How many women face health problems due to abortion restrictions?/गर्भपात प्रतिबंधो के कारण कितनी महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है

How many women face health problems due to abortion restrictions?/गर्भपात प्रतिबंधो के कारण कितनी महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है

How many women face health problems due to abortion restrictions?/गर्भपात प्रतिबंधो के कारण कितनी महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है _ichhori.com


स्त्री जो घर संवारती है जिम्मेदारी निभाती है और जीवन भर परिवार की जिम्मेदारियों में बंधी बच्चों की देखभाल करने तक ही अपने जीवन को सीमित मानती है कि संतानप्राप्ति के बाद संतान की परवरिश और उसकी देखभाल करना ही उसका एकमात्र उद्देश्य है और जहां पहले के जमाने में संतान ईश्वर की देन मानी जाती थी और गर्भपात को पाप मानते थे अर्थात बहुत जगह गर्भपात प्रतिबंधित था और कहते थे कि यह ईश्वर की देन के खिलाफ किया गया पाप है,
लेकिन धीरे धीरे जनसंख्या वृद्धि में हुई बढ़ोतरी जिसके कारण अधिकांश लोग सुख सुविधाओं से वंचित होने लगे और बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी तब सरकार ने गर्भपात को उचित ठहराया लेकिन अभी भी कहीं कहीं इसको गलत और शर्मसार माना जाता है और जो महिलाएं प्रतिबंधित होने के बावजूद भी कहीं भी किसी भी अस्पताल में बिना सुविधा देखे गर्भपात कराने का निर्णय करती है उन्हे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है,
क्योंकि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों और प्राचीन परम्पराओं को मानने वाले लोग गर्भपात को अपराध मानते हैं लेकिन जगह जगह अस्पतालों में ऐसी सुविधाएं उपलब्ध हैं जहां सुरक्षित रूप से महिलाएं गर्भपात कराती है,
लेकिन अब यह जानना अति आवश्यक है कि गर्भपात प्रतिबंधो के कारण कितनी ही महिलाओं को कौन कौनसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है,   
सर्वप्रथम तो दुनिया में हर साल लगभग 56 मिलियन महिलाओं के गर्भपात किए गए हैं, जिसमें लगभग 45% वो है जो असुरक्षित तरीके से किए गए हैं अर्थात सुविधा न होने के बावजूद भी गर्भपात किया गया
हालांकि 2003 और 2008 के बीच गर्भपात की दर में बहुत कम बदलाव आया क्योंकि परिवार नियोजन और जन्म नियंत्रण की एक सीमा रेखा है जिस कारण कम से कम दो दशकों तक इसमें कमी आई, और तो और 2018 तक दुनिया की 37% महिलाओं के आस कानूनी गर्भपात तक पहुंच है क्योंकि जो देश गर्भपात की अनुमति देते हैं, उनकी अलग-अलग सीमाएं होती हैं कि गर्भावस्था में कितनी देर तक गर्भपात की अनुमति है हालांकि गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों और अनुमति देने वाले देशों के बीच गर्भपात की दर समान है, क्योंकि वह गर्भपात जो बिना किसी हस्तक्षेप के होता है, 
उसे गर्भपात या "सहज गर्भपात" कहा जाताहै और लगभग 30% से 40% गर्भधारण में होता है लेकिन गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए जानबूझकर जोकदम उठाए जाते हैं, उसे प्रेरित गर्भपात कहा जाता है,
सहज और प्रेरित गर्भपात किसे कहते हैं यह जानने के बाद गर्भपात कराना क्यों आवश्यक है इसके क्या कारण है यह जानना भी अति आवश्यक है
हालांकि कभी कभी सहज गर्भपात का सबसे आम
कारण भ्रूण या भ्रूण की गुणसूत्र संबंधी असामान्यताएं होती हैं, क्योंकि डॉक्टर की गलती और प्रारंभिक गर्भावस्था के आए नुकसान वाले केस कम से कम 50% है और अन्य कारणों में संवहनी रोग, मधुमेह , अन्य हार्मोनल समस्याएं, संक्रमण और गर्भाशय की असामान्यताएं शामिल होती है जिस कारण गर्भपात किए जाते हैं,
और मातृ आयु में वृद्धि और एक महिला के पिछले सहज गर्भपात का इतिहास,ऐसे  दो प्रमुख कारक हैं जो सहज गर्भपात के अधिक जोखिम से जुड़े है, क्योंकि एक सहज गर्भपात आकस्मिक आघात के कारण भी हो सकता है,
हालांकि कहीं कही गर्भपात का प्रयास हर्बल दवाओं,
नुकीले औजारों, जबरदस्ती मालिश या अन्य पारंपरिक
तरीकों से किया जा रहा है  तथा गर्भपात कानून और
गर्भपात के सांस्कृतिक या धार्मिक विचार दुनिया भर में
अलग है कुछ क्षेत्रों में गर्भपात केवल बलात्कार , भ्रूण दोष
, गरीबी , किसी महिला के स्वास्थ्य के लिए जोखिम, या
अनाचार जैसे विशिष्ट मामलों में ही उसे कानूनी मान्यता प्राप्त  है और  गर्भपात के नैतिक, नैतिक और कानूनी मुद्दों पर बहस चल रही है
हालांकि गर्भपात की घटनाओं को मापने के लिए आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दो विधियाँ प्रचलित हैं:
1. गर्भपात दर - 15 से 44 वर्ष की आयु के बीच प्रति 1000 महिलाओं पर प्रतिवर्ष गर्भपात की संख्या
2. गर्भपात प्रतिशत - 100 ज्ञात गर्भधारण में से गर्भपात की संख्या
हाल के वर्षों में दुनिया भर में किए गए गर्भपात की संख्या स्थिर बनी हुई है जहां, 2003 में 41.6 मिलियन और 2008 में 43.8 मिलियन किए गए और दुनिया भर में गर्भपात की दर प्रति वर्ष प्रति 1000 महिलाओं
पर 28 थी, और विकसित देशों के लिए प्रति वर्ष 24 प्रति 1000 महिला और विकासशील देशों के लिए प्रति
वर्ष 29 प्रति 1000 महिलाएं थीं,
यह जानने के बाद ही गर्भपात को क्यों उचित ठहराया और इसको कराने के क्या कारण है अब यह जानना अति आवश्यक है जहां गर्भपात प्रतिबंधित है वहा कितनी महिलाओं को कौन कौनसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है -
गर्भपात एक ऐसी स्थिति होती है जो महिलाओं को
शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी कष्ट देती है और  पति-और पत्नी दोनों के लिए ही गर्भपात का निर्णय लेना  ही काफी मुश्किल है क्योंकि गर्भावस्था को खत्म करना या भ्रूण को नष्ट करना ही 'गर्भपात' कहलाता है कुछ चिकित्सक दवाओं या सर्जरी द्वारा गर्भपात करते हैं और कुछ गर्भपात की प्रक्रिया व सुरक्षा गर्भावस्था के चरण पर
निर्भर करती है
अनेकों  मामलों में गर्भपात की प्रक्रिया आसान होती है लेकिन इसके कुछ दुष्प्रभाव भी होते हैं जैसे कि बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होना, पेल्विक हिस्से में ऐंठन महसूस होना, जी मिचलाना और उल्टी आदि लक्षण महसूस हो या
गर्भपात के बाद किसी भी तरह के खतरे के लक्षण महसूस
हो तो तुरंत महिलाओं को चिकित्सकीय सहायता लेनी चाहिए
और कुछ जटिल समस्याएं जैसे
योनि से अत्यधिक रक्तस्राव -
गर्भपात के बाद योनि से भारी रक्तस्राव सबसे आम समस्या
होती है और यह आमतौर पर गर्भ में बचे भ्रूण के अवशेषों के कारण होता है जिसे अपूर्ण गर्भपात कहते हैं क्योंकि यदि अवशेष निकाल दिए जाते हैं तो अकसर रक्तस्राव बंद हो जाता है लेकिन कभी कभी अत्यधिक रक्तस्राव गर्भाशय ग्रीवा के फटने के कारण भी होता है इसलिए रक्तस्राव को रोकने के लिए सिलना ज़रूरी होता है लेकिन जहां गर्भपात की उपलब्ध सुविधाएं नहीं होती वहां महिलाओं को इस तरह की समस्यायों का सामना करना पड़ता है,
2. सदमा
कभी कभी जहां गर्भपात प्रतिबंधित है वहां अगर कोई महिला गर्भपात कराने का फैसला लेती है तो यह सोचकर की लोग क्या कहेंगे अर्थात गर्भपात का सदमा एक अच्छे भले जीवन को झकझोर देने वाली स्थिति है जिसमें भारी रक्तस्राव जैसे लक्षण भी उत्पन्न होते हैं और शरीर के अंदर रक्त स्राव के कारण भी सदमा लग सकता है,
3.संक्रमण
कभी कभी डॉक्टर जिनको इसके बारे में कुछ जानकारी नहीं होती और वह जब गर्भपात आखिरी माहवारी के तुरंत बाद 3 महीने के अंदर कर देते है तो हल्का संक्रमण हो सकता है
और गंभीर संक्रमण एक ऐसा संक्रमण है जो रक्त में फैल
जाता है और यदि गर्भपात पिछले मासिक रक्तस्राव से 3 या 4 महीनों के बाद किया गया हो या गर्भपात के दौरान गर्भ में चोट लग गई है तो महिला को गंभीर संक्रमण होने की अधिक संभावना होती है और यह सेप्सिस बहुत खतरनाक स्थिति होती है क्योंकि यह सदमा पैदा कर सकती है
और यह संक्रमण निम्न कारणों से होता है:
जैसे जब अस्वच्छ हाथों के उपयोग से या कोई वस्तु गर्भ के अंदर रह गयी हो
या जब गर्भ में गर्भावस्था के अवशेष रह गए हों तो वो संक्रमण का कारण बनते हैं।
महिला को पहले से ही संक्रमण हो या गर्भ की दीवार में छिद्र किया गया हो तो महिला को संक्रमण हो सकता है,
इसलिए महिलाओं को गर्भपात कराने से पहले इससे संबंधित जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए क्योंकि यह फैसला लेना जितना कठिन है उतने ही बुरे उसके परिणाम क्योंकि कितनी महिलाएं जो बिना सुविधा के किसी भी अस्पताल में गर्भपात करा लेती है वह कभी कभी अपनी जान भी गंवा देती है।
क्या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाली महिलाओं के बच्चे हो सकते हैं संभावित स्वास्थ्य समस्याएं क्या हैं? -
हर स्त्री का सपना होता है कि उसकी गोद में खेले एक नन्हा-सा बच्चा उसकी खिलखिलाहटों को उसके नखरों को वो देख मुस्कुराए उसके पीछे-पीछे दौडना उसको अच्छी परवरिश देना एक अच्छा इंसान बनाना,
लेकिन कम उम्र में लड़कियों की शादी कर देने से उन लड़कियों का शारीरिक विकास नहीं हो पाता और शीघ्र ही बच्चा पैदा करने के लिए वह मानसिक और शारीरिक रूप से सक्षम नहीं होती क्योंकि उनका विकास उतना नहीं हो पाता जितना एक बच्चे के लिए उपयुक्त होता है और ऐसे में वह तनावग्रस्त रहने लगती है कि क्या वह एक अच्छी मां बन पाएगी क्या वह एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे पाएंगी और इस तरह वह कभी कभी डिप्रेशन का शिकार हो जाती है जो मां और बच्चे दोनों के लिए ख़तरनाक होता है,
इसलिए यह जानना अति आवश्यक है कि  मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाली महिलाओं  क्या बच्चा पैदा कर सकती है,या नहीं और संभावित स्वास्थ्य समस्याएं क्या हैं तथा महिलाओं को उस समय क्या करना चाहिए जिससे उनके शिशु पर कोई ग़लत प्रभाव नहीं पडे तो सर्वप्रथम यह जानना अति आवश्यक है कि अवसाद या चिंता क्या है और यह किस प्रकार गर्भवती महिला के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है तो -
अवसाद क्या है - अवसाद एक मानसिक बीमारी है या एक ऐसा विकार है जो लंबे समय तक नाखुश या चिड़चिड़ापन के कारण अत्यंत प्रभावशाली हो जाता है और
जिसमें दैहिक और हानिकारक संकेतों या लक्षणों जैसे थकान,उदासीनता, नींद की समस्या, भूख न लगना इत्यादि शामिल हैं,
और यह उस महिला के लिए ख़तरनाक है जो गर्भवती हैं क्योंकि अत्याधिक तनाव उनके और उनके बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालता है
तथा शोध से पता चला है कि जो महिलाएं गर्भवती थी और अत्याधिक तनावग्रस्त थी उनसे पैदा हुए बच्चे और जो तनावमुक्त महिलाएं थीं उनके बच्चे की तुलना में  वजन कम होता है
ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ साइकायट्री में प्रकाशित  लेख का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है प्रेग्नेंसी के दौरान हर महीने में प्रत्येक महिलाओं में तनाव का स्तर भिन्न भिन्न रूपों में होता है और उनके तनाव के तीन स्तर थे
बेहदअधिक तनाव, सामान्य तनाव और कोई तनाव नहीं.
और ये तनाव रिश्तों की समस्याओं, सामाजिक तत्वों और मानसिक समस्याओं से भी जुड़ा होता है,
मिले साक्ष्यों के अनुसार  गर्भावस्था के दौरान भारी तनाव बच्चों को लंबे समय तक प्रभावित करता है और जिन बच्चों की मां ने गर्भावस्था के दौरान कोई तनाव महसूस नहीं किया था उनकी तुलना मे तनाव लेने वाली महिलाओं के बच्चों को पर्सनैलिटी डिसॉर्डर होने की आशंका लगभग 10 गुना ज़्यादा है और तो और मध्यम स्तर का तनाव महसूस करने वाली महिलाओं के बच्चों को ये आशंका 4 गुना अधिक है.
अब यह समझना अति आवश्यक है कि इसके क्या कारण है और यह तनाव आखिर बच्चों को क्या नुकसान पहुचा रहा है -
तो मिले साक्ष्यों के अनुसार यह पता लगाना संभव नहीं है कि गर्भवती महिलाओं में तनाव किस तरह पर्सनैलिटी डिसॉर्डर के जोखिम को बढ़ाता है. लेकिन जहां तक अनुमान है  ये तनाव कई अन्य वजहों से भी होता है जैसे, दिमाग के भीतर होने वाले बदलाव,परिवार से मिले जीन्स या फिर परवरिश यह सबसे बड़ा कारण है,
और अध्ययन के मुताबिक हमें ज्ञात हुआ फिनलैंड की एक महिला जो इस बीमारी से ग्रस्त थी उसने 1975 और 1976 के बीच अपने बच्चों को जन्म दिया था और उनका बच्चा 30 की उम्र तक पहुंचा तब उनमें किसी न किसी तरह के पर्सनैलिटी डिसऑर्डर दिखाई दिए और तो और अध्ययन में शामिल माओं के बच्चों में से चालीस युवा ऐसे थे जिनकी स्थिति इतनी ख़राब हो गई थी कि उन्हें अस्पताल में भर्ती तक होना पड़ा.
और तो और अध्ययानुसार गर्भावस्था के दौरान भारी तनाव बच्चों को लंबे समय तक प्रभावित करता है.और वो बच्चे जिनकी माँओं ने गर्भावस्था के दौरान गंभीर तनाव महसूस किया हो उन्हें 30 साल की उम्र तक आते-आते पर्सनैलिटी डिसॉर्डर होने की आशंका लगभग 10 गुना तक बढ़ जाती है. और फिर लंबे समय तक हल्के तनाव का होना भी बच्चे के विकास पर असर डालता है. जन्म के बाद भी ये असर बढ़ता रहता है.
और मनौवैज्ञानिकों का कहना है कि गर्भवती महिलाएं पर्सनैलिटी डेवलपमेंट डिसॉर्डर का शिकार बन जाती हैं क्योंकि कम उम्र में मां बनना या मां बनने के बाद क्या वो अपने बच्चे को सही परवरिश दे पाएंगी या नहीं यह बात उनके मस्तिष्क को अत्याधिक प्रभावित करती है जिस कारण वह इस बीमारी का शिकार बन जाती है और उन्हें इस अवस्था में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएं मिलना ज़रूरी है अन्यथा मां और बच्चे दोनों के लिए ख़तरनाक हो सकता है,
लेकिन अब यह जानना आवश्यक है कि पर्सनेलिटी डिसॉडर क्या होता है और इसके क्या कारण है -
जब किसी के व्यक्तित्व के कुछ पहलू उनके और अन्य लोगों के लिए जीवन को कठिन बना दे तो उसे पर्सनैलिटी डिसॉर्डर कहते है और ऐसे लोग ज़रूरत से ज़्यादा चिंतित, भावनात्मक रूप से अस्थिर, विरोधाभासी और असामाजिक हो सकते हैं
इसके अलावा और भी ऐसे कई तथ्य हैं जो पर्सनैलिटी
डेवलपमेंट डिसॉर्डर का कारण बनते हैं जैसे परवरिश, परिवार की आर्थिक स्थिति या बचपन के दौरान हुआ कोई हादसा
अब आप समझ सकते हैं ऐसे वातावरण में एक नवजात शिशु को जन्म देना कितना ख़तरनाक होता है क्योंकि उसकी मां जो इस बीमारी से ग्रस्त हैं वह हमेशा चिड़चिड़ी रहेगी तो उसका असर उसके बच्चे पर पड़ता है
और तो और ये चिकित्सीय स्थितियां बच्चे को प्रभावित करती हैं हालांकि सीधे तौर पर नहीं पर करती अवश्य है क्योंकि बच्चे के विकास के लिए प्रारंभिक माँ-बच्चे का संबंध महत्वपूर्ण है और बच्चे के करीब होना ही उस बंधन का एक बड़ा हिस्सा होता है और जब गर्भावस्था के दौरान या बच्चे के जन्म के बाद महिला को अवसाद या चिंता होती है तो उस महिला का अपने बच्चे के करीब होना मुश्किल हो जाता है और यह भी हो सकता है कि आपके बच्चे को जो केयर जो प्यार चाहिए आप न दे सकें और अगर घर में बड़े बच्चे हैं तो उन्हें आपका सहारा भी न मिल रहा हो और इस तरह यह अवसाद और चिंता बच्चे के जन्म से पहले और बाद दोनों पहलुओं में बच्चे के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती है,
अब यह जानना आवश्यक है कि गर्भावस्था के दौरान या जन्म के बाद अवसाद और चिंता के जोखिम कारक क्या हैं -
हालांकि गर्भावस्था के दौरान या जन्म के बाद अवसाद और चिंता किसी भी महिला को हो सकती है इन जोखिम कारकों में शामिल हैं:
1.गर्भावस्था के दौरान या अन्य समय में अवसाद या चिंता का इतिहास
2.अवसाद या चिंता का पारिवारिक इतिहास
3.एक कठिन गर्भावस्था या जन्म का अनुभव
4.जुड़वां या अन्य गुणकों को जन्म देना
5.अपने साथी के साथ अपने संबंधों में समस्याओं का
अनुभव करना
6.वित्तीय समस्याओं का अनुभव करना
7.अपने बच्चे की देखभाल करने में आपकी मदद करने के लिए परिवार या दोस्तों से बहुत कम या कोई समर्थन नहीं मिल रहा है
8.अनियोजित गर्भावस्था
लेकिन शोधकर्ता कहते और मानते है कि इस समय के
दौरान अवसाद और चिंता शारीरिक, भावनात्मक और पर्यावरणीय कारकों के मिश्रण से भी हो सकती है,
अतः तनाव क्यों और कैसे गर्भवती महिला और उसके बच्चे को प्रभावित करता है यह जानने के बाद इसके जोखिम कारक और बच्चे पर पड़ने वाले प्रभाव आदि का अध्धयन करने के बाद समझ सकते हैं कि मां का शारीरिक मानसिक और भावनात्मक रूप से खुश और स्वस्थ होना अति आवश्यक है क्योंकि मां का बच्चे से संबंध उनकी कोख में ही बन जाता है और यदि वह उससे पहले या उसके बाद अवसाद या चिंता से ग्रसित रहेगी तो उसका उनके बच्चे पर गंभीर असर पड़ सकता है इसलिए आवश्यक है जितना हो सके गर्भवती महिला हर तनाव से मुक्त रहें स्वस्थ पौष्टिक आहार करें और अच्छी अच्छी बातें करें क्योंकि मां का प्रभाव बच्चे पर अवश्य होता है,
इसलिए बच्चे को सही और अच्छा माहौल देना है तो खुद को तनावमुक्त रखना है और आशा है आपको आपके प्रश्न का जबाव मिल गया होगा।
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