रूरत से ज़्यादा सतर्कता बरतना
- पहले हुई किसी घटना को अचानक, बिना इच्छा के, फिर से अनुभव करना, गंभीर रूप से चिंता करना, डर, गतिविधियों में रुचि न होना या आनंद न आना, अकेलापन, या अपराध बोध
- अनिद्रा या बुरे सपने
पीटीएडी के कारण
- किसी प्राकृतिक आपदा, हमले, युद्ध, गंभीर दुर्घटना का दिमाग पर गहरा असर होने की वजह से पीटीएसडी हो सकता है.
पीटीएसडी का इलाज
तुरन्त मनोचिकित्सकों से मिले उसके दिए गए निर्देशों का पालन करें और दवाओं को निर्देशानुसार रोगी को देते रहें तथा कुछ महत्वपूर्ण थेरेपी भी इसके इलाज में काफी कारगर साबित हुई हैं
कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी – इस थेरेपी के जरिए डॉक्टर यह समझने की कोशिश करते हैं कि किन बातों से रोगी में लक्षण गंभीर हो जाते हैं. व्यक्ति में उभर रही नकारात्मक सोच, बुरे सपनों, डर और यादों को दूर करने की कोशिश भी इस थेरेपी के माध्यम से होता है.
एक्सपोजर थेरेपी – इस थेरेपी के जरिए अतीत में हुई किसी दुर्घटना या बुरे सपने के बारे में जानने में आसानी होती है. इसके जरिए दुर्घटना के बारे में समझकर, लक्षणों की गंभीरता के आधार पर आगे के इलाज की रूपरेखा तैयार की जाती है.
फैमिली थेरेपी – पीटीएसडी से ग्रसित व्यक्ति के जीवन में चल रही परेशानी की वजह से परिवार के अन्य लोग भी प्रभावित हो सकते हैं, ऐसे में फैमिली थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है.
मानसिक तनाव मानसिक तनाव को एक आम समस्या समझा जाता है इसे अस्थायी समझा जाता है कि ये मौजूदा स्थिति के दबावपूर्ण परिस्थितियों से उत्पन्न एक मानसिक स्थिति है जो कुछ समय बाद सही हो जाएगी
पर जब ये तनाव की स्थिति बढ़ती चली जाती है तो व्यक्ति गहरे अवसाद में भी जा सकता है तथा उसे बहुत सी घातक बीमारियाँ भी हो सकती हैं जो अन्य बीमारियों को जन्म देतीं हैं
लक्षण
- अत्यधिक सोना
- भूख न लगना
- अनिद्रा
- लगातार नकारात्मक विचारों में डूबे रहना
- किसी कार्य मे रुचि न लेना
- चिड़चिड़ापन
- लगातार अकेले कमरे में बंद रहना आत्महत्या की कोशिश इत्यादि
अवसाद होने पर उसे नज़रंदाज़ न करें तुरन्त चिकित्सक से सम्पर्क करें और उसके दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए मानसिक व्यायाम से लेकर स्वस्थ्य सोच को विकसित करें दी गयी दवाओं का सेवन करें
कई बार बच्चों को नज़रअंदाज़ करना भी माता पिता को भारी पड़ सकता है जब बच्चे अपने माता पिता के सामने अपनी बात या विचार रखते हैं तब माता पिता उन्हें बच्चा समझ कर उन्हें अनदेखा कर देते हैं तथा उन पर विश्वास नहीं करते ऐसे समय मे भी किशोरों में अवसाद की घटनाएँ बढती है , वे विद्रोह करते हैं हर उस नियम को तोड़ना चाहते है जो उन्हें लगता है कि उनपर बंदिश की तरह डाल दी गयी है जबकि अब वो बड़े हो गए हैं और वो अपने फैसले खुद ले सकते है, या उन्हें लगता है कि उनकी स्वतंत्रता का हनन हो रहा है फलस्वरूप वे गलत आचरण करने लगते हैं या आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं अथवा मानसिक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं या अवसाद ग्रस्त हो कर ख़ुदकुशी कर लेते हैं
माता-पिता की जिम्मेदारियाँ
- को इन सारी परेशानियों से बचाने के लिए उनमें स्वस्थ आदतें बचपन से ही विकसित कर देनी चाहिए,
- स्वस्थ और पौष्टिक भोजन के साथ साथ शारीरिक व्यायाम , योग और ध्यान यानी मेडिटेशन भी बच्चों को कराना चाहिए
- बच्चों को एक सुरक्षित और स्वस्थ माहौल देने के लिए उनके विचारों को सुनना चाहिए
- और उनको अभिव्यक्ति की आज़ादी भी देनी चाहिए
- बच्चों के निर्णयों के स्वागत करना चाहिए अगर वो गलत है तो प्यार से समझाना चाहिए
- उनके हर गतिविधि पर पैनी नजर रखनी चाहिए कि कहीं वो खेल से दूर तो नहीं हो रहा है या परिवार से
- घर का वातावरण तणावपूर्ण न हो इसका खयाल रखना चाहिए
किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक और मानसिक और सांवेगिक परिवर्तनों को समझते हुए उनसे सामंजस्य करने वाले किशोरों की समस्याओं को समझ कर उनका निदान करने की कोशिश करनी चाहिए
ऐसा करके माता पिता अपने किशोर बच्चों को बेहतर जीवन के साथ बेहतर भविष्य भी प्रदान कर सकते हैं