What is the difference between ivf and surrogacy?/ आईवीएफ और सेरोगेसी में अंतर
शादी के बाद पति-पत्नी कुछ समय एक दूसरे के साथ बिताने के बाद संतान की चाह रखने लगते हैं, नये दंपत्ति से तो परिवार वालों को बच्चे की चाह ज्यादा रहती है| मगर आजकल बढ़ती उम्र में शादी, कैरियर का टेंशन, बढ़ता प्रदूषण, घटती हुई इम्यूनिटी और रोजाना नई-नई आती बीमारियों के कारण इनफर्टिलिटी आम समस्या हो गई है| इनफर्टिलिटी के कारण कई कपल को पैरंट्स बनने का सुख प्राप्त नहीं हो पाता इस स्थिति के पीछे और भी कई सारे कारण हो सकते हैं कई बार पुरुष पिता बनने की स्थिति में नहीं होता ,कई बार महिला माता बनने की स्थिति में नहीं होती |कई बार दोनों ही सक्षम होते हैं पेरेंट बनने के मगर किसी कारणवश बच्चे का सुख प्राप्त नहीं कर पाते है|
ऐसे में आज विज्ञान की मदद से इनफर्टिलिटी होने के बावजूद भी कई कपल माता-पिता बनने का सुख प्राप्त कर चुके हैं |आज विज्ञान ने कई सारे ऑप्शन हमारे सामने रख दिए हैं ,उनमें से सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाले ऑप्शन सरोगेसी और आईवीएफ यानी कि टेस्ट ट्यूब बेबी है |इन दोनों विकल्प में आप तकनीक की मदद से अपने सपनों को आसानी से पूरा कर सकते हैं |मगर कई बार हमारे सामने ही है प्रश्न आता है कि इन दोनों मे से बेहतर विकल्प कौन सा होगा ?या कौन सी तकनीक हमारे केस में बेहतर साबित होगी? यह दोनों प्रक्रिया वैसे तो अलग-अलग है दोनों प्रक्रिया का आपसी तालमेल नहीं है |आप एक समय में एक ही प्रक्रिया को अपना सकते हैं |आपके सवालों के जवाब के लिए आपको पहले इन दोनों के बीच के अंतर को समझना होगा|
क्या होती है सेरोगेसी- इन दिनों सरोगेसी के जरिए माता-पिता बनने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है |इसमें बॉलीवुड की नामी हस्तियों से लेकर आम लोगों तक सभी लोग शामिल है |सरोगेसी उन कपल के लिए एक अच्छा ऑप्शन है ,जो इनफर्टिलिटी के कारण बच्चे को जन्म देने में असमर्थ हैं |सरोगेसी के लिए कपल बच्चा पैदा करने के लिए किसी स्वस्थ महिला की कोख को किराये पे लेते हैं| इस पूरी प्रक्रिया को सरोगेसी कहते हैं और बच्चे को जन्म देने वाली महिला को सेरोगेट मदर| ट्रेडिशनल सरोगेसी में पिता के स्पर्म का यूज कर कर सेरोगेट मदर के अंडे के साथ निश्चित कर दिया जाता है |इसमें जेनेटिकली बच्चे की मां सरोगेट मदर होती है२ ऐसे में वह दंपत्ति जो बच्चे को लेते हैं उस मां का इस बच्चे में कोई लक्षण नहीं होता है, क्योंकि जेनेटिकली उसका उससे कोई रिश्ता नहीं है |दूसरे तरह के सरोगेसी होती है गैस्टेशनल सेरोगेसी |इस सरोगेसी में बच्चे के जेनेटिक माता-पिता के सारे गुण बच्चे में मौजूद होते हैं ,क्योंकि बच्चे की मां का एग और पिता के शुक्राणु को लैब में फर्टिलाइज कर कर सरोगेट मां की गर्भाशय में डाला जाता है |इस पूरी प्रक्रिया के 9 महीने के बाद प्राकृतिक रूप से बच्चे का जन्म होता है |सरोगेसी प्रायः वे दंपत्ति अपनाते हैं जिनमें मां का गर्भाशय बच्चे के लिए पूरी तरह से उपयुक्त ना हो या फिर मां बार-बार कंसीव कर ले मगर फिर भी या तो भ्रूण का पूरी तरह विकास ना हो या पाये या फिर बार बार अबॉर्शन हो जाए, उन लोगों के लिए यह प्रक्रिया काफी सहज होती है क्योंकि यदि गर्भाशय की कमी के कारण महिला मां नहीं बन पाती है ,तो भी कोई अन्य महिला अपने गर्भाशय में उसके बच्चे को पालकर जन्म दे सकती हैं |सरोगेट मदर के लिए डॉक्टर के हिसाब से ऐसी मां जो 25 से 30 साल के बीच की हो इसके साथ ही वो हल्दी और शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट होना चाहिए| इसके अलावा आजकल आजकल गवर्नमेंट ने एक और रूल ऐड किया है की सेरोगेट मदर पहले से शादीशुदा हो और उस शादी से उसका खुद का एक बच्चा होना चाहिए| विधवा या तलाकशुदा महिला भी सेरोगेट मदर बन सकती है|
जो पेरेंट्स माता-पिता बनने के लिए सरोगेसी का सहारा लेते हैं उन्हें इसके लिए सेरोगेट मदर का रेगुलर चेक अप और उसकी देखभाल बच्चे के असली माता पिता को करनी होती है |इसके अलावा सरोगेट मदर के लिए कपल को 36 महीनों का मेडिकल इंश्योरेंस कराना अनिवार्य होता है और कपल के पास इस बात का मेडिकल सर्टिफिकेट होना चाहिए कि उन दोनों में से कोई एक संतान उत्पन्न करने के लिए पूरी तरह से सक्षम नहीं है| विदेशों में सरोगेसी जहां 35 से 40 लाख तक होती है वहीं भारत में 4-5 लाख में आसानी से सरोगेट मदर मिल जाती है| फिर भी सेरोगेसी अपना ना हर किसी कपल के लिए मुमकिन नहीं है |
आआईवीएफ या टेस्ट ट्यूब बेबी- एग ओर स्पर्म को शरीर के बाहर टेस्ट टयूब मे फर्टिलाइज करने की प्रक्रिया आईवीएफ या टेस्ट ट्यूब बेबी कहलाती है| टेस्ट टयूब में जब एग फर्टिलाइज होकर भ्रूण बन जाता है तो उसे महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है |वे महिलाएं जिनके एग प्रॉपर तरीके से मैच्योर नहीं हो पाता है ,उनके लिए आईवीएफ एक वरदान साबित होता है | इसके अलावा ऐसे पुरुष जिनका स्पर्म काउंट कम होता है ,स्पर्म डोनर की मदद से पिता बन सकते हैं |
टेस्ट ट्यूब बेबी की प्रक्रिया में सर्वप्रथम महिला के गर्भाशय में दवाइयों के सहारे एक मैच्योर एग बनाया जाता है| उसके बाद साधारण सी प्रक्रिया के जरिए वह एक महिला के गर्भाशय से निकाल लिया जाता है| उसके बाद उस महिला के पाटनर या फिर किसी स्पर्म डोनर के स्पर्म के साथ लैब में फर्टिलाइजर किया जाता है |लैब में फर्टिलाइज हुए भ्रूण को हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी के जरिए महिला के गर्भाशय में इनर लाइनिंग तैयार करके स्थापित कर दिया जाता है| यह पूरी प्रक्रिया 1 से 3 महीने में अलग-अलग चरणों में पूर्ण होती है| यदि पूरी प्रक्रिया सही तरह से हो जाती है तो महिला आईवीएफ के जरिए प्रेग्नेंट हो जाती है| हालांकि इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल ,रिस्की और लंबी होती है मगर यदि आप प्रॉपर तरीके से मेडिकल ट्रीटमेंट और मेडिकल डॉक्टर की देखरेख में है तो यह काफी हद तक सफल हो जाती है| इस प्रक्रिया के जरिए माता पता भावनात्मक रूप से अपने होने वाले बच्चे से आसानी से जुड़ जाते हैं |डॉक्टर की माने तो बांझ महिला के लिए आईवीएफ प्रेग्नेंट होने का सबसे अच्छा तरीका साबित हो सकता है| किसी और महिला पर अपने बच्चे के जन्म के लिए निर्भर होने के बजाय महिला खुद अपने बच्चे को जन्म देती है और इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि आईवीएफ की लागत बहुत ही कम यानी कि आसानी से अफॉर्डेबल है |आजकल तो आईवीएफ ट्रीटमेंट आसान किस्तों यानी कि ईएमआई में उपलब्ध है|
यदि किसी कारणवश आप चाह कर भी अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं ,तो इन तकनीकों के सहारा लेकर आप आसानी से अपने सपने को पूरा करने की उम्मीद जगा सकते हैं |आजकल बांझपन या फिर पिता ना बन पाना कोई टैबू नहीं रहा |लोग आसानी से इस बारे में बात करते हैं और विज्ञान की मदद से इनका इलाज भी संभव है| बस जरूरत है इन तकनीक के प्रति जागरूक होकर सही दिशा में अपना इलाज करवाया जाए ताकि सही ट्रीटमेंट से आपके घर में खुशियां रोशन हो जाए |यह मत भुलिए की इस लड़ाई में आप अकेले नहीं है ,आपके साथ आपका पार्टनर आपको सपोर्ट करने के लिए है ना|
नोट- बेबी प्रोडक्ट करने की किसी भी तकनीक को अपनाने के डिसीजन लेने के पहले एक बार अपने गाइनेकोलॉजिस्ट जरूर संपर्क करें |क्योंकि एस अ डॉक्टर आपका गाइनेकोलॉजिस्ट आपको बेहतर सलाह और सुझाव दे सकता है| गायनेकोलॉजिस्ट के सजेशन लेने के बाद ही आप इस दिशा में अपना कदम बढ़ाए|