What are the psychosocial aspects of old age? वृद्धावस्था के मनोसामाजिक पहलु

 What are the psychosocial aspects of old age? | वृद्धावस्था के मनोसामाजिक पहलु

What are the psychosocial aspects of old age? | वृद्धावस्था के मनोसामाजिक पहलु_ ichhori.com


 

आर्थिक संपन्नता अच्छा खाना रोगों का सही तरह से उपचार और अच्छे चिकित्सालय इन सब के कारण विकसित और विकासशील दोनों ही देशों में मनुष्य की औसत आयु में वृद्धि हुई है| इस तरह व्यक्ति इन दिनो ज्यादा लंबा जीवन जी रहा है| आजकल लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति पहले से ज्यादा सजग और सहज है| इसलिए बीमारियों के कारण मरने वाले लोगों की संख्या में गिरावट आई है|

मनुष्य की उम्र का बड़ना शारीरिक मानसिक और सामाजिक परिवर्तन की एक बहुआयामी प्रक्रिया है| बुजुर्गों की आयु का बढ़ना एक तरह से सामाजिक और संस्कृति परंपरा की आयु का बड़ना भी दर्शाता है|

क्योंकि यह इसलिए है कि बुजुर्गों का अनुभव युवा लोगों के अनुभव से कहीं ज्यादा और बेहतर होता है| वह समाज को एक नई दिशा और सोच प्रदान कर सकते हैं| इसके अलावा आज की युवा पीढ़ी बुजुर्गों से कई तरह की शिक्षा और संस्कार भी प्राप्त कर सकते हैं |अक्सर यह देखा जाता है कि युवा और बुजुर्गों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है|

 यह इसलिए होता है क्योंकि बुजुर्गों के सोचने और समझने की क्षमता युवाओं से अधिक सक्षम और बेहतर होती है| मगर युवा उनकी सोच और विचार को ज्यादा मायने नहीं देते हैं| युवा पीढ़ी और बुजुर्गों की विचारधारा के टकराव के कारण आज युवा वर्ग बुजुर्गों के साथ रहना नहीं चाहता है |कारण बुजुर्ग आर्थिक और शारीरिक रूप से स्वतंत्र नहीं होते हैं|

 हाल ही में किए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि अधिकांश बुजुर्ग आर्थिक रूप से अपने परिवार पर निर्भर होते हैं| इस कारण 75% से अधिक बुजुर्ग अपने बेटों के साथ रहते है, जबकि 10% बुजुर्ग अपने बेटियों के साथ रहते हैं |इसके अलावा अधिकांश बुजुर्गों ने यह स्वीकार किया है कि शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हो पाने के कारण उन्हें कई बार अपने बच्चों और समाज से कई बार उपेक्षा और मौखिक दुर्व्यवहार का सामना करने के अलावा सम्मान भी नहीं मिल पाता है| इस कारण वे कई बार निराश होकर चिड़चिडे हो गए हैं|

 मगर हमें यह समझना होगा युवा वर्ग और बुजुर्ग वर्ग समाज के दो अलग-अलग समूह है ,जो दोनों मिलकर समाज को पूरा करते हैं |माना कि दोनों के व्यवहार, पसंद ,नापसंद और स्वभाव अलग-अलग होते हैं ,मगर दोनों अलग-अलग होते हुए भी एक दूसरे के पूरक हैं| दूसरे शब्दों में कहा जाए तो दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं, क्योंकि जो आज युवा है कल वृद्ध होगा और जो वृद्ध है वह बीते हुए कल में युवा था |

दोनों के व्यवहार में इतना अंतर इसलिए होता है क्योंकि युवा आमतौर पर अपने भविष्य और आने वाले कल के बारे में सोचते हैं और बुजुर्ग अपने बीते हुए कल यानी कि भूतकाल में जीते हैं |उन्हें अपनी पुरानी बातें ,पुरानी संस्कृति ,पुरानी सभ्यता, आदि से इतना ज्यादा लगाव होता है कि  वे वर्तमान में युवा पीढ़ी के साथ कदमताल  नहीं कर पाते हैं| 

युवा और बुजुर्ग दोनों में अंतर होते हुए भी कई सारी समानताएं हैं और कई सारी समानता होते हुए भी दोनों की सोच में जमीन आसमान का अंतर होता है| आइए आगे क्या आर्टिकल में जानते हैं कि दोनों की सोच में अंतर होने का क्या कारण है-

1- दोनों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण- अक्सर हमने देखा है कि यदि किसी बुजुर्ग व्यक्ति से बातें करते हैं तो वह अक्सर अपनी जवानी के दिनों के किस्से सुनाता है या फिर जब वह बच्चे थे तो उनके दादा जी दादी जी  के साथ उनका जीवन कैसा व्यतीत होता था| जबकि आप किसी युवा से बात करेंगे तो वह अपने भविष्य की योजनाओं के बारे में या फिर अपने आने वाले कल के बारे में आपसे चर्चा करेगा| एक ओर जहां बुजुर्ग अपने अतीत के किस्से सुनाते हैं वही जवान या फिर युवा व्यक्ति अपने भविष्य को जीने के सपने देखता है|

2- युवाओं से भिन्न दृष्टिकोण- बुजुर्ग लोग अपने जीवन में अपने सारे लक्ष्यों को लगभग प्राप्त कर चुके होते हैं ,जबकि युवा को अपने लक्ष्य प्राप्त करने होते हैं |उन्हें अपना भविष्य का निर्माण करना होता है| इसलिए वह वर्तमान में संतुष्ट ना रहकर भविष्य की ओर अग्रसर होते हैं| वही बुजुर्ग अपने लक्ष्य आकांक्षाओं की पूर्ति से पूरी तरह संतुष्ट होते हैं |यदी वे संतुष्ट भी नहीं होते हैं तो उन्हें यह पता होता है कि अब वह अपने इन लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त नहीं कर पाएंगे |इसलिए वह वर्तमान में या अपने अतीत के साथ संतुष्टि रहने की कोशिश करते हैं| ऐसे में युवा और बुजुर्ग दोनों की विचारधारा में मतभेद आता है |

3- स्वतंत्रता और स्वच्छंन्दता में अंतर- अक्सर युवा पीढ़ी अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपने घर परिवार से दूर आशियाना बनाने में नहीं झिझकते है| इसका मुख्य कारण लोग अपने आप को परिवार के बंधन में बंधे देख अपने सपनों को पूरा होता हुआ नहीं देख पाते हैं| ऐसे में वे लोग खुद को साबित करने की होड़ में घर छोड़ने का निर्णय तुरंत ले सकते हैं| वही बुजुर्ग व्यक्ति अक्सर परिवार के लोगों के बीच रहना पसंद करता है, क्योंकि जवानी के दिनों में वह भी रोजी रोटी और अपने सपनों की तलाश में अपने परिवार से दूर रहा था| अब उसे अपने बच्चों और परिवार के पास रहना अच्छा लगता है|

4- रहना चाहते हैं परिवार के संपर्क में- युवा पीढ़ी घर परिवार से दूर निकल कर अक्सर उनसे अपना संपर्क कम या ना के बराबर कर देती है| वह अपने परिवार को अपनी विचारधारा और सोच से विपरीत पाती है तो धीरे-धीरे परिवार से किनारा करने लगती है| मगर बुजुर्ग जो अब तक अपने परिवार से अपने सपनों को पूरा करने के कारण दूर थे अब लगातार अपने परिवार के संपर्क में रहना उन्हें पसंद आता है| जीवन के इस पड़ाव पर आकर उन्हें समझ में आता है कि परिवार के पास ही जीवन की सारी खुशी और सुख मौजूद है परिवार के लोगों का साथ उनका सामंजस्य ही उनकी असली विरासत है|

भारत जनसंख्या के परिवर्तन के चरण में है हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि में से यह है, कि हमने जीवन प्रत्याशा मैं बढ़ोतरी हासिल की है |इसका मतलब है कि हम से अधिकांश लोग हमारे माता-पिता की तुलना में अधिक समय तक जीवित रह सकते हैं| यह स्वास्थ्य सेवाओं की उन्नति और अच्छी सुद्रण जीवन शैली के कारण संभव हो पाया है |यह पिछले दो दशक की जनसांख्यिकी परिवर्तन का आंकड़ा है| हमारे बड़े और संपन्न उच्च मध्यम वर्ग उपभोग में बढ़ोतरी का नेतृत्व कर रहे हैं| इस दशक में हर साल कामकाजी आबादी लगभग एक करोड़ तक बढ़ जाएगी| जिसमें से आधी आबादी 30 साल से भी कम उम्र की होगी| ऐसे में खासकर हमारे बुजुर्गों के सामने प्रतिदिन कई सारी समस्याओं का अंबार लगने वाला है|

 दरअसल मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली मे वृद्धावस्था एक रोग की तरह मानी जाती है और लगातार एकल परिवार की बढ़ती प्रवृत्ति, नौकरी के लिए प्रवासन सामाजिक मानदंडों में बदलाव और बड़ों के बीच स्वतंत्र रहने की प्राथमिकता उन्हें और भी कमजोर बनाने लगती है| वैसे तो बुजुर्ग लोग अपनी सेवानिवृत्ति के बाद स्वस्थ ,आरामदायक और खुशहाल जीवन का सपना देखते हैं, मगर दुर्भाग्य से अधिकांश लोग कई कारणों से इन्हें पूरा नहीं कर पाते हैं|

एक और युवा अवस्था में अकेलेपन के दौरान आप अपनी थकान और अकेलेपन के कारण आए हुए नीरसता को इंटरनेट और मीडिया के जरिए पूरा कर सकते हैं ,लेकिन वृद्धावस्था में अपनी नीरसता दूर करने के लिए सामाजिक सहयोग जीवन यापन और दैनिक कामकाज की आवश्यकता बहुत अनिवार्य होती है| इसलिए आज समाज की महती आवश्यकता है कि बुजुर्गों की देखभाल और उन्हें दोबारा समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने के लिए अपने कदम जरूर बढ़ाएं|

विनीता मोहता विदिशा

 


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